Asaram ,सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को जारी किया नोटिस

Asaram , जो 2013 में एक महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए थे, ने अपनी सजा को निलंबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

पूर्व संत Asaram , जो 2013 में एक महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए थे, ने अपनी सजा को निलंबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। 2023 में गांधीनगर की अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी, जिसके बाद आसाराम ने अपनी सजा पर पुनर्विचार की अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है, जिससे इस मामले में अब आगे की कानूनी प्रक्रिया शुरू हो गई है।

2013 में दुष्कर्म का आरोप

Asaram पर आरोप था कि उन्होंने 2013 में अपनी आश्रम की एक महिला अनुयायी के साथ दुष्कर्म किया था। यह महिला आसाराम के आश्रम में काम करती थी और उसने यह मामला दर्ज कराया था। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आसाराम ने उसे अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाकर शारीरिक रूप से शोषण किया। इसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की और आसाराम को गिरफ्तार किया।

सजा का सुनाना और अपील

गांधीनगर की अदालत ने 2023 में Asaram को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। यह फैसला कई सालों की कानूनी प्रक्रिया के बाद आया था। हालांकि, आसाराम ने इस फैसले को चुनौती दी थी और अब सुप्रीम कोर्ट में अपनी सजा निलंबित करने की मांग की है। उनका कहना है कि सजा सुनाए जाने के बाद कई तथ्यों को नज़रअंदाज किया गया, और वे इसके खिलाफ पुनः सुनवाई चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट ने Asaram की याचिका पर विचार करते हुए गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा जाएगा कि आसाराम की सजा को निलंबित करने की अनुमति क्यों दी जाए। इस फैसले के बाद अब गुजरात सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।

Asaram के वकीलों ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में कई विसंगतियां हैं और यह फैसला पूरी तरह से गलत है। वहीं, पीड़िता के वकील ने इस अपील का विरोध किया है और कहा है कि आसाराम को सजा का सामना करना चाहिए क्योंकि उनका अपराध अत्यधिक गंभीर था।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

Asaram के खिलाफ चल रही यह कानूनी लड़ाई सिर्फ उनके व्यक्तिगत मामले तक सीमित नहीं है। यह मामला समाज में महिलाओं के अधिकारों और न्याय की लड़ाई को भी उजागर करता है। आसाराम जैसे व्यक्तियों को जो प्रभावशाली स्थिति में हैं, उनके खिलाफ न्याय मिलने का यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है।

इससे यह संदेश भी जाता है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो। वहीं, पीड़िता के लिए यह मामला उसकी न्यायिक लड़ाई का प्रतीक बन गया है, जिससे महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में न्याय की उम्मीद बनी रहती है।

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Asaram द्वारा सजा को निलंबित करने की मांग और सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार को नोटिस जारी करना इस मामले के कानूनी पहलू में नया मोड़ है। अब देखना होगा कि कोर्ट इस मामले में क्या फैसला करता है और क्या आसाराम को सजा में कोई राहत मिलती है या नहीं। इस केस का सामाजिक और कानूनी प्रभाव बहुत दूरगामी हो सकता है, खासकर महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के संदर्भ में।

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