RSS की 50 साल से ज्यादा पुरानी वो रणनीति जो BJP की सत्ता वापसी में निभाएगी बड़ा रोल
बिरसा मुंडा जयंती पर मोदी का दौरा:
PM नरेंद्र मोदी 15 नवंबर को मप्र की राजधानी भोपाल में रहेंगे। यूं तो वे कई कार्यक्रमों में शामिल होंगे, लेकिन सबसे खास है जनजातीय महासम्मेलन। इसमें प्रदेश के 2 लाख से ज्यादा आदिवासियों को लाने की तैयारी है। मप्र सरकार आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा पहले ही कर चुकी है।
दरअसल इस पूरी मुहिम के पीछे BJP का कम और RSS का ज्यादा फोकस है। साल 1952 में मप्र के जशपुर (अब छत्तीसगढ़ में) में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना के साथ ही संघ ने ट्राइबल्स के बीच काम करना शुरू कर दिया था।
पिछले 20-25 सालों में संघ का फोकस बहुत ज्यादा बढ़ा, जिसका फायदा BJP को मिलना शुरू हुआ और साल 2014 में पार्टी देशभर में जीती। 2019 में मिली जीत 2014 से भी बड़ी रही।
धर्मांतरण रोकने के लिए संघ सालों से काम कर रहा
‘मिशन बंगाल : एक सैफ्रॉन एक्सपेरिमेंट’ के लेखक स्निग्धेंदु भट्टाचार्य कहते हैं, ‘ट्राइबल्स को संघ आदिवासी नहीं कहता बल्कि वनवासी कहता है, क्योंकि आदिवासी का मतलब होता है जो इसी जमीं का बाशिंदा हो। यदि ऐसा है तो फिर ये साबित होता है कि आर्य भारत के मूलनिवासी नहीं थे। संघ आर्यों को भारत का मूलनिवासी बताता है इसलिए वो आदिवासियों को वनवासी कहकर पुकारता है।’
भट्टाचार्य के मुताबिक, मप्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा के साथ ही नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में आदिवासियों की संख्या बहुतायत में है। शुरूआती सालों में संघ यहां कन्वर्जन को रोकने के लिए गया था, क्योंकि आदिवासियों को बड़ी संख्या में क्रिश्चियन बनाया जा रहा था। बाद में वो इन्हें हिंदू सोसायटी से जोड़ने में लग गया जो अभियान अभी तक चल रहा है।
पूरे देश के ट्राइबल बेल्ट में BJP को इससे चुनावी फायदा भी मिला है। RSS ने आदिवासियों के बीच स्कूल खोले, हॉस्टल बनाए वे एक रिफॉर्म लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे उनका एजेंडा आदिवासियों को हिंदू सोसायटी से जोड़ना है।
वे ये मानते हैं कि आदिवासी हिंदू ही हैं, जबकि कई आदिवासी संगठन इसका विरोध करते हैं क्योंकि वे खुद को हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म का मानते हैं। RSS इसका मुखर विरोधी है।
आखिर RSS करना क्या चाहता है? इस सवाल के जवाब में भट्टाचार्य कहते हैं, RSS के लिए BJP की जीत से भी बड़ी अपनी आइडियोलॉजी की जीत है। वे आदिवासियों को हिंदू बताकर हिंदूओं की संख्या सबसे ज्यादा करना चाहते हैं। कुछ ही दिनों में जनगणना भी होनी है। RSS चाहता है कि ट्राइबल्स जिनके बीच वो सालों से काम कर रहा है, अब वो जनगणना में खुद का धर्म हिंदू लिखें।
जनगणना में अभी धर्म में सरना का कॉलम तो नहीं है, लेकिन अन्य का कॉलम जरूर हैं। बंगाल में ममता बनर्जी भी सरना धर्म का समर्थन कर चुकी हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन लगातार सरना को एक धर्म के तौर पर शामिल करने की मांग कर रहे हैं। ऐसा होता है तो हिंदूओं की संख्या कम होगी जो RSS की आइडियोलॉजी की एक तरह से हार होगी। इसलिए वे ऐसा नहीं होने देंगे।
संविधान ने जनजातीय शब्द दिया तो आदिवासी क्यों कहें

BJP प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल के मुताबिक, आजादी की लड़ाई में जनजातीय वर्ग का अहम रोल रहा है, उन्हें याद करना गौरव का विषय है। ये राष्ट्र और राष्ट्रवादी संगठनों का विषय है। सवाल तो उस पर खड़े होते हैं, जिसका ये विषय नहीं है।
वे कहते हैं, जो देश की आइडियोलॉजी है, वही संघ और BJP की आइडियोलॉजी है। जो लोग जनजातीय वर्ग को हिंदू नहीं मानते, वे देश विरोधी हैं। वनवासी तो प्रकृति पूजक हैं। बड़ा महादेव को मानने वाले हैं।
रामायण, महाभारत, वेद, पुराणों में इनका जिक्र मिलता है। हम इन्हें आदिवासी इसलिए नहीं कहते क्योंकि, संविधान ने हमें अनुसूचित जनजाति शब्द दिया है। जो संविधान में है, वही हम कह रहे हैं। जो लोग आदिवासी कह रहे हैं, दरअसल वे संविधान का मखौल उड़ा रहे हैं।
सत्ता बदल सकती है अनुसूचित जनजाति…. समझिए पॉलिटिकल इम्पैक्ट का गणित
साल 2011 की आबादी के हिसाब से देशभर में शेड्यूल ट्राइब्स, यानी ST की आबादी 8.2% है। लोकसभा की 543 में से 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं।
मप्र में जहां बिरसा मुंडा की जयंती मनाई जा रही है वहां ST पॉपुलेशन 21.1% है और यहां विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं।
साल 2018 में हुए मप्र विधानसभा के चुनाव में BJP को बड़ा झटका लगा था, क्योंकि SC, ST कम्युनिटी उससे दूर हो गई थी।
ST के लिए रिजर्व 47 सीटों में से BJP के खाते में सिर्फ 16 आईं थीं, जबकि 2013 में पार्टी ने ST की 31 सीटें जीती थीं।
ऐसे में आदिवासियों को दोबारा पार्टी के साथ जोड़ने के लिए बड़े स्तर पर प्रदेश भर में अभियान चल रहा है। कुछ दिनों पहले इसी सिलसिले में गृहमंत्री अमित शाह भी जबलपुर आए थे।
दलितों और आदिवासियों के स्थानीय नायकों को सम्मान दिया जा रहा है। उन्हें संगठन में शामिल किया जा रहा है। मप्र में ये एक्सपेरिमेंट भी है। यहां पॉजिटिव असर दिखा तो पूरे देश में संघ इसे लागू कर सकता है।
RSS के काम का BJP को फायदा मिलना ही है
मप्र के सीनियर जर्नलिस्ट एनके सिंह कहते हैं, RSS लंबे अरसे से आदिवासी इलाकों में काम कर रहा है। वे नॉर्थ ईस्ट के कठिन इलाकों तक भी पहुंचे हैं और आदिवासियों को हिंदू समाज से जोड़ने का काम कर रहे हैं। इसका पॉलिटिकल फायदा BJP को मिलना ही है और ये गलत भी नहीं है, क्योंकि जब आप राजनीति में होते हैं तो ये सब करते ही हैं। कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियां सिर्फ बोलने का काम कर रही हैं।
कांग्रेस के पास तो कोई राष्ट्रीय आदिवासी नेता भी नजर नहीं आता, लेकिन संघ ग्राउंड पर काम कर रहा है, जिससे पॉलिटिकल फायदा BJP को मिल रहा है।
खबरें और भी हैं…