Azamgarh Loksabha Elections 2024: क्या अबकी बार निरहुआ से हार का बदला ले पाएंगे धर्मेंद्र, जानें- क्या बन रहे हैं समीकरण?
पिछले चुनाव में अखिलेश यादव यहां से जीते थे, लेकिन दो साल पहले हुए उपचुनाव में यहां से धर्मेंद्र यादव को मुंह की खानी पड़ी थी। ऐसे में सपा की प्रतिष्ठा वाली इस सीट पर धर्मेंद्र के सामने एक बड़ी चुनौती है
आजमगढ़: देश के हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में आजमगढ़ (Azamgarh) लोकसभा सीट भी इस समय चर्चा में बनी हुई है। पिछले 2019 के चुनाव में यहां से अखिलेश यादव चुनाव जीते थे। लेकिन उनके विधायक बनने के बाद फिर से हुए लोकसभा उप चुनाव में BJP के दिनेशलाल यादव निरहुआ ने अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव को बहुत ही कम अंतर से हरा दिया था। ऐसे में सपा के लिए यह सीट बचाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
जातीय समीकरण सपा के पक्ष में है
* आजमगढ़ के जातीय समीकरण की बात करें तो वह सपा के पक्ष में है, क्योंकि यहां पर MY फैक्टर हावी है। 26 प्रतिशत के करीब यादव वोट और 24 प्रतिशत के करीब मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी की राह आसान बना देते हैं। उसपर से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि होने की वजह यहां पर सपा का खासा प्रभाव भी है। यहां पर साढ़े तीन लाख के करीब यादव वोटर, 3 लाख के करीब मुस्लिम वोटर और 3 लाख ही दलित वोटर भी हैं।
* यहां पिछले 2022 के उपचुनाव में सपा के हारने की जो सबसे बड़ी वजह बताई जाती है, उसके पीछे बसपा से चुनाव लड़े गुड्डू जमाली (Guddu Jamali) का नाम आता है। दरअसल, गुड्डू 2022 के उपचुनाव में 2 लाख 66 हजार वोट पाए थे। मुस्लिमों में बड़ा नाम होने की वजह अधिकतर मुस्लिम गुड्डू के साथ हो लिए थे, जिसकी वजह से धर्मेंद्र को हार मिली थी। हालांकि, धर्मेंद्र के हारने का अंतर सिर्फ 8 हजार के आसपास ही था।
लेकिन इस चुनाव में गुड्डू जमाली सपा के साथ हैं। और जमकर चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं। क्योंकि सपा ने उनको विधान परिषद का टिकट देकर सदन में स्थापित कर दिया है। ऐसे में गुड्डू जमाली को मिले वोट धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) को मिल सकते हैं। गुड्डू को मिले वोटों और धर्मेंद्र को मिले वोटों की गणना की जाए तो यह निरहुआ को मिले वोट से ज्यादा हो जाते हैं। ऐसे में यह माना जा सकता है कि इस बार की लड़ाई में धर्मेंद्र यादव बाजी मार सकते हैं।
* आजमगढ़ लोकसभा में विधानसभा की 5 सीटें आती हैं और पांचों ही सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की है। ऐसे में यहां पर सपा के प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता है, और यह माना जा सकता है की इस बार पलड़ा धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) का भारी रहेगा।