Badlapur Case: क्यों मांग रहा कब्रिस्तान में जगह
Badlapur मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों और संवेदनाओं को भी उजागर करता है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई: मुंबई उच्च न्यायालय ने Badlapur यौन उत्पीड़न कांड के आरोपी अक्षय शिंदे के शव को दफनाने के लिए सुरक्षित जमीन खोजने का निर्देश पुलिस को दिया है। यह आदेश उस समय आया जब शिंदे के पिता ने अदालत में गुहार लगाई कि उनके निवास के आसपास के किसी भी कब्रिस्तान में उनके बेटे को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
अक्षय शिंदे पर गंभीर आरोप लगे थे। उसे Badlapur के एक स्कूल में तीन और चार साल की दो बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी बनाया गया था। इस मामले की जांच चल रही थी, और शिंदे को हाल ही में जेल से एक जांच के सिलसिले में पुलिस द्वारा ले जाया गया था। लेकिन, इसी दौरान सोमवार शाम को एक पुलिस मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई, जिससे मामला और भी विवादास्पद हो गया।
-
Thane : 38 वर्षीय चाचा ने 3 वर्षीय भतीजी की हत्या की, लाश जलाने की कोशिश कीNovember 22, 2024- 6:51 PM
-
Asaram ,सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को जारी किया नोटिसNovember 22, 2024- 5:44 PM
शिंदे के पिता ने अदालत को बताया कि स्थानीय कब्रिस्तान में उनके बेटे को दफनाने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही है। उन्होंने कहा कि उनके हिंदू होने के बावजूद, समाज के कुछ हिस्सों ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया है। इस स्थिति को देखते हुए, न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया कि वे एक सुरक्षित स्थान तलाशें जहां शिंदे को दफनाया जा सके।
यह Badlapur मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों और संवेदनाओं को भी उजागर करता है। कई लोग शिंदे के कृत्य को गंभीर मानते हैं और उसके शव को दफनाने के मामले में स्थान की स्वीकृति देने में हिचकिचा रहे हैं।
अदालत ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि शिंदे के परिवार को इस कठिन समय में सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की सुविधा मिले। न्यायालय ने पुलिस को यह निर्देश भी दिया कि वे ऐसी जगह की पहचान करें जो सभी नियमों और कानूनों के अनुरूप हो।
इस मामले में न्यायालय का कदम समाज में संवेदनशीलता और मानवता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, और यह दर्शाता है कि किसी भी व्यक्ति के अंतिम संस्कार का अधिकार सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से सुरक्षित होना चाहिए, चाहे आरोप कितने भी गंभीर क्यों न हों।