जानिए क्या है बिहार में बीजेपी का हाल!
महागठबंधन के सात दलों के मिलन से होने वाली वोटों की गोलबंदी को तोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
बिहार में नीतीश कुमार की जुदाई को लेकर भाजपा की बेचैनी अकारण नहीं है। महागठबंधन के सात दलों के मिलन से होने वाली वोटों की गोलबंदी को तोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। बाकी दलों को छोड़ भी दें तो राजद-जदयू और कांग्रेस के आधार वोटों से ही महागठबंधन अपराजेय बन सकता है। 2015 के विधानसभा चुनाव में इस मिश्रण के प्रभाव को भाजपा झेल चुकी है। बदले हालात में भाजपा के सामने सिर्फ एक रास्ता खुल सकता है।
जंगल राज के नारे से जग सकती है उम्मीद
यह कानून व्यवस्था के मोर्चे पर राज्य सरकार की चूक से संभव है। कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी तो भाजपा जोर से नारा लगाएगी-देखो, आ गया। जंगलराज आ ही गया। इसी मुद्दे पर राज्य की जनता एनडीए के पक्ष में जुटी थी, नीतीश कुमार अपराजेय बन गए थे। सवाल यह उठता है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार भाजपा को यह अवसर देंगे।
पिछले चार चुनावों के परिणाम पर गौर करें। भाजपा के वोट बैंक में बड़ा उतार-चढ़ाव हुआ है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का जादू सिर चढ़ कर बोला। भाजपा को 29.40 प्रतिशत वोट मिला। 19 महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए तो उसके वोट में पांच प्रतिशत की गिरावट आई। विधायकों की संख्या 2010 के 91 के मुकाबले 53 पर सिमट गई। उधर, जदयू के शामिल होते ही महागठबंधन का ग्राफ बढ़ गया।