करोड़ों का चंदा बटोर चुकी है भाजपा, लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की चुनाव में मदद के लिए पैसे नहीं!
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कारण पैसा या फिर कोई ओर वजह?
भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में ये कहकर चौंका दिया कि उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, क्योंकि उनके पास चुनाव लड़ने के इतने पैसे नहीं है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनसे तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश से लड़ने की पेशकश की थी, लेकिन काफी सोचने के बाद उन्होंने मना कर दिया क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वह चुनाव लड़ सकें।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या भाजपा चुनाव के प्रचार के लिए चंदे का पैसा उम्मीदवार को नहीं देती? क्या उम्मीदवार अपने पैसे लगाकर चुनाव लड़ता है? फिर चंदे के पैसे का क्या करती है भाजपा?
अगर आपको याद हो तो हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि उनकी पार्टी के अकाउंट्स फ्रीज कर दिए गए हैं, ऐसे में उनकी पार्टी के पास पैसे नहीं है कि वह अपने उम्मीदवारों की रेल यात्रा या अन्य खर्चों को वहन कर सकें।
उनके इस वक्तव्य से ये लब्बोलुबाब निकलता है कि पार्टी उम्मीदवारों के खर्चे निकालती है और इसके लिए वह कंपनियों और दिग्गजों से चंदा लेती है।
हाल ही में इलेक्टरोल बॉँन्ड से सामने आया था कि भाजपा को करोड़ों का चंदा मिला था, तो फिर भाजपा के पास निर्मला सीतारमण जैसी उच्च कद्दावर नेता के चुनावों में पैसा देने में आनाकानी क्यों है?
राज्यसभा सांसदों को दिया टिकट
इस बार देखने वाली बात ये भी है कि भाजपा ने पीयूष गोयल, भूपेन्द्र यादव, राजीव चन्द्रशेखर, मनसुख मंडाविया और ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई मौजूदा राज्यसभा सदस्यों को भाजपा का उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा संदेशखाली हिंसा पीड़िता रेखा पात्रा को भी टिकट दिया है। पीड़ित उम्मीदवार का खर्चा भाजपा के चंदा फंड से ही जाएगा।
और क्या वजह हो सकती है?
अगर निर्मला सीतारमण चुनाव लड़ती तो यह उनका लोकसभा का पहला चुनाव होता। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि अपने बयान में कहा ‘मुझे यह भी समस्या है कि आंध्र प्रदेश या तमिलनाडु। जीतने लायक अलग-अलग मानदंडों का भी सवाल है… आप इस समुदाय से हैं या आप उस धर्म से हैं? मैंने नहीं कहा, मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा करने में सक्षम हूं।’
उनके बयान को देखा जाए तो पता चलता है कि भाजपा की दक्षिण में वो पकड़ नहीं है, जो उत्तर भारत में है। निर्मला सीतारमण इस ज़मीनी हकीकत से वाकिफ है, इसलिए वह चुनाव लड़ने से कतरा रही है। पैसों की तंगी का बहाना देने की दो ही वजह समझ आती है, एक या तो भाजपा उन्हें चुनाव लड़ाने की इच्छुक नहीं है या फिर दूसरा वह खुद ही दक्षिण भारत की जनता के बीच जाने से घबरा रही है क्योंकि वहां क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है।