बेगूसराय : गांव से विदेश तक पहुंचता है छठ का सबसे प्रसिद्ध प्रसाद “ठेकुआ”,जाने क्या है इसकी विशेषता

बेगूसराय : सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ शुरू हो चुका है। महापर्व के दूसरे दिन आज गुरुवार को दिनभर उपवास कर देर शाम खरना पूजन करेंगी। गांव से जुड़े इस महापर्व में भी अब आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा है, विभिन्न तरीके के प्रसाद बनाए जाने लगे हैं। लेकिन आज भी एक प्रसाद कॉमन है और वह है ठेकुआ। ठेकुआ एक ऐसा प्रसाद है जो हर अमीर से गरीब घरों में छठ में बनाकर सूर्य देव को और छठी मैया को चढ़ाया जाता है। इसके लिए नहाय-खाय के दिन बुधवार को ही गेहूं को धोकर साफ कर लिया गया है।

ठेकुआ के डिजाइन भले ही अलग-अलग होने लगे हैं, लेकिन इसका स्वाद आज भी वही है जो दशकों पूर्व था। अंतर बस इतना है कि पहले यह ठेकुआ प्रातः कालीन पूजा के बाद गांव-गाव में रिश्तेदारों तक पहुंचाए जाते थे और अब देश के कोने-कोने ही नहीं विदेश तक भेजे जा रहे हैं। जिनके भी परिजन विदेश में रह रहे हैं, उन तक कुरियर के माध्यम से यह भेजा जा रहा है। प्रोफेसर कॉलोनी के राजेश कुमार ने बताया कि उनकी बहन समेत चार रिश्तेदार यूएसए में रहते हैं और हर बार छठ के बाद उन्हें न ठेकुआ का प्रसाद हम लोग भेजते हैं।
लोक आस्था के महापर्व छठ में ठेकुआ का अलग महत्व है और इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ ही माना जाता है। बिहार में स्वादिष्ट व्यंजन निर्माण की परंपरा पुरानी समय से समृद्ध रही है और छठ के ठेकुआ का तो कहना ही क्या। लोकगीत के मधुर धुनों पर झूमती महिलाएं जब ठेकुआ बनाती हैं तो इसमें ना सिर्फ चीनी और गुड़, बल्कि महिलाओं के सुमधुर गीत की मिठास भी घुल जाती है। कहा जाता है कि सूर्य देव और छठी मैया को भी ठेकुआ काफी पसंद है, जिसके कारण इसका स्वाद और दोगुना हो जाता है। आज भी प्रातः कालीन अर्घ्य समाप्त होते ही प्रसाद रिश्तेदारों के यहां पहुंचाने का प्रचलन है।
लेकिन प्रसाद में खासकर ठेकुआ का आदान-प्रदान जरूर किया जाता है। बेटियां अपने मायके से आने वाले प्रसाद में ठेकुआ का इंतजार करते रहती है। यूं ठेकुआ सालों भर बनाए जाते हैं, पहले के जमाने में जब लोग कहीं बाहर जाने लगते थे तो ठेकुआ बनाकर दे दिया जाता था। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यंजन है जो महीना-दो महीना तक भी खराब नहीं होता है, इसके स्वाद में कोई अंतर नहीं होता है।

 

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