‘कल्याण’ के सहारे BJP खोज रही यूपी में जीत का फार्मूला!
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कल्याण सिंह (Kalyan Singh) नहीं रहें… यह खबर देश भर में बिजली की तरह फैली तो बीजेपी कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई। अगर कल्याण सिंह का कद देखना हो तो ज्यादा नहीं 90 के दशक पर नजर दौड़ा लिजीए। फिर शीशे की तरह सबकुछ साफ हो जाएगा कि राम मंदिर आंदोलन को धार देने में उनका कितना बड़ा और अतुलनीय योगदान है। लेकिन फिर भी समझ में न आए तो भगवा पार्टी के मौजूदा शीर्ष पर बैठे नेताओं के चेहरे पर जो शिकन उभरी है उससे ही पता लग जाएगा कि शायद ही कोई हो जिन्होंने कल्याण सिंह की अंगुली थामकर राजनीति नहीं की हो। अगर यूं कहा जाए कि मौजूदा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से उनका विशेष गहरा संबंध रहा तो यह कहना गलत नहीं होगा।
बीजेपी के मौजूदा नेताओं से रहा विशेष संबंध
कल्याण सिंह के विशाल व्यक्तित्व पर नजर दौड़ाया जाए तो बीजेपी (BJP) के सभी मौजूदा पीढ़ी के नेता उन्हें बाबुजी के नाम से ही पुकारते थे। जो दर्शाता है कि कल्याण सिंह का कद बीजेपी में कितना बड़ा था। यहीं नहीं कभी उन्हें हिंदू हृदय सम्राट तक भी कहा गया।
कभी हिंदुत्व के पोस्टर बॉय थे कल्याण
एक समय था कि मंडल कमीशन के लहर पर सवार दलों की जमीन खिसकाने के लिये बीजेपी ने लालकृष्ण आडवानी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या यात्रा निकाली तो कल्याण सिंह ही पोस्टर ब्वाय के तौर पर तेजी से उभरें। कल्याण सिंह की उत्तरप्रदेश में लोकप्रियता एक समय चरम पर थी। जब वे चुनावी मंच से ‘राम मंदिर के लिये सौ बार सत्ता को ठोंकर मारने की’ बात कहते तो बीजेपी कार्यकर्ताओं में जोश भर जाता था। कल्याण सिंह ऐसे नेताओं में जल्द ही शुमार हो गए जब पूरे देश भर में राम मंदिर आंदोलन के कारण उनकी चर्चा सबसे ज्यादा होने लगी।
जब अटल से हुई अनबन तो…
लेकिन वो कहावत है कि सत्ता कभी-कभी अपने साथ कई बुराईयां भी लाती है। बहुत हद तक कहा जाए तो कल्याण सिंह भी इसके लपेटा में आ गए तो बहुत तेजी से नीचे लुढ़कते गए। जिस कारण बीजेपी में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो उनके ही समकालीन अटल बिहारी,आडवाणी और जोशी को मिला। उन्होंने जाने-अनजाने में बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ आवाज उठाई तो लगातार हाशिये पर जाने को मजबूर हो गए।
यूपी में बीजेपी के लिये थे तारणहार
खैर लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि कल्याण सिंह का महत्व घट गया। हालांकि इतना जरुर है कि जब कभी-भी कल्याण सिंह कमजोर हुए तो उत्तरप्रदेश में बीजेपी भी कमजोर हुई। बीजेपी को यह कसक लंबे समय तक यूपी में सालते रहा। लेकिन कल्याण सिंह को जब कभी-भी याद किया जाएगा तो उन्हें राम मंदिर आंदोलन के लिये अगुआ नेता के तौर पर याद किया जाएगा। वे ओबीसी वर्ग से तालुक्कात रखते थे। ऐसे में जब अगले साल उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है-बीजेपी अपने पसंदीदा मुद्दे राम मंदिर को नए सिरे से भुनाने की कोशिश तेज करेगी। खासकरके कल्याण सिंह के सहारे बीजेपी यूपी में बड़ा दांव खेल सकती है। उन्हें कम से कम विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक पार्टी जिंदा रखना चाहेगी।
आगामी यूपी चुनाव में भी रहेंगे कल्याण प्रासंगिक
यहां यह बताना जरुरी है कि लोकतंत्र में व्यक्तित्व का बहुत ही महत्व होता है। खासकरके भारतीय लोकतंत्र के पिछले सात दशक पर नजर दौड़ाया जाए तो समय-समय पर ऐसे नेता हुए है जो अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रहे है। इसलिये ऐसे नेता गुजर जाने के बाद भी पार्टी को फायदा पहुंचाते रहते है। इसमें जवाहर लाल नेहरु,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लिया जा सकता है। आने वाले दिनों में ऐसा ही नाम कल्याण सिंह का देखने को मिले तो आश्चर्य नहीं होगा। कम से कम कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने वक्त तिरंगे के उपर लपेटे गए भगवा झंडा से इसे शुरुआत कही जा सकती है।