कश्मीर से कन्याकुमारी जहां जाइए वहां मिलेंगे बिहारी, आखिर बिहार से क्यों होता है इतना पलायन?
जम्मू-कश्मीर में आतंकी आए दिन गैर-कश्मीरी मजदूरों को निशाना बना रहे हैं। बीते रविवार को भी 3 बिहारी मजदूरों को गोली मार दी गई। हमले में दो मजदूरों की मौत हो गई। इन हमलों के बाद बिहार के लोग और पलायन का मुद्दा चर्चा में है। इससे पहले लॉकडाउन वक्त यूपी, बिहार समेत कई राज्यों के मजदूर चर्चा में आए थे। जब वो हजारों किलोमीटर का पैदल सफर करके अपने घरों की ओर लौटे थे।
समझते हैं, आखिर क्या वजह है कि बिहारी लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं? बिहार के आर्थिक हालात कैसे हैं? शिक्षा की स्थिति क्या है? और स्वास्थ्य सुविधाओं को मामले में बिहार देश में कहां खड़ा है?…
बिहार से पलायन के आंकडे़
1951 से लेकर 1961 तक बिहार के करीब 4% लोगों ने दूसरे राज्य में पलायन किया था। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के दौरान 93 लाख बिहारियों ने अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन किया। देश की पलायन करने वाली कुल आबादी का 13% आबादी अकेले बिहार से है। जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है।
पलायन की वजह क्या है?
बिहारियों के पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार है। आंकड़े बताते हैं कि आधे से ज्यादा बिहारी रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।
राज्य के आर्थिक हालात
2021-22 में बिहार का कुल बजट 18 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का था। कुल रोजगार में करीब 45% हिस्सेदारी खेती, मछली पालन और वन आधारित गतिविधियों की थी। राज्य का हर चौथा पुरुष कंस्ट्रक्शन और मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में काम कर रहा था।बिहार इकोनॉमिक सर्वे बताता है कि बिहार की एक फैक्ट्री में काम करने वाले वर्कर को हर साल 1.29 लाख रुपए मिलते हैं। वहीं, पड़ोसी राज्य झारखंड में हर वर्कर को सालाना 3.44 लाख मिलते हैं। बिहार की एक फैक्ट्री औसतन 40 लोगों को रोजगार देती है। वहीं, हरियाणा में एक फैक्ट्री औसतन 120 लोगों को रोजगार देती है।
बिहार में शिक्षा का हाल
2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार में साक्षरता दर 61.80 है, जो कि देश में सबसे कम है। स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स 2019 में 20 बड़े राज्यों में बिहार 19वें नंबर पर है। इस इंडेक्स में केरल टॉप पर है।प्राइमरी स्कूलों में बिहार में एनरॉलमेंट रेशो 100% है, लेकिन सेंकडरी स्कूल तक आते-आते एनरॉलमेंट रेशो 47% हो गया है। यानी बड़ी क्लासेस में एनरॉलमेंट रेशो बहुत ज्यादा गिर जाता है।इसी तरह प्राइमरी से अपर प्राइमरी लेवल का ट्रांजिशन रेट में भी बिहार सबसे खराब राज्यों में तीसरे नंबर पर है। प्राइमरी से अपर प्राइमरी लेवल ट्रांजिशन रेट यानी 5वीं क्लास से 6ठीं क्लास में जाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या। बिहार में ट्रांजिशन रेट 76.1 है यानी 5वीं क्लास में पढ़ रहे 24% स्टूडेंट्स 6ठीं क्लास में जाकर आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते।
बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल
हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट 2019 के आंकड़े बताते हैं कि टोटल फर्टिलिटी रेट, लो बर्थ रेट, सेक्स रेशो वे पैमाने हैं, जिनकी वजह से बिहार दूसरे राज्यों की तुलना में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में पिछड़ रहा है।
नियोनेटल मोर्टालिटी रेट
जन्म के बाद से 28 दिन तक के दिनों को नियोनेटल पीरियड कहा जाता है। नियोनेटल मोर्टालिटी रेट यानी 1 हजार बच्चों में से कितने बच्चों की मौत जन्म के 28 दिन के भीतर ही हो गई।
बिहार इस मामले में सबसे खराब राज्यों में 6ठें नंबर पर है। बिहार में नियोनेटल मोर्टालिटी रेट 28 है, वहीं केरल में ये 6 है। जन्म के एक महीने के भीतर ही बच्चे की मौत हो जाने का सीधा-सीधा संबंध पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं से है।
इसी तरह अंडर 5 मोर्टालिटी रेट में भी बिहार 6ठें नंबर पर है। अंडर 5 मोर्टालिटी रेट यानी जन्म के 5 साल के भीतर ही बच्चों की मौत हो जाना। बिहार में ये रेट 48 है, वहीं केरल में 11।
अस्पतालों में होने वाली डिलीवरी
मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए ये जरूरी हैं कि बच्चे की डिलीवरी अस्पताल में हो। बिहार में ये आंकड़ा 57.1 है यानी कुल डिलीवरी में से 57 प्रतिशत बच्चों की डिलीवरी ही अस्पतालों में होती है। बिहार के बाद उत्तर प्रदेश आता है, जहां 48% डिलीवरी अस्पतालों में नहीं होती। इसी तरह बिहार में जिला अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की आधे से ज्यादा पोस्ट खाली है। एक जिले में केवल 5 कार्डियक केयर यूनिट है।
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