चीन की नाराजगी दरकिनार

दिल्ली में दलाई लामा के प्रतिनिधियों से मिले अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन, बोले- अफगानिस्तान में भारत के साथ मिलकर काम करेंगे

अमेरिकी विदेश मंत्री का पद संभालने के बाद ब्लिंकन की यह पहली भारत यात्रा है।

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपनी भारत यात्रा में कुछ ऐसा किया है, जिससे चीन को मिर्ची लग सकती है। बुधवार को ब्लिंकन ने दिल्ली में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा के एक प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि सिविल सोसाइटी के नेताओं से मिलकर मुझे खुशी हुई। भारत और अमेरिका हमेशा से लोकतंत्र समर्थक रहे हैं। यह हमारे संबंधों का आधार भी है। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे।

अफगानिस्तान के मुद्दे पर ब्लिंकन ने भारत के साथ काम करने की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने के बाद भी हम वहां के लोगों के हित के लिए काम करते रहेंगे। हम इलाके में शांति स्थापित करना चाहते हैं।

दलाई लामा के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करते एंटनी ब्लिंकन।

ब्लिंकन ने कहा कि हमने अफगानिस्तान के हालातों पर चर्चा की। भारत और अमेरिका दोनों ही अफगानिस्तान में मजबूत सरकार और शांति के समर्थक हैं। क्षेत्र में विश्वसनीय सहयोगी होने के कारण अफगानिस्तान के विकास में भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और आगे भी रहेगा।

एस जयशंकर से मुलाकात के बाद बोले- संबंधों को और मजबूत करेंगे
इससे पहले ब्लिंकन ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन का संकल्प है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूत करने का सिलसिला जारी रखना है। ब्लिंकन ने कहा,”मैं उस काम की गहराई से सराहना करता हूं जो हम एक साथ करने में सक्षम हैं और जो काम हम आने वाले महीनों में एक साथ करेंगे।”

अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि ऐसी कोई चुनौती नहीं है, जिसका हमारे नागरिकों के जीवन पर असर न हो, चाहे वह कोरोना हो, उभरती टेक्नोलॉजी का बुरा प्रभाव हो। इन समस्याओं से कोई भी देश अकेले नहीं निपट सकता। देशों के बीच पहले से कहीं अधिक सहयोग की जरूरत है।

ब्लिंकन ने एस जयशंकर से मुलाकात के दौरान संबंध मजबूत करने पर जोर दिया।

जयशंकर बोले- क्वाड को मजबूत करना होगा
जयशंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर हमारी बातचीत पुराने अनुभवों के आदान-प्रदान से मजबूत होगी। उन्होंने कहा, ‘हिंद-प्रशांत में शांति और समृद्धि हम दोनों के लिए उतनी ही अहम है, जितनी अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक स्थिरता। एक सहयोगी मंच के रूप में क्वाड को मजबूत करना हम दोनों के हित में है। हमें आतंकवाद जैसी मौजूदा चुनौतियों पर मिलकर काम करना चाहिए।’

अजीत डोभाल से की मुलाकात
ब्लिंकन ने NSA अजीत डोभाल से भी मुलाकात की। उन्होंने सुरक्षा, रक्षा, आर्थिक और तकनीक से संबंधित क्षेत्रों में अहम रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा की। संबंधों को अगले स्तर तक ले जाने के लिए लॉन्ग-टर्म उपायों पर खास ध्यान दिया। दोनों ने एक घंटे की बैठक में क्षेत्रीय और ग्लोबल सिक्योरिटी से जुड़े समकालीन और भविष्य के मुद्दों पर बातचीत की।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने NSA अजीत डोभाल से मुलाकात की।

अमेरिकी विदेश मंत्री की भारत यात्रा की बड़ी बातें-

ब्लिंकन भारत में 20 घंटे से ज्यादा रुकेंगे। बुधवार शाम 5:30 बजे वे यहां से रवाना होंगे।अमेरिकी विदेश मंत्री का पद संभालने के बाद ब्लिंकिन की यह पहली भारत यात्रा है।जुलाई में सत्ता में आने के बाद बाइडेन प्रशासन के किसी उच्चाधिकारी की यह दूसरी भारत यात्रा है।इस दौरे से दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, डिजिटल डोमेन, इनोवेशन और सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी।अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि अमेरिका भारत के अग्रणी वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने का समर्थन करता है।

दलाई लामा से क्यों चिढ़ता है चीन?
23 मई, 1951 को एक समझौते के बाद चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। दरअसल चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी में चीन का हिस्सा रहा है इसलिए तिब्बत पर उसका हक है। तिब्बत चीन के इस दावे को खारिज करता है। 1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। उस समय चीन ने कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन करीब 40 सालों बाद चीन में कम्युनिस्ट सरकार आ गई।

विस्तारवादी नीतियों के चलते 1950 में चीन ने हजारों सैनिकों के साथ तिब्बत पर हमला कर दिया। करीब 8 महीनों तक तिब्बत पर चीन का कब्जा चलता रहा। आखिरकार तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के बाद तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया। हालांकि दलाई लामा इस संधि को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि ये संधि जबरदस्ती दबाव बनाकर करवाई गई थी।

मार्च 1959 में खबर फैली कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है। इसके बाद हजारों की संख्या में लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए। आखिरकार एक सैनिक के वेश में दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भागकर भारत पहुंचे। भारत सरकार ने उन्हें शरण दी। चीन को ये बात पसंद नहीं आई। 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा से मुलाकात की थी।

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