सावधान हों जाएं पुरुष, लेंगे टेंशन तो बन सकते हैं नपुंसक !
बीएचयू जीव विज्ञान विभाग में चूहों पर हुए शोध से मिली जानकारी। प्रतिदिन केवल 1 से 3 घंटे का तनाव प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा ।
वाराणसी। प्रतिस्पर्धापूर्ण जीवन में अत्यधिक तनाव, सही पोषण व आहार न मिलने, कैफीन के सेवन से जहां लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। वहीं प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) जीव विज्ञान विभाग के शिक्षक डॉ. राघव कुमार मिश्रा के निर्देशन में रिसर्च स्कॉलर अनुपम यादव के शोध में यह जानकारी सामने आई है।
शोध में पता चला है कि एक महीने के मानसिक तनाव ने स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों को आधा कर दिया है। प्रतिदिन केवल 1 से 3 घंटे का तनाव ही इसके लिए काफी है। तनाव शरीर में टेस्टेस्टोरॉन यानी सेक्स मैसेंजर हार्मोन के ही उत्पादन दर को घटा दे रहा है। सहायक प्रोफेसर डॉ. राघव मिश्रा और रिसर्च स्कॉलर अनुपम यादव ने यह रिसर्च चूहों पर किया है।
उन्होंने चूहों को 3 ग्रुप में बांट कर पूरे एक महीने तक इनका अध्ययन किया। इसमें एक सामान्य चूहा, दूसरा ग्रुप जिन्हें स्ट्रेस दिया गया और तीसरा जिन्हें थोड़ा कम देर तक तनाव मिला। इस शोध का प्रकाशन पुरुष प्रजनन शरीर विज्ञान के विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित जर्नल एन्ड्रोलोजीया में हुआ है। शुक्रवार को प्रो. राघव कुमार मिश्र ने बताया कि चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया कि सब-क्रोनिक तनाव से ग्रस्त वयस्क चूहों में ऐसे लक्षण विकसित हुए जो प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। चूहों को 30 दिनों की अवधि के लिए हर दिन डेढ़ से तीन घंटे के लिए सब-क्रोनिक तनाव में रखा और शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा को मापा। उन्होंने बताया कि अध्ययन में पाया कि सब-क्रोनिक तनाव से ग्रस्त वयस्क चूहों में ऐसे लक्षण विकसित हुए जो प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
उन्होंने बताया कि चूहों के दैनिक शुक्राणु उत्पादन में गंभीर गिरावट आई। इसके साथ ही शुक्राणु में रूपात्मक या संरचनात्मक असामान्यता भी देखने को मिली। इसके अलावा शुक्राणु की मूल संरचना में भी असामान्यता देखने को मिली। उन्होंने बताया कि चूहों पर हुआ रिसर्च मॉडल इंसानों पर लागू होता है। इंसानों में स्पर्म काउंट 39 मिलियन से अधिक होना चाहिए। प्रो. मिश्र ने बताया कि चूहों की चंचल आदतों के अपोजिट माहौल तैयार करना ही उनके लिए सबसे बड़ा मेंटल स्ट्रेस है। इसे सब क्रोनिक एक्सपोजर यानी कि साइकोलॉजिकल स्ट्रेस भी कहा जाता है। 30 दिनों तक लगातार चूहों को इस तनाव की स्थिति से गुजारा गया। प्रजनन के दौरान उनके स्पर्म काउंट को चेक किया गया।
उन्होंने बताया कि वृषण की आंतरिक संरचना में भी सब-क्रोनिक तनाव के कारण परिवर्तन पाया गया। इससे वृषण में अर्धसूत्रीविभाजन और अर्ध सूत्री विभाजन के बाद जर्म सेल कैनेटीक्स को बाधित करके दैनिक शुक्राणु उत्पादन भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ। प्रो. मिश्र ने बताया कि यह सब-क्रोनिक तनाव और पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बीच संबंधों का अध्ययन करने वाले कुछ चुनिंदा विस्तृत कार्यों में से एक है। यह अध्ययन मनोवैज्ञानिक तनाव और प्रजनन कल्याण के संबंध में विश्लेषण के नए क्षेत्रों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।