जीजीबीएस अपनाकर कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन 45 प्रतिशत कर सकते हैं कम
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के अभियांत्रिकी संकाय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग एवं ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल द्वारा “सस्टेनेबल एंड ड्यूरेबल कंस्ट्रक्शन फॉर बेटर टुमारो” विषय पर वेबिनार का आयोजन भवन सामग्री की अग्रणी निर्माता कंपनी जे.एस.डब्लयू बेंगलुरु के साथ मिलकर किया गया। वेबिनार में जेएसडब्लयू के वाइस प्रेसिडेंट डॉ० एल.आर. मंजुनाथा ने निर्माण कार्यों में पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सीमेंट उत्पादन में जीजीबीएस (ग्राउंड ग्रैन्यूलेटेड ब्लास्ट फर्नेस स्लैग) को अपनाकर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को लगभग 45 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि यदि सीमेंट के निर्माण में पारंपरिक क्लिंकर का उपयोग किया जाता है, तो यह सीमेंट उत्पादन के प्रति टन 920 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। सीमेंट उत्पादन में जी.जी.बी.एस का उपयोग करने से, कार्बन डाइऑक्साइड की इस भारी मात्रा को केवल 65 किलोग्राम प्रति टन तक सीमित किया जा सकता है, जो भारत को आगामी वर्षों में कम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद करेगा। ओ.पी.सी के एक टन के लिए आवश्यक प्राथमिक ऊर्जा (साधारण पोर्टलैंड सीमेंट) 1070 एमजे है। जी.जी.बी.एस के प्रयोग से, प्राथमिक आवश्यक ऊर्जा की जरूरत 760 एमजे प्रति टन है। यह दर्शाता है कि सीमेंट निर्माण में दानेदार ब्लास्ट फर्नेस स्लैग का उपयोग करके पर्यावरणीय प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है। डॉ.मंजूनाथ ने छात्रों को आधुनिक तकनीक पर नज़र रखने की सलाह दी जो पर्यावरण के रक्षक बनने में उनकी मदद कर सकते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/संजय
Submitted By: Upendra Nath Rai Edited By: Sanjay Singh Fartyal Published By: Sanjay Singh Fartyal at Oct 3 2020 10:55PM