फ़िरोज़ के समर्थन में उतरा बनारस सौहार्द की मिसाल
ये मेरा इंडिया, आई लव इंडिया…
फिरोज़ का विरोध भाईचारे के हसीन चेहरे पर कलंक नहीं काला टीका है
सौहार्द की मिसाल बन गया वाराणसी हिंदू विश्वविद्यालय में फिरोज़ ख़ान का विरोध
वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिरोज़ ख़ान का विरोध करने वाले लोगों की तादाद दस होगी तो फिरोज़ के समर्थन में दसियों करोड़ हिन्दू भाई मुखर हो गये हैं। सोशल मीडिया पर प्रो. फिरोज़ खान के समर्थन का सैलाब आ गया है। हिन्दुत्व के पैरोकार, धर्म के पाबंद और भाजपा के समर्थक भी फिरोज के विरोध का विरोध कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि नफरत की जरा सी गर्मी ने मोहब्बत की शीतल फुहारें बरसा दीं। यानी हमारे छोटे से कलंक की भी कीमत है। हमारा कलंक काला टीका बनकर गोरेपन को क़ायम रखने में मददगार साबित होता है।
दुनिया जिन बातों को हमारी ख़ामिया मानती है वो बातें भी हमारी ताकत हैं।
ये तुम्हारा अज्ञान है जो तुम हमारे कुछ तौर-तरीक़ों को अंधविश्वास या कुरीति कहते हो। जिस विज्ञान की चार बातें पढ़ कर तुम आज अपने को बहुत क़ाबिल और हमे बैकवर्ड समझते हो उस विज्ञान का ज्ञान हमें सैकड़ों साल पहले हमारे धर्म ग्रंथ दे चुके हैं। भारती संस्कृति प्रधान हिन्दू महिला घूंघट काढ़ती है.. सिक्ख महिला सिर पर चुन्नी डालती है.. मुस्लिम महिला भी पर्दा करती है। इन सबके वैज्ञानिक कारण हैं।
नज़र ना लगे इसलिए काला टीका लगाते हैं। इसके भी अर्थ हैं। यानी येजस्वी और नूरानी चेहरे का तेज बर्करार रखने के लिए कलंक (काला टीका) सहायक साबित होता है।
हमारे रावण के कुकर्म भी श्री रामचंद्र जी को मर्यादा पुरषोत्तम साबित करने में मददकार साबित होते हैं। यज़ीद का ज़ुल्म ना होता तो हुसैन का सब्र इस तरह कहां निखर पाता।
इन दिनों कुछ भारत के कलंक कहे जाने वाले नफरती लोग भारत के भाईचारे को प्रमाणित कर रहे है।
भोले बाबा की नगरी में हर रोज़ मां गंगा की जितनी लहरे मचलती हैं, महामना मदन मोहन मालवीय कि उतनी ही तमन्नाएं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हर रोज़ हक़ीकत में तब्दील होती हैं। मां गंगा के पाकीज़ा आंचल की ये खासियत है कि वो अपवित्र को भी पवित्र कर देती है। गंगा जल की चंद बूंदे शुद्धिकरण के लिए काफी हैं। गंगा की तमाम खासियतें हैं। वाराणसी जाकर देखिए तो पता चलेगा कि नकारात्मकता कैसे सकारात्मकता पैदा करती है। विदेश से आये तमाम ड्रग एडिक्ट आध्यात्मिक शक्ति में लीन होकर नशे से मुक्ति पा लेते हैं।
मृत्यु से मोक्ष प्राप्त होता है। कूड़े से बिजली बनाने के प्लांट भी यहां खूब फलते-फूलते हैं।
बनारस विश्वविद्यालय में संस्कृत फैकेल्टी में प्रोफेसर फिरोज ख़ान की नियुक्ति का विरोध कर रहे दस सिरफिरे आंदोलनकारी फिरोज ख़ान को संस्कृत की फैकेल्टी से हटाने की बेतुकी मांग करके एक तरह से नेक काम कर रहे हैं। कूड़ा नहीं होगा तो बिजली कैसे बनेगी। नशा की तबाही ही आध्यात्मिक शक्ति की राह दिखाती है। मृत्यु मोक्ष देती है।
बड़े-बूढ़े कह गये हैं कि हमारा कलंक भी हमारी हिफाजत करता है। हिन्दू विश्वविद्यालय के फिरोज खान का विरोध करने वाले वाराणसी के चंद लोग अखंड भारत के सौहार्द के तेजस्वी चेहरे पर भाईचारे के ललाट पर काला तिलक जैसे हैं।
ये दस लोग फिरोज खान का विरोध नहीं करते तो दसियों करोड़ हिन्दू भाई फिरोज खान के समर्थन में खड़े होकर भारत की गंगा जमुनी तहजीब की दलील कैसे देते !