स्पर्म तस्करी की कहानी:एक लड़की के अपने जैविक पिता को खोजने के संघर्ष पर बनी फिल्म अमीरा से अरब देशों में उबाल
इजराइली जेल में बंद फिलिस्तीनी कैदियों के स्पर्म तस्करी से हजारों बच्चे जन्म ले रहे हैं।
मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल में मो. दियाब की फिल्म ‘अमीरा’ के प्रदर्शन से अरब देशों में उबाल आ गया है। इसमें दिखाया गया है कि इजरायल की जेलों में बंद फिलिस्तीनी राजनीतिक कैदियों के स्पर्म की तस्करी हो रही है और इससे उनकी पत्नियां मातृत्व सुख पा रही हैं। फिलिस्तीन- इजरायल संघर्ष के दौरान 2012 से अब तक हजारों बच्चों का जन्म स्पर्म की तस्करी से हुआ है।
यह फिल्म परिवार और रक्त संबंध की परिभाषा से जुड़ी बहस और विदेशियों के प्रति भेदभाव और नफरत के मुद्दों को उठाने के कारण चर्चा में है। फिल्म में इजरायली जेल में बंद फिलिस्तीनी आंदोलनकारी नुवार की 17 साल की लड़की अमीरा को यह विश्वास है कि वह अपने पिता के तस्करी करके लाए गए स्पर्म से पैदा हुई है। वह मां वारदा के साथ कई बार पिता से जेल में मिलने जाती है।
क्या है फिल्म की कहानी
नुवार फिर अपना स्पर्म तस्करी के जरिए पत्नी वारदा तक पहुंचाता है। उसे लगता है कि इस तरह स्पर्म के माध्यम से वह जेल से आजाद हो रहा है। जब अस्पताल में स्पर्म की जांच होती है, तो उनके जीवन में तूफान आ जाता है। पता चलता है कि नुवार में पिता बनने की क्षमता है ही नहीं। परिवार के लोग हर उस आदमी का डीएनए टेस्ट कराते हैं जिसपर अमीरा के बाप होने का शक है।
अमीरा का जीवन बिखरने लगता है। उसकी मां वारदा सबकुछ सहती है। अमीरा हिम्मत के साथ स्थितियों का सामना करती है और उसे पता चलता है कि एक इजरायली नागरिक उसका पिता है जो फिलीस्तीनी मुक्ति मोर्चा के लिए खबरी का काम करता था। अमीरा के चाचा उसका पासपोर्ट बनवाकर उसे मिस्र में बस जाने को कहते हैं। लेकिन वह नहीं सुनती और फेसबुक पर अपने जैविक पिता को ढूंढ लेती है।
इजरायली खून होते हुए भी वह सच्चे देशभक्त की तरह एक फिलिस्तीनी की तरह जीना चाहती है। अवैध रूप से इजरायल की सीमा में प्रवेश करने की कोशिश में मारी जाती है। मोहम्मद दियाब इस समय मिस्र के सबसे चर्चित फिल्मकार है जो उन पटकथाओं को सामने लाते हैं जिनके बारे में पहले कभी नहीं सोचा गया। उनकी पिछली फिल्मों ‘काहिरा 678’ और ‘क्लैश’ में हम यह देख चुके हैं।
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