अमेरिका ने चांद पर भेजा अपोलो-11, इसी में सवार होकर गए थे चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग
1950 के बाद से ही दुनिया की दो ताकतवर शक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच स्पेस वॉर छिड़ चुकी थी। सोवियत संघ ने लूना मिशन के जरिए अंतरिक्ष में अपनी दखलअंदाजी बढ़ानी शुरू की। जनवरी 1966 में लूना-9 ने चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड किया। ये कारनामा करने वाला वो पहला स्पेसक्राफ्ट था।
उधर, अमेरिका भी अब तक स्पेस में कई स्पेसक्राफ्ट भेज चुका था। 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी घोषणा कर चुके थे कि 60 के दशक के अंत तक अमेरिका चांद पर इंसान को भेजेगा। कैनेडी की इस घोषणा के बाद नासा मिशन की तैयारियों में लग गया। एक कठिन ट्रेनिंग के बाद नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस को इस मिशन के लिए चुना गया।
5 साल बाद टेस्टिंग के लिए 1966 में नासा ने अनमैन्ड स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजा, लेकिन इसके अगले साल ही कैनेडी स्पेस सेंटर में भीषण आग लग गई और 3 एस्ट्रोनॉट की मौत हो गई। इसके बाद भी नासा अपने मिशन में जुटा रहा।
आखिरकार आज ही के दिन 1969 में अपोलो-11 स्पेसक्राफ्ट में नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस को कैनेडी स्पेस सेंटर से चांद के सफर पर भेजा गया। अमेरिकी समयानुसार सुबह 9 बजकर 32 मिनट पर अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से अपोलो-11 ने उड़ान भरी। लाखों लोगों ने इस नजारे को टीवी पर देखा।
76 घंटे में स्पेसक्राफ्ट 2 लाख 40 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। 19 जुलाई को स्पेसक्राफ्ट चांद की ऑर्बिट में पहुंच गया। अगले दिन नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन ईगल मॉड्यूल के जरिए स्पेसक्राफ्ट से अलग हो गए और चांद की सतह पर जाने की तैयारी करने लगे।
उनके मॉड्यूल में केवल 30 सेकेंड का ईंधन ही बचा था और अभी भी दोनों चांद की सतह से दूर थे। दुनियाभर के लोगों की धड़कनें बढ़ने लगीं थीं। 20 जुलाई को शाम 4 बजकर 17 मिनट पर स्पेस सेंटर में वैज्ञानिकों को नील आर्मस्ट्रांग की तरफ से एक मैसेज मिला।
इस मैसेज में आर्मस्ट्रांग ने कहा, ‘हम लैंड कर चुके हैं।’ इसी के साथ पूरा अमेरिका खुशी से झूम उठा। चांद की सतह पर कदम रखते हुए आर्मस्ट्रांग ने कहा, ‘एक इंसान के लिए यह एक छोटा कदम है, लेकिन सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक बड़ी छलांग है।’
चांद की सतह पर नील आर्मस्ट्रांग।
इसके कुछ देर बाद एल्ड्रिन भी चांद की सतह पर उतरे। दोनों वहां करीब ढाई घंटे रहे। उन्होंने चांद की सतह पर अमेरिका का झंडा भी लगाया, कुछ फोटो खींचे, सतह से मिट्टी इकट्ठी की और 24 जुलाई को धरती पर वापस लौट आए।
नील आर्मस्ट्रांग के चांद पर कदम रखने की 52वीं वर्षगांठ पर अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस भी अंतरिक्ष की उड़ान भरने वाले हैं।
1945: अमेरिका ने किया था दुनिया का पहला न्यूक्लियर टेस्ट
28 अक्टूबर 1942 को अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने मैनहट्टन प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एटॉमिक हथियार बनाना था। दरअसल अमेरिका को डर था कि जर्मनी गुपचुप तरीके से एटॉमिक हथियार बना रहा है। इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने 6000 से भी ज्यादा वैज्ञानिकों और आर्मी ऑफिसर की टीम को एटॉमिक वेपन बनाने के काम में लगाया और इस पूरे प्रोजेक्ट को प्रोजेक्ट मैनहट्टन नाम दिया गया। इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहे थे वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपनहाइमर। उन्हें ‘फादर ऑफ एटॉमिक बम’ भी कहा जाता है। सालों की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने प्लूटोनियम आधारित एक बम बना लिया था जिसे गैजेट नाम दिया गया। अब इस बम को टेस्ट करने के लिए एक ऐसी जगह की तलाश थी, जहां धमाके और धमाके के बाद रेडियोएक्टिव पदार्थों के फैलने से कम से कम नुकसान हो।
बड़े सोच-विचार के बाद लॉस एलामोस से 210 मील दूर अलामोगोर्डो नामक एक रेतीली जगह को टेस्ट साइट के लिए चुना गया। बम को रखने के लिए एक 100 फीट ऊंचा फायरिंग टॉवर बनाया गया। वैज्ञानिकों और बाकी लोगों को विस्फोट सुरक्षित तरीके से दिखाने के लिए बड़े-बड़े बंकर बनाए गए और किसी तरह की अनहोनी होने पर आर्मी को भी रेडी रखा
12 जुलाई से बम के अलग-अलग हिस्सों को आर्मी वाहनों में टेस्ट साइट पर लाने का काम शुरू हुआ। 15 जुलाई तक बम को असेंबल कर दिया गया था। 16 जुलाई 1945 को सुबह 5.30 बजे धमाका हुआ। दुनिया ने इतना खतरनाक धमाका पहले कभी नहीं देखा था।
टेस्ट साइट पर 300 मीटर चौड़ा गड्ढा हो गया और 21 किलो टन ऊर्जा पैदा हुई। इस टेस्ट ने एक नए एटॉमिक युग की शुरुआत की। अमेरिका के लिए ये बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन अगले ही महीने अमेरिका ने जापान पर एटम बम गिराकर इस उपलब्धि की विनाशकता से भी दुनिया का परिचय करवाया।
16 जुलाई को इतिहास में इन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…
2018: जुपिटर ग्रह के 12 नए चांद खोजे गए, इसके बाद जुपिटर के कुल चांद की संख्या 79 हो गई।
1999: अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के बेटे का एक विमान हादसे में निधन हो गया।
1979: सद्दाम हुसैन इराक के राष्ट्रपति बने। इस पद पर लगातार 24 साल तक काबिज रहे।
1965: फ्रांस और इटली को जोड़ने वाली 12 किलोमीटर लंबी सुरंग की औपचारिक शुरुआत हुई।
1909: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाली प्रमुख महिलाओं में से एक अरुणा आसफ अली का जन्म हुआ।
1856: हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता मिली।