अंगिका’ के दधीचि थे अंग-कोकिल डा परमानंद पाण्डेय
अंगिका’ के दधीचि थे अंग-कोकिल डा परमानंद पाण्डेय
१०९वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने किया श्रद्धापूर्वक स्मरण, कवियों ने दी काव्यांजलि
पटना, १९ दिसम्बर। अंग-कोकिल डा परमानंद पाण्डेय बिहार की एक ऐसी साहित्यिक विभूति थे, जिनके नाम के स्मरण मात्र से मन को, किसी तपस्वी-महात्मा के सान्निध्य की पावन अनुभूति होती है। विद्वता, वाणी, रूप, रंग, गुण और व्यवहार में देवोपम व्यक्तित्व रखने वाले अत्यंत विलक्षण साहित्यिक प्रतिभा के मनीषी विद्वान थे पाण्डेय जी। अंग-प्रदेश की बोली को ‘अंगिका’ भाषा का रूप देने में किसी एक व्यक्ति का नाम लिया जा सकता है तो वे थे परमानंद पाण्डेय। उन्होंने अंगिका में न केवल विपुल सृजन ही किया, अपितु उसका व्याकरण और कोश भी लिखा। वे अपने समय के श्रेष्ठतम भाषा-वैज्ञानिक थे। पाण्डेय जी ने जिस तपस्वी भाव से अंगिका की सेवा की, वह दधीचि-तुल्य मानी जाती है। खड़ी बोली हिन्दी की प्रतिष्ठा में जो स्थान भारतेंदु का है, वही स्थान अंगिका के लिए परमानंद जी का है।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि भाषा, छंद और संगीत पर अपने सुदृढ़ प्रभुत्व के कारण वे सदैव अपने समकालीन साहित्यकारों और श्रोताओं में लोकप्रिय बने रहे। अंगिका की उनकी विश्रुत कृति ‘पछिया बयार’, वस्तुतः काव्य-संसार में एक अभिनव वसंत लेकर आई थी। प्रायः सभी मंचों पर उनसे ‘पछिया बयार’ का आग्रह होता था। इसकी पंक्तियाँ “अगहन पूस में तोहे मति अहिह / हाड़ पर बरफ़र तीर ने चलैह / पहुनइ करिह समुंदर पार हो /पछिया बयार हो”, श्रोताओं में गुदगुदी उत्पन्न करती थी।
अंग-कोकिल के कवि-पुत्र ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने अपने मर्म-स्पर्शी संस्मरणों से अपने पिता को श्रद्धांजलि दी। डा रमेश चंद्र पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ का कहना था कि, “खिला हो फूल ख़ुशबू का बिखर जाना ज़रूरी है/ मिला हो रूप तो उसका संवर जाना ज़रूरी है/ बुझाना प्यास प्यासे की अगर ‘करुणेश’ है लाज़िम/ तो फिर ख़ाली पड़े प्याले का भर जाना ज़रूरी है”। डा शंकर प्रसाद ने इस गीत को स्वर दिया कि “इसे गंगा ने छुआ है/ सिंधु चरणामृत हुआ है/ देवों का देश है यह अर्चना के गीत गाओ”। कवि सुनील कुमार का कहना था कि “कैसे कहें ‘सुनील’ मुहब्बत थी बेपनाह/ खुद ही नशात-ए-रूह को इरफ़ा न कर सके”। कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय ने कहा – “ये कौन मेरे आंसुओं से दर्द अपना लिख गया? काल पराई थी मैं उसकी, आज अपना कह गया।”
कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुनील कुमार दूबे, प्रभात कुमार धवन, राधा रानी, रत्नावली कुमारी, सुनील कुमार, चित रंजन भारती,रणजीत राय, राज किशोर झा, डा कुंदन कुमार, निशा पराशर, रवीन्द्र कुमार सिंह आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।