कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान का गढ़ बचाने की चुनौती!
कांग्रेस इस वक़्त अपने सबसे मुश्किल वक़्त से गुजर रही है मध्यप्रदेश में लगभग सरकार जा चुकी है ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो चुके है और उनके साथ अन्य 19 विधायक इस्तीफा दे चुके है निर्दलीय भी बीजेपी के तरफ जाते दिख रहे है। ऐसे तो कांग्रेस सदन के पटल पर बहुमत साबित करने का दावा कर रही है लेकिन मेडिकल की भाषा में बोले तो वेंटीलेटर के सहारे कब तक किसी को जीवित रखा जा सकता है ऐसा ही कुछ हाल इस समय कांग्रेस का है।
कांग्रेस के लिए एक और बड़ी चुनौती है राजस्थान का गढ़ बचाने की, सचिन पायलट पिछले कई समय से अपने ही पार्टी पर हमलावर है ओर बगावती तेवर दिखा रहे, बीते कुछ महीनों में वो खुलकर अपनी सरकार पर निशाना साधते नजर आ रहे है, चाहे वो कोटा में हुए बच्चो की मौत को लेकर हो या फिर दलितों पर हुए हमले को लेकर, कोटा में हुए बच्चो की मौत पर अशोक गेहलोत ने बोला की पिछली सरकार के मुकाबले इस बार मौतों की संख्या में कमी आई है, तो पायलट ने अपने बयान में कहा की सरकार को पिछली सरकार से मुकाबला करना दुर्भाग्य की बात है।
पायलट की नाराजगी तब से ही चली आ रही जब उन्हें दर किनारे करके अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। जब आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनने के लिए वोटिंग कराई थी तो उनके पास 100 में से 44 विधायक थे मगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, इस बात का मलाल पायलट की चेहरे पर साफ़ दिखाई देता है।
जहां एक ओर सचिन पायलट की नाराजगी साफ़ दिखती है तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पायलट के बीच रिश्तें पहले ही दरक चुके हैं उनके बीच की चल रही अनबन कई बार खुलकर सामने भी आ चुकी हैं, लोकसभा चुनाव में मिले हार की जिम्मेदारी गहलोत ने सचिन पायलट के मथे फोरी थी। गहलोत ने यहाँ तक कह डाला था की उनके बेटे आज लोकसभा नहीं पहुंच पाए है तो उसके जिम्मेदार सचिन पायलट ही है। सचिन पायलट ने कैबिनेट की बैठक में जब कुर्सी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बगल में लगवा ली तो अगली बैठक में अशोक गहलोत ने उनकी कुर्सी हटवा कर मंत्रियों के साथ लगवा दी। जाहिर सी बात है कि जब अशोक गहलोत इन छोटी मोटी बातों पर सचिन पायलट को जलील करने लगे हों तो पायलट के पास बगावती तेवर दिखाने का कोई के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।
जबकि उनके समर्थको का कहना था की पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने का नतीजा है ये। ऐसा कई बार हुआ जब गहलोत ओर पायलट के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ नारेबाजी कर चुके है।
पायलट खेमे के समर्थको का कहना है कि बस इंतजार कीजिए जल्दी ही कोई धमाका होने वाला है। कुछ दिन पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया जब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार गिराने की तैयारी कर रहे थे तब सचिन पायलट दिल्ली में ही मौजूद थे लोग कयास लगा रहे थे की पायलट भी कोई फैसला करके हंगामा कर सकते है। इसी को भांपते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी विधायकों से संपर्क में है और अपने सारे सिपहसालारों को राजस्थान के एक एक विधायकों के पीछे लगा दिया है।
विचारधारा की बात करे तो पायलट विचारधारा से बंधे हुए कभी दिखाई नहीं दिए पायलट के अंदर फ्रस्ट्रेशन भी दिखता है क्योंकि कांग्रेस के अंदर उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है बाहर लोग भले ही बात करते हैं कि वह राहुल गांधी के करीबी हैं,ऐसा ज्योतिरादित्य के बारे में भी माना जाता है मगर हुआ क्या ये सबके सामने है। सच्चाई तो यह है कि उप मुख्यमंत्री बनने के बाद कभी राहुल गांधी से उनकी बातचीत तक नहीं हुई कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी के पास और महासचिव प्रियंका गांधी के पास अशोक गहलोत ने इस तरह की बिसात बिछा रखी है कि पायलट वहां तक पहुंच नहीं पाते हैं कहा तो यह जाता है कि पायलट के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह से बात करना आसान है मगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से बात करना मुश्किल है हालात यह है तो अगर पायलट बगावत करते हैं और लोगों की सहानुभूति पायलट के साथ बनती है।
अगर भारतीय जनता पार्टी की बात करे तो वो कोई भी मौके से चूकना नहीं चाहती है चाहे वो राज्यसभा हो या विधानसभा बीजेपी पायलट को साधने की कोशिश में लग गई है। हिन्दी क्षेत्र के राज्य गवाने के बाद बीजेपी बैक फुट पर दिख रही थी लेकिन मध्यप्रदेश की ताज़ा राजनीति ने फिर से बीजेपी को फ्रंट फुट पर खड़ा कर दिया है।
स्टोरी- अभिषेक