हिन्दू वोटरों को लुभाने में जुटे कैप्टन अमरिंदर, कांग्रेस की बढ़ी चिंता
चंडीगढ़. पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022)से पहले पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह(Amarinder Singh) द्वारा नई पार्टी बनाने और भाजपा (BJP) के साथ गठबंधन करने के इरादे के बाद उनके खिलाफ जुबानी जंग शुरू हो गई है. कांग्रेस में कई लोगों का मानना है कि कैप्टन शहरी इलाकों में हिंदुओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. शहरी हिन्दू पंजाब की आबादी का 38 फीसदी के करीब हैं. माना जा रहा है कि सीमा पार आतंकवाद और सुरक्षा के मुद्दों का जिक्र कर के वह हिन्दू मतदाताओं के बड़े हिस्से को कांग्रेस से दूर करना चाह रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के सूत्रों का मानना है कि अमरिंदर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के पाकिस्तान दौरे और पाकिस्तानी सेना प्रमुख के गले लगने का मुद्दा केंद्र में रख कर हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना चाह रहे थे. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री पिछले कुछ समय से सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा का जिक्र कर रहे हैं.
कांग्रेस के अनुसार जिस पर पार्टी को संदेह था, वह अब साफ दिख रहा है कि अमरिंदर पंजाब के सीएम के रूप में भी राज्य में हिंदू जनसांख्यिा को प्रभावित करने में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के साथ थे. बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र के नियमों में हालिया संशोधन पर अमरिंदर की प्रतिक्रिया में भी इसकी झलक दिखी. एक ओर जहां मौजूदा सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने इस कदम का विरोध किया तो कैप्टन ने इसका समर्थन किया.
कैप्टन के मीडिया सलाहकार ने क्या किया था ट्वीट?
उनकी ओर से ट्वीट करते हुए कैप्टन के मीडिया सलाहकार ने कहा था, ‘कश्मीर में हमारे जवान मारे जा रहे हैं. हथियार और नशीले पदार्थ पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा पंजाब में भेजा जा रहा है. बीएसएफ की बढ़ी मौजूदगी और उनकी शक्तियां हमें और मजबूत करेंगी. केंद्रीय सशस्त्र बलों को राजनीति में न घसीटें.’ कांग्रेस ने कैबिनेट मंत्री परगट सिंह के साथ इस कदम के लिए उनके समर्थन की निंदा करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि अमरिंदर भाजपा शासित केंद्र सरकार के साथ ‘मिले हुए’ थे.
शायद इसी वजह से कांग्रेस ने पिछले कुछ दिनों में कैप्टन के तथाकथित ‘पाकिस्तान कनेक्शन’ को जिक्र करना शुरू किया है. कैप्टन की दोस्त और पाकिस्तानी पत्रकार आरुसा आलम के संबंध में उनके खिलाफ व्यक्तिगत हमलों के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच जमकर टीका टिप्पणी हुई. इसकी शुरुआत डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा ने यह कहते हुए किया था कि पंजाब सरकार ने आलम के आईएसआई के साथ संबंधों की जांच के आदेश दिए हैं. पूर्व विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने भी आलम से कनेक्शन पर निशाना साधा. उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी पत्रकार को गिफ्ट या पैसे दिए बिना पंजाब पुलिस में पोस्टिंग नहीं हुई.
20 अक्टूबर को किया था नई पार्टी बनाने का ऐलान
20 अक्टूबर को कैप्टन ने घोषणा की थी कि वह जल्द ही अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करेंगे. उन्होंने कहा था कि वह साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए भी तैयार हैं. एक ट्वीट में अमरिंदर के राजनीतिक सलाहकार ने उनके हवाले से कहा था – ‘पंजाब के भविष्य के लिए लड़ाई जारी है. एक साल से अधिक समय से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हमारे किसानों सहित पंजाब और उसके लोगों के हितों की सेवा के लिए जल्द ही अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी शुरू करने की घोषणा करूंगा.’
इसके बाद उन्होंने आगे कहा था ‘अगर किसानों के मुद्दों को हल किया जाएगा तो उम्मीद है कि साल 2022 के चुनाव के लिए भाजपा के साथ सीट शेयरिंग पर समझौत हो सकता है. साथ ही अकालियों के ढिंडसा और ब्राह्मपुरा गुट के साथ गठबंधन के भी रास्ते खोजे जा रहे हैं.’ अमरिंदर ने पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में उनके आवास पर मुलाकात की थी. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में उनके भाजपा में शामिल होने की अफवाह फैल गई थी.
भाजपा को कैप्टन से उम्मीद
हालांकि पंजाब भाजपा का मानना है कि ‘प्रस्ताव’ आधारित काम किया जा सकता है. एक ओर जहां अकाली दल ने कृषि कानूनों को लेकर भाजपा से नाता तोड़ लिया, वहीं दूसरी ओर पार्टी को उम्मीद है कि कैप्टन कांग्रेस, आप और शिअद-बसपा को वैकल्पिक राजनीतिक गठजोड़ बेचने के लिए एक चेहरा दे सकते हैं.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिअद गठबंधन ने 117 में से 18 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. भाजपा ने तब अपने खराब प्रदर्शन के बारे में कहा था कि ऐसा अकालियों के खराब प्रदर्शन की वजह से हुआ.आगामी चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस कैप्टन द्वारा हिन्दू वोटर्स को पार्टी से दूर करने की कोशिशों का मुकाबला करने के लिए रणनीति बनाने की तैयारी कर रही है, वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हिंदू मतदाताओं के बीच आप की बढ़ती लोकप्रियता के साथ कांग्रेस को को शहरी क्षेत्रों में दोहरी चुनौती के लिए तैयार रहना होगा.