“बॉम्बे हाई कोर्ट की कड़ी फटकार: ‘हर न्यूड पेंटिंग अश्लील नहीं होती’, कस्टम अधिकारियों को 14 दिन में वापस करने का आदेश”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज न्यूड पेंटिंग के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया कि हर न्यूड पेंटिंग को अश्लील नहीं कहा जा सकता।
बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय: न्यूड पेंटिंग को अश्लील नहीं माना जा सकता
मामला का संक्षिप्त विवरण
बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज न्यूड पेंटिंग के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया कि हर न्यूड पेंटिंग को अश्लील नहीं कहा जा सकता। यह मामला उस समय की चर्चा का विषय बना जब मुंबई के बिजनेसमैन मुस्तफा कराचीवाला की फर्म, बी के पोलीमेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, ने लंदन से सात पेंटिंग्स मुंबई लाने का प्रयास किया। कस्टम विभाग ने इन पेंटिंग्स को यह कहते हुए जब्त कर लिया कि ये न्यूडिटी को बढ़ावा दे रही हैं।
कोर्ट का तर्क
कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि सेक्स और अश्लीलता के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। न्यायालय ने कहा, “इस प्रकार की पेंटिंग्स को अश्लील के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।” न्यायाधीश ने कहा कि कला के रूप में न्यूड पेंटिंग्स का अपना महत्व होता है और इन्हें केवल अश्लीलता के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।
कस्टम विभाग को आदेश
अदालत ने कस्टम विभाग को आदेश दिया कि वह मशहूर कलाकार एफएन सूजा और अकबर पद्मसी की पेंटिंग्स को 14 दिन के भीतर रिलीज करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कला का मूल्य और उसके पीछे का संदेश समाज में महत्वपूर्ण होता है, और इसे समझने की आवश्यकता है।
कला और संस्कृति का संरक्षण
इस फैसले के माध्यम से, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कला और संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया। न्यायालय ने कहा कि न्यूड पेंटिंग्स का महत्व केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी होता है। ऐसे में, कस्टम विभाग द्वारा की गई कार्रवाई न केवल कलाकारों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज में कला के प्रति संवेदनशीलता की कमी भी दर्शाती है।
समाज में कला का महत्व
कोर्ट के इस निर्णय ने समाज में कला के महत्व पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है। कला, विशेषकर न्यूड पेंटिंग, विभिन्न भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह मानव शरीर और उसकी सुंदरता का सम्मान करने का एक तरीका भी है। अदालत ने इस बात को स्पष्ट किया कि कला को एक निश्चित दृष्टिकोण से देखने के बजाय, उसके गहन अर्थ और उद्देश्य को समझना आवश्यक है।
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बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय न केवल कस्टम विभाग की कार्रवाई पर एक फटकार है, बल्कि यह कला की स्वतंत्रता और उसके महत्व को भी उजागर करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यूड पेंटिंग्स को अश्लीलता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, और समाज को कला के प्रति खुला दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इस फैसले ने कला जगत में एक नई आशा और प्रोत्साहन का संचार किया है, जिससे कलाकारों को अपने काम को बिना किसी डर के प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता मिलती है।