आज से शुरू हो रहा संसद का बजट सत्र, जानें क्या होगा खास
पिछले दो महीनों से जारी किसान आंदोलन के बीच शुक्रवार से संसद का बजट सत्र शुरू हो रहा है। सत्र शुरू होने से पहले ही केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच जोर आजमाइश की जमीन तैयार हो गई है।
कांग्रेस समेत 16 विपक्षी दलों ने तीन नए कृषि कानूनों के विरोध और किसान आंदोलन के समर्थन में सत्र के पहले दिन होने वाले राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने की घोषणा की है।
इसके अलावा विपक्ष ने गिरती अर्थव्यवस्था, व्हाट्सएप चैट लीक प्रकरण और चीन से जारी सीमा विवाद मामले में सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है।
कोरोना वायरस महामारी के चलते करीब छह महीने बाद हो रहे संसद के इस सत्र के हंगामेदार रहने की संभावना है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण का बहिष्कार कर विपक्ष ने नए कृषि कानूनों पर सरकार पर एकजुट हमला बोलने की रणनीति बनाई है।
विपक्ष की रणनीति अर्थव्यवस्था, चीन से सीमा विवाद और पत्रकार अर्णब गोस्वामी और बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच व्हाट्सएप चैट मामले में संसद के दोनों सदनों में कार्य स्थगन प्रस्ताव लाने की है। इसके अलावा कई विपक्षी दल एक साथ तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की भी मांग करेंगे।
सरकार व्हाट्सएप चैट लीक मामले को छोड़ कर सभी मुद्दों पर विपक्ष के समक्ष चर्चा का प्रस्ताव रखेगी। सरकार की ओर से किसान आंदोलन, चीन से सीमा विवाद और अर्थव्यवस्था के सवाल पर विपक्षी हमले का जवाब तैयार कराया जा रहा है। सत्र के दौरान सरकार कोरोना वैक्सीन के निर्माण के मामले में अपनी पीठ थपथपाएगी। संभवत: प्रधानमंत्री खुद इस संदर्भ में सरकार का पक्ष रखेंगे।
कांग्रेस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, डीएमके, शिवसेना, सपा, राजद, भाकपा, माकपा, आरएसपी, आईयूएमएल, पीडीपी, एमडीएमके, केरल कांग्रेस, एआईयूडीएफ, आम आदमी पार्टी और एमडीएमके अभिभाषण का बहिष्कार करेंगे।
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने बताया कि हमने आंदोलन कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता दिखाई है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बहिष्कार करने का फैसला लिया है।
विपक्षी दलों के नेताओं ने किसानों के 64 दिनों से चल रहे आंदोलन पर चिंता जताई। 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों, खासकर लाल किला पर उपद्रवियों को रोकने में विफल दिल्ली पुलिस और खुफिया तंत्र के फेल होने पर केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा कि देश की 60 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी है। इन दलों ने कृषि कानूनों को किसान-मजदूर विरोधी बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है।