क्या हरिद्वार में हो सकता है रेडीऐशन विस्फोट
उत्तराखंड में हुए कुम्भ से कोरोना का बम विस्फोट हुआ लेकिन क्या हो अगर आपको पता चले की कुम्भ में डुबकी लगाने वाली आस्था में रैडीओऐक्टिव भी मौजूद है , ये मामला पहले भी सामने आ चुका है लेकिन पिछले 50 साल से ज्यादा हो गए सरकार को इसे नजरअंदाज करते हुए ,जैसे कोरोना को नजरअंदाज किया और कुम्भ में लाखों लोगों ने डुबकी लगाई । बड़ी बात तो ये भी है की ये मुद्दा संसद में भी उठा लेकिन इस पर काम कभी नहीं हुआ यहाँ तक की हाल ही में 7 फरवरी 2021 को चमोली ब्लास्ट ने इस रैडीओऐक्टिव को लेकर लोगों की नींद उड़ा दी थी । लेकिन कुछ दिन खबरों में चर्चा के बाद ये मामला फिर से दब गया हालांकि हमे ये नहीं भूलना चाहिए की ये ब्लास्ट ऋषि गंगा की तरफ हुआ था जहां इस रेडीऐशन के मिलने के आसार ज्यादा हैं ।
भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इस खूबसूरती के साथ एक खतरनाक सच भी जुड़ा है वो सच जो कभी भी करोडो लोगो की जिंदगी में तबाही ला सकता है। नंदा देवी से निकलने वाली ऋषि गंगा नदी जो गंगा में मिल जाती है करोडो लोगो तक जाती है उसमें अगर भयंकर रेडीऐशन हो जाये तो क्या होगा ? आज नंदा देवी की उस अनसुलझे सच तक ले जा रहा है जिस सच को या तो आप नहीं जानते या फिर आपने हमने अपनी आँखे बंद कर ली हैं लेकिन भविष्ये में ये बहुत खौफनाक परिणाम दे सकता है , ये कोई कहानी नहीं बल्कि वो सच है जो भारत की इंटेलिजेंस और अमेरिका की सीआईए बखूबी जानती थी की कैसे प्लूटोनियम 238 नंदा देवी पर गुम हुआ और पिछले 52 साल से नहीं मिल स्का। अगर प्लूटोनियम 238 का रेडिएशन गंगा में घुल गया तो करोडो लोगो को कैंसर जैसी और दूसरी बीमारिया हो सकती है।
कितना खतरनाक है प्लूटोनियम 238 ?
एक माइक्रोग्राम प्लूटोनियम व्यक्ति की जान ले सकता है. ये रेडियोएक्टिव पदार्थ हर समय अपना रुप बदलता रहता है. जानकार भी मानते हैं कि प्लूटोनियम की सच्चाई के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. 60 के दशक में CIA की ये जानलेवा गलती हमें कितना नुकसान पहुंचा चुकी है या फिर पहुंचा सकती है ये शायद हम कभी नहीं जान पाएं, क्योंकि प्लूटोनियम का रहस्य समय की परतों में दफ़न हो चुका है ।
प्लूटोनियम 238 इस्तेमाल किया गया था जापान के हिरोशिमा नागासाकी पर गिरे परमाणु बम में , दरअसल PU 238 को शुद्ध करके बनता है PU 239 यानी परमाणु बम।
वैज्ञानिकों का कहना है की प्लूटोनियम 238 हो या प्लूटोनियम 239 सभी प्लूटोनियम का रेडिएशन खतरनाक है , इससे कई तरह के कैंसर का होना , अगर पानी से या हवा से कैसे भी ये मानव शरीर तक पहुंचेगा तो शरीर की हड्डियों में जम जायेगा या सांस लेने से लंग में सालो तक बैठा रहेगा जिसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं । ये खतरा इतना बड़ा है की वैज्ञानिक भी सिर्फ यही कहते हैं की जब तक प्लूटोनियम पर लेड का कवर है हम सुरक्षित हैं लेकिन जिस दिन वो कवर उतर गया तो रेडियोएक्टिव पदार्थ लीक होना शुरू हो जायेगा। और गंगा में बहते हुए लोगो तक पहुच सकता है। हालांकि कुछ ISCA के वैज्ञानिक जैसे डॉ सलिल गुप्ता का मानना है की खतरा अब उतना नहीं है क्यूंकी ये डिवाइस गिर कर बर्फ में दबा होगा तो वही होगा और नीचे भी आता है तो उसे आने में दशकों लग जायेगे ।
1965 में हुआ अमरीका और भारत का मिशन फेल
1962 में भारत को चीन से युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और इसके बाद ही चीन के होंसले काफी बढ़ गए और चीन ने 1964 में अपना पहला परमाणु टेस्ट किया , चीन खुद को एक बड़ी ताकत के रूप में दुनिया को दिखा रहा था लेकिन इससे सबसे ज्यादा परेशानी थी अमेरिका को। अमेरिका की नजर चीन की बढ़ती ताकत पर लगातार बनी हुई थी , इसलिए अमेरिका की सीआईए ने प्लान बनाया और तैयार हुआ ऑपरेशन हैट ।
ऑपरेशन हैट – चीन के अगले परमाणु टेस्ट की ताकत पता करना था। अमेरिका ने मदद ली भारत से और भारत का इंटरेलीजेन्स ब्यूरो भी इस ऑपरेशन का हिस्सा बना। लेकिन इस मिशन की पूरी प्लानिंग की थी अमेरिका की सीआईए ने। अक्टूबर 1965 में, अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने एक बेहद सीक्रेट मिशन में हाथ मिलाया, भारत के दूसरे सबसे ऊँचे शिखर पर एक परमाणु शक्ति वाली सेंसिंग डिवाइस स्थापित करने के लिए उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में 25,643 फुट (करीब 7815 मीटर) नंदा देवी को चुना।
1964 में, चीन ने झिंजियांग प्रांत में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था इसी के बाद परमाणु विकास की जांच के लिए, नंदा देवी के ऊपर एक उपकरण स्थापित किया जाना था, इसके बाद , चीन का अगला परमाणु टेस्ट होने से पहले अमेरिका और भारत ने अपनी तैयारी पूरी कर ली , नंदा देवी के ऊपर एक रिमोट सेंसिंग डिवाइस थी जो किसी भी अन्य परीक्षणों का ट्रैक रख सकता था। डिवाइस नाम था SNAP space nuclear auxiliary power
हालांकि डिवाइस को स्थापित करना, 8-10 फूट-उच्चे ऐन्टेना,जेनरेटर के परमाणु ईंधन, दो ट्रांसीवर सेट और परमाणु सहायक बल (एसएएनएपी, जिसमें लगभग 56 किग्रा के वजन वाले उपकरणों को ले जाने का मतलब था पर्वतारोहियों की एक लम्बी टीम को तैयार करना । सबसे ख़ास थे सात प्लूटोनियम कैप्सूल , जो एक विशेष कंटेनर में आये थे । ये बात खुद कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली बताते हैं जो उस वक़्त के नामी पर्वतारोही थे और ऑपरेशन ‘HAT’ के टीम लीडर भी थे ।
लाल बहादुर शास्त्री उस वक़्त प्रधानमंत्री थे ऑपरेशन हैट पर किताब लिखने वाले एक लेखक का दावा है की प्रधानमंत्री को ऑपरेशन हैट का पता था लेकिन कैप्सूल में प्लैटोनियम 238 है ये जानकारी नहीं थी , कुछ ऐसा ही हाल था पर्वतारोहियों की टीम का । टीम को बेहद खुफिया तरीके से अमेरिका बुला कर डिवाइस को पर्वत की चोटी पर फिट करने की ट्रैनिंग भी दी गई थी लेकिन उनको ये नहीं बताया गया की ये इस ऑपरेशन का मकसद क्या है ।
18 अक्टूबर को, जब टीम 24 चक्की से कैंप च्वाइस पहुंची, एक भयानक बर्फ़ीला तूफ़ान और माइनस टेम्प्रेचर ने टीम को सोचने को मजबूर किया की डिवाइस को फिलहाल इनस्टॉल न किया जाये । टीम के लीडर मनमोहन सिंह कोहली, जो अब 85वर्ष के हो चुके हैं , गुरचरण सिंह भंगू भी कप्तान कोहली के साथ मिशन का हिस्सा थे
18 अक्टूबर 1965 को भारतीय-अमरीकी दल रिसीवर, आरटीजी और प्लूटोनियम 238 की छड़ें लेकर नंदा देवी के बेस कैंप पहुंचा, तो अचानक मौसम खराब हो गया. इन तमाम उपकरणों को वापस नीचे लाना मुश्किल था. इस दल ने तय किया कि उन्हें एक चट्टान सें बांध कर बाद में आकर काम को अंजाम दिया जाए. जब ये दल कुछ महीनों बाद वापस उस जगह पहुंचा, तो उनके होश उड़ गए. जिस चट्टान में उन्होंने रेटियोएक्टिव पदार्थ बांधा था, वो पूरी की पूरी चट्टान बर्फ अपने साथ नीचे ले गई थी. प्लूटोनियम की ये जानलेवा छड़ें हजारों फीट नीचे ग्लेशियर में दफन हो गईं. CIA ने इन्हें ढ़ूढ़ने की कोशिश की, मगर नाक़ाम रही
वैज्ञानिक जेएल शर्मा कहते हैं वक़्त वक़्त पर गंगा के पानी की जांच हुई लेकिन रैडीओऐक्टिव नहीं मिला , दूसरा अगर ये बर्फ में दबा है तो ये बर्फ को पिघलता रहेगा और खुद ठंडा होता रहेगा । वहीं उनका मानना ये भी है की आज इतने आधुनिक डिवाइस आ चुके हैं की आसानी से इसे नंदा देवी या कहीं से भी ढूंढा जा सकता है।
कहाँ है प्लूटोनियम 238 ?
प्लूटोनियम को जहाँ रखा गया था वो हिमालय के ग्लेशियर है , जहाँ से ऋषि गंगा बनकर निकलती है। अगर प्लूटोनियम गंगा में घुला तो रेडियोएक्टिव पदार्थ आसानी करोडो लोगो के शरीर में पहुच जायेगा। क्यूंकि जिन नदियों से मिलकर गंगा बनती है उनमें से एक है ऋषि गंगा।
साल 1965 में नंदा देवी पर गुम हुए प्लूटोनियम से रेडीऐशन को लेकर अलग अलग तर्क दिए जा रहे हैं। कई पर्वतारोही और लेखकों ने समय-समय पर इस रेडीऐशन को जानलेवा बताया है।नंदा देवी पर रेडिएशन को लेकर कई किताबे लिखी गयी है लेकिन हालही में भारत की इंटेलिजेंस में सालो काम कर चुके आर के यादव ने किताब लिखी है एटम बम इन गंगा , इन्होने न सिर्फ इस खतरे को लेकर चिंता जताई है बल्कि पिछले 52 साल से सरकार के रवैये पर भी सवाल उठाये हैं , आर के यादव का कहना है की उन्होंने एटॉमिक एनर्जी से जब सवाल किये तो जवाब हैरान करने वाले थे । इनका दावा है की इन्हे कोई जवाब नहीं मिला बल्कि 1979 संसद में पेश हुई 7 सइंटीस्टो की रिपोर्ट DAE डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के पास है ही नहीं। दरअसल इस मिशन को इतना सीक्रेट रखा गया था की 1977 से पहले ये लोगो के सामने आया ही नहीं ,प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी उस वक़्त इस मिशन को लेकर काफी चिंतित हुए और फिर सर्च ऑपरेशन भी कराये गये , नंदा देवी की पहाड़ियों पर हेलीकाप्टर उतारे गए थे। 1977 में अमेरिका की मिडिया {आउटसाइड मैगजीन } ने इस मिशन के बारे में छापा तो भारत की संसद में भी हंगामा हुआ और 1978 में 7 वैज्ञानिकों की एक टीम बनायीं गयी जिसने 1979 में रिपोर्ट संसद में पेश की।
भारी दवाब के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को संसद में ऐसे ‘गुप्त मिशन’ की बात स्वीकार करनी पड़ी और यह बयान देना पड़ा कि इससे फ़िलहाल किसी प्रकार के रेडीऐशन का खतरा नहीं है. सरकार की रिपोर्ट में भी सिर्फ़ ये कहा गया कि अगर प्लूटोनियम निकला भी होगा, तो आबादी वाले हिस्सों तक पहुंचने से पहले ही वह गंगा किनारे रेत-कंकड़ में धंस गया होगा और अगर वो मैदानी इलाकों में भी आ गया होगा, तो नदी में मौजूद पानी ने इसका असर कम कर दिया होगा. मगर सरकार के इन दावों के पीछे ठोस सबूतों की कमी थी
आर के यादव ने अपनी किताब nueclear bomb in ganga लिखी जिस में उन्होंने एटोमिक एनर्जी कमिशन ऑफ इंडिया से किए गए कुछ सवालों का जिक्र किया है । आर के यादव का कहना है उन्हे अपने किसी सवाल का जवाब नहीं मिला है ।
नंदा देवी पर किये गए ऑपरेशन हैट के लीडर कप्तान कोहली ने भी इस मामले पर किताब (spies in the himalyas) लिखी है , हादसे के 56 साल बाद मनमोहन सिंह कोहली कहते हैं कि गुम हुए प्लूटोनियम से खतरनाक विकिरण की संभावना बहुत कम है। उनका ये आकलन देश के शीर्ष वैज्ञानिकों की राय और एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है। कोहली कहते हैं, प्लूटोनियम कैप्सूल अभी भी गर्म होंगे और बर्फ को पिघला रहे होंगे। इन कैप्सूल ने बर्फ में जगह बना ली होगी, या फिर ग्लेशियर के आधार तक पहुंच गए होंगे। ये कहीं पहाड़ों में दबे होंगे। इनसे अब खतरनाक विकिरण की आशंका बहुत कम है।नौ सेना, आईटीबीपी और एयर इंडिया में 42 साल सेवाएं देने वाले कोहली 1965 के असफल अभियान से पहले प्लूटोनियम के खतरे से वाकिफ नहीं थे। जब भारी मात्रा में प्लूटोनियम नंदा देवी की चोटियों पर गुम हो गया तब ये पता चला कि इससे लाखों भारतीयों की जान भी जा सकती है।
लेकिन ये कप्तान कोहली की आशंकाए है क्यूंकि प्लूटोनियम 238 की स्थिति इस वक़्त किसी को नहीं पता है। सिर्फ आशंकाए और सम्भावनाय ही लगाई जा सकती हैं। वहीँ पूर्व रॉ अफसर सीधे सीधे इसे गंगा के करीब रहने वाले 15000 करोड़ देशवासियो के लिए खतरा बता रहे हैं उनका कहना है की रेडिएशन अगर शुरू हुआ तो सीधे गंगा नदी में मिलेगा। गंगा से लाखो करोडो लोगो की आस्था जुडी है , महा कुम्भ में लोग डुबकी लगाते है , लेकिन गंगा में अगर रेडियोएक्टिव पदार्थ घुला तो लोगो को भयंकर बीमारिया हो सकती है।
कई शेरपाओं की हुई मौत का सच क्या है ?
मसूरी के लेखक स्टीफन अल्टर की हाल में आई किताब बिकमिंग माउंटेन में लिखा गया- बहुत से शेरपा जो 1965 में प्लूटोनियम के कैप्सूल को ढोकर नंदा देवी तक ले गए गए थे, उनकी मौत रेडीऐशन से हुए कैंसर से हुई। एक ईमेल के उत्तर में अल्टर कहते हैं- इस घटना पर कई तरह के अफवाह और कहानियां सुनाई जाती हैं।
ऑपरेशन हैट को सफल बनाने की तमाम कोशिशे की गयी थी जैसे अमेरिका की एक टीम नंदा देवी गयी थी तो भारत के सबसे बेहतर पर्वतारोहियों को चुना गया था इस मिशन के लिए। नंदा देवी की चोटी पर पहुँचने में दस दिन का वक़्त लगता है , कई जगह कम्प बेस बनाया जाता है। तेज तूफ़ान , जंगली जानवर और माइनस तापमान में चढ़ाई करनी पढ़ती है ऐसे में जरुरत थी शेरपाओ की क्यूंकि 56 kg का SNAP भी साथ ले जाना था। इसलिए नंदा देवी से पहले पड़ता है लाता गाव , इसी गॉव के शेरपाओ के बारे में जापान के लेखक पेटे तकादे ने दावा किया की जो भी शेरपा ऑपरेशन हैट में साथ गए थे उनमें से कई की मौत कम उम्र में हो गयी थी। लेखक का दावा है की शेरपा उस प्लूटोनियम को अपने कंधो पर लाँधकर ले गए थे इसलिए उन पर रेडीऐशन का असर हुआ था।
लाता गाव(उत्तराखंड के गढ़वाल में नन्द देवी से पहले 14000 फुट की उच्चाई पर मौजूद) के शेरपा जो उस डिवाइस को नंदा देवी ले गए थे जब मैं लाता गाव के लोगों से मिली तो उन्होंने बताया की उन्होंने ऐसी कहानिया सुनी हैं की कोई चीज नंदा देवी में गुम हो गई थी जो कभी नहीं मिला। itbp के लोग कई बार ढूंढने भी गए. लेकिन अब पर जाना मना है इसलिए कोई नहीं जाता। इस गांव के नंदा देवी चोटी तक चढ़ाई करके आ चुके हैं। लेकिन पिछले कई सालो से इनकी कोई पीढ़ी वहां नहीं गयी हैं। नंदा देवी जाना अब इनके लिए सपना है।
अंतर्राष्ट्रीय स्टार के लेखकों के दावे की जांच शुरू की हमने तो पता चला की इस गॉव में नंदा देवी पर 1965 में जाने वाले किसी शेरपा की मौत बिमारी से नहीं हुई न ही कम उम्र में हुई। 80 साल के सबसे ज्यादा उम्र के शख्स ने बताया की ऐसा कुछ भी इस गॉव में नहीं हुआ न कभी सुना। तो जाहिर है की रेडियोऐक्टिव पदार्थ का असर फिलहाल किसी शेरपा पर नहीं हुआ था।
पिटे तकादे एक और दावा करते हैं – अमेरिकी लेखक और पर्वतारोही पीते टाकेडा ने 2004 से 2007 के बीच नंदा देवी की चोटियों से पानी और शिल्ट के नमूने लेकर दो अमेरिकी लैब में जांच के लिए भेजा। 2008 में आए इनके रिजल्ट में एक लैब की रिपोर्ट ने कहा कि इनमें पीयू (प्लूटोनियम) नहीं है। पर दूसरी लैब की रिपोर्ट ने माना कि प्लूटोनिम के तत्व हैं।
पाँच दशकों के बाद भी स्थिति वही है, न तो सरकार ने इस रैडीओऐक्टिव पदार्थ को ढूँढने की कोशिश की है, न ही पिछले कुछ सालों से कोई प्रदूषण टेस्टिंग हुई है । जबकि इसके कई किताबे और खबरे इस पर प्रकाशित हो चुकी हैं । ये मुद्दा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर कई बार चर्चा बन चुका है । 56 साल बाद भी आज हमे ये खबर उस डिवाइस को ढूँढने के लिए लिखनी पड रही है ।
विनीता यादव की स्पेशल रिपोर्ट