Budget 2024: अब क्या कहते हैं बजट की पोटली को?

केंद्रीय बजट 23 जुलाई 2024 को पेश किया जाएगा। संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जो बजट पेश करेंगी, उसे 'बही खाता' का नाम दिया गया है। पहले यह ब्रीफकेस में लाया जाता था

केंद्रीय बजट 23 जुलाई 2024 को पेश किया जाएगा। संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जो बजट पेश करेंगी, उसे ‘बही खाता’ का नाम दिया गया है। पहले यह ब्रीफकेस में लाया जाता था, लेकिन 2019 में इसे ‘बही खाता’ कहा जाने लगा। इसे बजट की पोटली भी कहा जाता है।

बही खाता का सफर

हालांकि अब बजट टैब का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका कवर लाल रंग का होता है। बजट डॉक्युमेंट्स ने ब्रीफकेस से बैग, बही खाता और अब टैब तक का सफर तय किया है। आइए जानते हैं कि बजट की पोटली का व्यापारियों से क्या संबंध है और इसे बही खाता क्यों कहा गया।

बही खाता क्या है?

बही खाता व्यवसाय के जरिए किए गए सभी वित्तीय लेन-देन का एक व्यापक और सटीक रिकॉर्ड करने, व्यवस्थित करने और बनाए रखने की प्रक्रिया है। इन लेन-देन में बिक्री, खरीद, व्यय, राजस्व और अन्य वित्तीय गतिविधियां शामिल होती हैं।

ब्रीफकेस से बही खाता तक का सफर

“बजट ब्रीफ़केस” औपनिवेशिक युग का हिस्सा था। यह ग्लैडस्टोन बॉक्स (Gladstone Box) की नकल थी, जिसे ब्रिटिश वित्त मंत्री अपना बजट पेश करते समय संसद में ले जाते थे। विदेशी परंपरा को त्यागकर भारतीय परंपरा को अपनाया गया और बजट दस्तावेज एक लाल रंग के कपड़े में लाए गए। इस कपड़े के ऊपर भारत सरकार का चिह्न था। इसे बजट की पोटली और बही खाता कहा गया, जो पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकलने का प्रतीक है।

लक्ष्मी पूजा में बही खाता

दक्षिण भारत में लक्ष्मी पूजा के दौरान हिसाब-किताब की कॉपी को लाल रंग के कपड़े में लपेटकर रखा जाता है। हिंदू धर्म में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए दीपावली के दिन बही खाता की पूजा की परंपरा है। बही खातों की पूजा करने से माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और उस घर में कभी दरिद्रता नहीं आती है।

व्यापारियों के लिए बही खाता का महत्व

तमाम व्यापारी दिवाली के दिन विशेष रूप से अपने बही खाता की पूजा करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि कारोबार के लिए नए साल की शुरुआत इसी दिन से होती है। इस दिन बही खाते की पूजा करने से व्यवसाय में वृद्धि होती है।

इस प्रकार, बजट की पोटली और बही खाता भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गए हैं, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और पश्चिमी विचारधारा की गुलामी से मुक्त होने की दिशा में एक कदम हैं।

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