कहा गांधी और नेहरू ने भगत सिंह को बचाने से कर दिया था इंकार? जानिए सच्चाई
नेहरू के बारे में भगत सिंह के क्या विचार थे ? क्या वाक़ई महात्मा गांधी ने फांसी से बचाने की कोशिश नहीं की थी ? ये वो सवाल है जो सोशल मीडिया के युग में रह रह कर उठने लगे हैं | कई बार इन सवालों को राजनीति फायदे के लिए सियासत की रोटी सैंकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है | पर सच क्या है… क्या वाकई गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की | क्या वाकई नेहरू भगत सिंह से जेल में मिलने नहीं गए | आज इसी के बारे में बताने जा रहे हैं हम….
आज आजा़दी के एक ऐसे मतवाले को याद करने का दिन है | जिसके लिए आजा़दी ही उसकी दुल्हन थी | आज का दिन ज़मीन-ए-हिन्द की आज़ादी के लिए हंसते हंसते फांसी पर चढ़ जाने वाले उस परवाने को याद करने का दिन है | जिसके ज़ज्बातों से उसकी कलम इस कदर वाकिफ थी कि उसने जब इश्क़ भी लिखना चाहा तो कलम ने इंकलाब लिखा | आज का दिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह को याद करने का दिन है | भगत सिंह भारत मां के वही सच्चे सपूत हैं, जिन्होंने अपना लहू वतन के नाम किया तो हमें आजादी मिली |
शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्मदिन
आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्मदिन है | 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में जो अब पाकिस्तान में वहीं भगत सिंह का जन्म हुआ था | गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रितानियां हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा | छोटी उम्र से ही उसके लिए संघर्ष किया और फिर देश में स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया | वह शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है | आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए किसी प्रतीक की तरह बने हुए हैं |
हालांकि यह बहस भी साथ-साथ चलती रहती है कि भगत सिंह जिन्होंने महज़ 23 साल की उम्र में अपनी जान देश के लिए दे दी | उनको दूसरे स्वतंत्रा सेनानियों की तरह पहली पंक्ति में जगह नहीं मिलती | शिकायत खास तौर पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू को लेकर रहती है |
नेहरू और गांधी पर लगते हैं कई इलज़ाम !
आज के दौर में जब नेहरू और गांधी पर कई तरह के इल्ज़ाम लगते हैं तो उनमें से एक यह भी है कि अगर नेहरू और गांधी चाहते तो भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव को फांसी से बचाया जा सकता था | वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू पर यह भी इल्ज़ाम लगता है कि उन्होंने अपनी चतुराई से इतिहास के पन्ने में अपने लिए वह जगह बना लिया जो भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस को मिलना चाहिए था |
ऐसे में जब आज हर बात के लिए नेहरू और गांधी को कठघरे में डाला जा रहा है तो यह जानना जरूरी है कि भगत सिंह खुद जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी के बारे में किस तरह का विचार रखते थे | साथ ही इस सवाल का जवाब भी बताएंगे कि क्या वाक़ई महात्मा गांधी ने भगत सिंह को फांसी से बचाने का प्रयास नहीं किया था |
बहरों को जगाने के लिए धमाके की जरूरत होती है : भगत सिंह
दरअसल पूर्ण स्वराज को लेकर गांधी और भगत सिंह के रास्ते बिलकुल अलग थे | गांधी अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानते थे | जबकि भगत सिंह का साफ मानना था कि बहरों को जगाने के लिए धमाके की जरूरत होती है |
जब गाँधी जी को दिखाए गए काले झंडे
1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी तब तक उनका कद भारत के सभी नेताओं की तुलना में अधिक हो गया था | भगत सिंह की फांसी के तीन दिन बाद, कांग्रेस के कराची अधिवेशन हुआ | उस वक्त देश भर में भगत सिंह की फांसी का विरोध नहीं करने के लिए गांधी के खिलाफ गुस्से का माहौल था | जब गांधी अधिवेशन में शामिल होने के लिए पहुंचे, तो नाराज युवाओं द्वारा काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की गई | यह वह वक्त था जब भगत सिंह युवाओं के प्रतीक बन गए थे |
क्या गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया ?
अब सवाल कि क्या गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया | इसका जवाब है.. बिल्कुल किया था… गांधी और भगत सिंह का आजादी पाने को लेकर रास्ता बेशक अलग रहा हो और इसको लेकर दोनों के बीच मतभेद भी थे, लेकिन अंतिम अवस्था तक आते-आते गांधी को भगत सिंह के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति हो चली थी | जब भगत सिंह को तय समय से एक दिन पहले ही फांसी दिए जाने की खबर मिली तो गांधी काफी देर के लिए मौन में चले गए थे |
महात्मा गांधी ने 23 मार्च 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी | इस बात का जिक्र My Life is My Message नाम की किताब में है |
लेख जिसमे बोस और नेहरू के नजरिये की तुलना की है
भगत सिंह जवाहर लाल नेहरू को लेकर क्या सोचते थे.. और क्या वह सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित थे | इस सवाल का जवाब 1928 में भगत सिंह द्वारा लिखे गए एक पत्र से मिल जाता है | किरती नामक एक पत्र में ‘नए नेताओं के अलग-अलग विचार’ शीर्षक से भगत सिंह ने एक लेख लिखा था | इस लेख में उन्होंने बोस और नेहरू के नजरिये की तुलना की है | भगत सिंह ने अपने इस लेख में जहां एक तरफ नेहरू को अंतरराष्ट्रीय दृष्टि वाला नेता माना तो वहीं सुभाष चंद्र बोस को प्राचीन संस्कृति के पक्षधर के रूप में स्वीकार किया….भगत सिंह के लेख से साफ था.. कि वह बोस से ज्यादा नेहरू को तवज्जो देते थे | उन्होंने लेख में लिखा है कि पंजाब के युवाओं को बौद्धिक खुराक की शिद्दत से जरूरत है और यह उन्हें सिर्फ नेहरू से मिल सकती है | ये वो बातें है जो भगत सिंह और महात्मा गांधी और जवारलाल नेहरू से जुड़ी है |