समझिए वैक्सीन लगाने के फायदे

ब्रिटिश स्टडी का दावा- वैक्सीन के दोनों डोज के बाद इन्फेक्शन होने का खतरा 60% कम, पर तीन में से एक को कोविड-19 होने का रिस्क

वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बाद भी कोविड-19 इन्फेक्शन हो रहा है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन’ नाम दिया है। भारत और अमेरिका समेत कई देशों में हुई स्टडी में यह बात सामने आई है। यह भी बताया गया है कि वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बाद गंभीर रूप से बीमार होने या अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत काफी हद तक कम हो जाती है। ‘ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन’ रोकने के लिए इजराइल समेत कुछ देशों ने बूस्टर डोज भी लगाना शुरू कर दिया है।

पर कितने लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बाद भी इन्फेक्शन होने का खतरा है? यह अब तक रिसर्चर्स को भी नहीं पता था। इसका जवाब UK की नई स्टडी दे रही है। नई स्टडी में दावा किया गया है कि दोनों डोज लगने के बाद कोविड-19 इन्फेक्शन होने का खतरा 60% कम हो जाता है। यानी तीन में से दो लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लगने के बाद भी इन्फेक्शन होने का रिस्क रहता ही है। इसलिए एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीन लगने के बाद भी मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है।

आइए समझते हैं कि यूके की नई स्टडी क्या है? इससे कोविड-19 वैक्सीनेशन और इन्फेक्शन के बारे में क्या नई जानकारी सामने आई है।

यह स्टडी क्या है और किसने की है?

UK के इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन और मार्केट रिसर्च फर्म इप्सोस मोरी (Ipsos MORI) ने 24 जून से 12 जुलाई के बीच 98,233 नमूने कलेक्ट किए। इसका एनालिसिस कर 4 अगस्त को स्टडी रिपोर्ट जारी की गई है। इस स्टडी को रिएक्ट (REACT) कहा जा रहा है। इससे पहले 20 मई से 7 जून के बीच भी इस तरह की स्टडी कराई गई थी।

नई स्टडी के नतीजे क्या कहते हैं?

UK की नई स्टडी के नतीजे कहते हैं कि 160 में से एक व्यक्ति कोरोना वायरस से इन्फेक्ट हुआ। जिन्हें वैक्सीन के दोनों डोज लगे हैं, उनमें प्रिवेलेंस रेट 0.40% है। यानी 100 में से 40% को वायरस से इन्फेक्शन हुआ है। औसतन तीन में से एक व्यक्ति को वैक्सीनेशन के बाद भी इन्फेक्शन होने का खतरा है।जिन लोगों को वैक्सीन नहीं लगी है, उनकी तुलना में वैक्सीनेटेड लोगों में इन्फेक्ट होने का जोखिम 60% कम हो जाता है। इसमें एसिम्प्टोमेटिक इन्फेक्शन शामिल है। ऐसे लोगों में प्रिवेलेंस रेट 1.21% है। यानी उनके इन्फेक्ट होने का खतरा वैक्सीनेटेड लोगों के मुकाबले तीन गुना अधिक है।इंग्लैंड सरकार ने कोरोना वायरस को काबू करने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों में 19 जुलाई से ढील दी है। इनडोर सेटिंग्स में मास्क पहनने की कानूनी अनिवार्यता भी कई जगहों पर खत्म की गई है। इसका असर यह हुआ कि मई-जून के बीच जुटाए सैम्पल में इन्फेक्शन रेट 0.15% था, जो नई स्टडी में चार गुना बढ़कर 0.63% हो गया है। रिसर्चर्स का दावा है कि जुलाई में इन्फेक्शन रेट कम होने लगा है। यानी कोविड-19 काबू में आ रहा है।

क्या वैक्सीनेटेड लोगों के इन्फेक्ट होने पर भी वायरस फैल सकता है?

नहीं। यह स्टडी कहती है कि दोनों डोज ले चुके लोगों से वायरस के फैलने का खतरा न के बराबर है। UK की स्टडी कहती है कि फुली वैक्सीनेटेड 3.84% लोगों ने कहा कि वे पिछले कुछ दिनों में कोविड-19 इन्फेक्टेड लोगों के संपर्क में आए थे। जो उनमें इन्फेक्शन का कारण बना। उधर, कोविड-19 इन्फेक्टेड लोगों के संपर्क में आने का दावा करने वाले वैक्सीन नहीं लगवाने वालों की संख्या 7.23% थी।सर्वे प्रोग्राम के डायरेक्टर और इम्पीरियल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर पॉल एलियट ने कहा कि कोई भी वैक्सीन इन्फेक्शन से बचाने में 100% इफेक्टिव नहीं है। हम यह देख रहे हैं कि वैक्सीनेटेड लोग भी इन्फेक्ट हो रहे हैं। हमें सावधान रहने की जरूरत है ताकि हम एक-दूसरे को सुरक्षित रख सकें।

क्या इन्फेक्शन रोकने में वैक्सीन इफेक्टिव नहीं है?

इसका जवाब पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) का डेटा देता है। जिन्हें दोनों डोज लगे हैं, उन्हें हॉस्पिटलाइजेशन से बचाने में फाइजर की वैक्सीन 96% और एस्ट्राजेनेका (भारत में कोवीशील्ड) 92% इफेक्टिव साबित हुई है।PHE का अनुमान है कि वैक्सीनेशन प्रोग्राम की वजह से इंग्लैंड में 2.2 करोड़ इन्फेक्शन रोकने में कामयाबी मिली है। यह भी कह सकते हैं कि वैक्सीन ने 52,600 हॉस्पिटलाइजेशन और 35,200 से 60 हजार मौतों को बचाया है।21 जून से 19 जुलाई के बीच का PHE हॉस्पिटलाइजेशन डेटा कहता है कि 1,788 लोगों को डेल्टा वैरिएंट से इन्फेक्शन के बाद हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इनमें से 970 (54.3%) को वैक्सीन नहीं लगी थी। वहीं, 530 (29.6%) को वैक्सीन के दोनों डोज लगे थे।

अब वैक्सीन नहीं लगवाने वाले युवाओं को टारगेट कर रहा है कोरोना?

हां। इस समय 18-29 वर्ष आयु ग्रुप के करीब 28 लाख लोगों को वैक्सीन नहीं लगी है। इनमें गंभीर लक्षण सामने आने का डर बेहद कम है, पर इनके इन्फेक्ट होकर दूसरों को इन्फेक्ट होने का खतरा बढ़ गया है।इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन की स्टडी के मुताबिक 75 वर्ष से कम आयु ग्रुप में वायरस इन्फेक्शन का खतरा बढ़ा है। 13-17 वर्ष आयु ग्रुप में तो प्रिवेलेंस नौ गुना बढ़ा है। मई-जून के सर्वे में यह 0.16% था, जो अब बढ़कर 1.56% हो गया है।

UK के बाहर हुई स्टडीज क्या कहती हैं?

भारत में ICMR ने 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के 677 मरीजों के सैम्पल जुटाए। 86% सैम्पल में डेल्टा वैरिएंट की पुष्टि हुई है। सिर्फ 9.8% केस में मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा और सिर्फ तीन लोगों की मौत हुई। साफ है कि वैक्सीन का एक डोज लगा हो या दोनों डोज, वह आपको मौत से बचा लेगा, पर इन्फेक्शन से नहीं बचा सकेगा।अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (CDC) के मुताबिक अप्रैल से चार महीनों में 13 करोड़ वैक्सीन डोज लगे, पर इस दौरान ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन सिर्फ 10 हजार सामने आए। यानी 10 हजार की आबादी पर 1 इन्फेक्शन। 12 जुलाई तक के आंकड़े कहते हैं कि हॉस्पिटल में भर्ती लोगों में से 97% को वैक्सीन नहीं लगी थी।रोड आइलैंड में प्रिजन सिस्टम में एक स्टडी की गई। कैदियों और गार्ड्स की हर हफ्ते जांच होती है। वहां मार्च से मई के बीच 2,380 वैक्सीनेटेड लोगों में से 27 ही पॉजिटिव पाए गए। भारत में भी वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ने के बाद नए केस मिलने का रेट कम हुआ है।

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