1965 से AMU का अल्पसंख्यक विवाद: इंदिरा सरकार का बदलाव

AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद की शुरुआत 1965 में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में अहम फैसला सुनाया

AMU का अल्पसंख्यक स्वरूप: 1965 से चल रहा विवाद

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद की शुरुआत 1965 में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में अहम फैसला सुनाया और एस अज़ीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस को खारिज कर दिया, जिसमें 1967 में यह कहा गया था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला आगे एक नियमित बेंच द्वारा तय किया जाएगा।

1965 में AMU एक्ट में संशोधन

1965 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) एक्ट में एक संशोधन किया, जिसके तहत विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद, इस निर्णय के खिलाफ अज़ीज बाशा ने 1968 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग की थी। उनका तर्क था कि एएमयू का प्रबंधन और प्रशासन मुस्लिम समुदाय के हाथों में था और इसे संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान माना जाना चाहिए था।

1967 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 1967 में एएमयू के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और उसे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसलिए उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। इस फैसले में एक विशेष पहलू यह था कि एएमयू को इस मामले में पार्टी नहीं बनाया गया था, और विश्वविद्यालय को अपनी स्थिति को साबित करने का अवसर नहीं मिला था। यह फैसला एएमयू के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि इससे विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और विशेष दर्जा दोनों प्रभावित हो रहे थे।

इंदिरा गांधी सरकार का हस्तक्षेप

1972 में इंदिरा गांधी की सरकार ने भी यह मान लिया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इस निर्णय का विरोध विश्वविद्यालय में जोरशोर से हुआ, क्योंकि एएमयू के प्रबंधन और शिक्षक वर्ग ने इसे मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। इसके बाद, 1981 में इंदिरा गांधी सरकार ने एएमयू एक्ट में एक और संशोधन किया, जिसके तहत विश्वविद्यालय को फिर से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया गया। इस बदलाव ने एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप को मान्यता प्रदान की और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को बहाल किया।

सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एस अज़ीज बाशा मामले को खारिज कर दिया और 1967 के फैसले को पलटते हुए कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला नियमित बेंच द्वारा देखा जाएगा। अदालत ने यह संकेत दिया कि इस मुद्दे पर और विचार किया जाएगा, और यह निर्णय भविष्य में विश्वविद्यालय के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा एक लंबा और जटिल कानूनी मामला रहा है, जिसमें कई सरकारों और न्यायिक फैसलों का हस्तक्षेप रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला इस मामले को फिर से एक नई दिशा में ले जा सकता है, और एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप पर आने वाले फैसले से शैक्षिक और सांस्कृतिक संदर्भ में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं।

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