बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का निधन
उत्तर प्रदेष –यूपी के पूर्वांचल की धरती में कई बाहुबली हुए, जो कुछ समय बाद सियासी गलियारे में भी नजर आए। इन्हीं में से एक नाम गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का भी था। एक समय कुख्यात छवि वाले हरिशंकर को ही माफियाओं का अगुआ माना जाता है। ये वही हरिशंकर तिवारी थे, जिन्होंने सभी को दिखा दिया कि कैसे सियासत में रहने के साथ कानून से कबड्डी खेली जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता पंडित हरिशंकर तिवारी का शाम को निधन हो गया। इससे उनके समर्थकों में निराशा छा गई है। निधन की सूचना मिलते ही उनके घर और गोरखपुर हाता पर समर्थकों की भीड़ जुट गई है।हरिशंकर तिवारी बेशक पहली बार विधायक बनकर चर्चा में हों, लेकिन उत्तर प्रदेश में खासकर गोरखपुर के माफिया राज में उनके नाम का डंका पहले से ही बजता था।
सत्तर के दशक का वो दौर जब देश की राजनीति काफी तेजी से बदल रही थी। जेपी की क्रांति और कांग्रेस को मिल रहीं चुनौतियों का असर देश के हर राज्य में नज़र आ रहा था। ऐसे में राजनीति का गढ़ कहे जाने वाला उत्तरप्रदेश कैसे पीछे रहता। जेपी के मूवमेंट ने छात्रसंघ की राजनीति को नई दिशा दे दी थी और यूपी के छात्र नेता भी इसे अछूते नहीं थे। विश्वविद्यालयों में वर्चस्व की लड़ाई की शुरूआत हो चुकी थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी, गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में एक बड़ा नाम बनकर उभरे थे।
हरिशंकर तिवारी की पॉप्यूलैरिटी का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चिल्लूपार सीट से वो 22 साल तक लगातार विधायक चुने गए। हरिशंकर प्रसाद की एक खूबी ये भी रही कि राजनीति के हर दल के साथ उनके रिश्ते करीबी रहे। सत्ता चाहे जिसकी भी रही, हरिशंकर तिवारी हमेशा मंत्री बनते रहे। बीजेपी का दौर हो या फिर समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी, हर बार मंत्रालय लेने में हरिशंकर कामयाब हो ही जाते।
2007 तक हरिशंकर तिवारी का राजनीतिक जीवन ऊंचाइयों को छूता रहा लेकिन उसके बाद पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2007 के बाद 2012 में भी हरिशंकर चुनाव हार गए। हालांकि 2017 में उन्होंने बीएसपी सीट से अपने बेटे विनय शंकर तिवारी को टिकट दिलवाई और उन्होंने जीत भी दर्ज की।