आज का इतिहास:14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस फैसले का विरोध उनके ही वित्त मंत्री मोरारजी देसाई कर रहे थे
19 जुलाई 1969 यानी आज से ठीक 52 साल पहले उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक ऑर्डिनेंस लेकर आईं। ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ नाम के इस ऑर्डिनेंस के जरिए देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इस फैसले को इंदिरा गांधी द्वारा लिए गए बड़े फैसलों में गिना जाता है।
दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में बैंकों को सरकार के अधीन करने के विचार ने जन्म लिया। विश्वयुद्ध की वजह से देशों को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा था। इससे इन देशों की आर्थिक हालत कमजोर हो गई थी। संकट से उबरने के लिए कई यूरोपीय देशों ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था।
भारत में भी 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया। अब तक भारत में जितने भी निजी बैंक थे, वे सभी उद्योगपतियों के हाथों में थे। लोग बैंकों में जाने से कतराते थे। साथ ही बैंकों का कारोबार केवल बड़े शहरों तक ही सीमित था।
इंदिरा का कहना था कि बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाना जरूरी है। निजी बैंक देश के सामाजिक विकास में अपनी भागीदारी नहीं निभा रहे हैं। इसलिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण जरूरी है। हालांकि इंदिरा का ये फैसला इतना विवादित था कि खुद उनकी ही सरकार के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इसके खिलाफ थे।

राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाओं में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। शहरों से निकलकर बैंक गांवों और कस्बों में खुलने लगे। इससे भारत की ग्रामीण आबादी को बैंकिंग से जुड़ने का मौका मिला। 3 दशक में ही देश में बैंकों की शाखाएं 8 हजार से बढ़कर 60 हजार के आंकड़े को पार कर गईं।
जिन 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, उनके पास उस वक्त देश की करीब 80 फीसदी जमा पूंजी थी, लेकिन इस पूंजी का निवेश केवल ज्यादा लाभ वाले क्षेत्रों में ही किया जा रहा था। दूसरी ओर आजादी के 10 साल के भीतर ही 300 से भी ज्यादा छोटे-मोटे बैंक कंगाल हो गए थे। इसमें लोगों की करोड़ों की जमा पूंजी भी डूब गई थी। इस वजह से सरकार ने इन बैंकों की कमान अपने हाथ में लेने का फैसला लिया।
इस फैसले के क्रियान्वयन का जिम्मा इंदिरा ने अपने प्रधान सचिव पीएन हक्सर को सौंपा। कहा जाता है कि हक्सर सोवियत संघ की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और वहां बैंकों पर सरकार का नियंत्रण था। 1967 में इंदिरा ने कांग्रेस पार्टी में 10 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया।
इस कार्यक्रम में बैंकों पर सरकार का नियंत्रण, राजा-महाराजाओं को मिलने वाली सरकारी मदद और न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण मुख्य बिंदु थे। 7 जुलाई 1969 को कांग्रेस के बेंगलुरु अधिवेशन में इंदिरा ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव रखा।
इंदिरा के इस फैसले का तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने विरोध किया। इसके बाद इंदिरा ने मोरारजी देसाई का मंत्रालय बदलने का आदेश दे दिया। इससे नाराज होकर मोरारजी देसाई ने वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
19 जुलाई 1969 को इंदिरा ने एक अध्यादेश जारी किया और 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसके बाद अप्रैल 1980 में 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।