काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा का सवाल, अमेरिका को मंजूर नहीं तुर्की की शर्ते; जानिए- पूरा मामला

काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए अमेरिका चाहता है कि काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा का कार्यभार तुर्की संभाले पर तुर्की उससे जो पैसा तथा कूटनीतिक व लाजिस्टिक सहायता मांग रहा है अमेरिका उसके लिए राजी नहीं दिखता।

 अमेरिका ने अफगानिस्तान के उन नागरिकों को अपने यहां ले जाना शुरू कर दिया है, जो अब तक वहां तैनात अमेरिकी सेना के लिए स्थानीय कर्मचारियों और दुभाषियों के तौर पर काम कर रहे थे। अमेरिका को इस बात का डर है कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होते ही उन्हें मार दिया जाएगा। उनकी संख्या लगभग 1300 है। उनके साथ उनके परिवारों को भी अमेरिका में शरण दी जाएगी।

दरअसल दो दशक पूर्व तालिबान को काबुल से खदेड़ने के बाद से इस शहर का विस्तार काफी तेजी से हुआ। यहां की जनसंख्या अनुमानित रूप से लगभग 50 लाख है। काबुल में ही देश का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। हालांकि वहां दिन भर में 25 से अधिक विमानों का आना-जाना नहीं हो पाता। फिर भी अमेरिका और उसके साथी नाटो देशों के सैनिकों के 11 सितंबर तक अफगानिस्तान खाली कर देने के बाद काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा एक चुनौती बन जाएगी। उल्लेखनीय है कि गत 14 जून को बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में स्थित नाटो के मुख्यालय में इस सैन्य संगठन का शिखर सम्मेलन हुआ था। उस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने नाटो के एकमात्र मुस्लिम सदस्य देश तुर्की के राष्ट्रपति एदरेगन से काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा के बारे में बातचीत की थी।

बाइडन चाहते थे कि तुर्की काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा करे। एदरेगन ने संकेत दिया कि इसके लिए वे सैद्धांतिक रूप से तैयार हैं, पर उनकी अपनी भी कुछ शर्ते होंगी। इन शर्तो पर बातचीत चल रही है। पहली शर्त यह है कि तुर्की ने नाटो गठबंधन का सदस्य होते हुए भी नाटो के नियमों की अवेहलना करते हुए, जुलाई 2019 में रूस से एस 400 नामक जो मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली खरीदी है, उस कारण अमेरिकी संसद द्वारा उस पर थोपे गए प्रतिबंध हटाए जाएं। दूसरी मुख्य शर्त के बारे में अरब मीडिया में कहा जा रहा है कि एदरेगन अपने नहीं, भाड़े के ऐसे सैनिक काबुल भेजना चाहते हैं जिनके लिए पैसा अमेरिका को देना होगा। ये सैनिक संभवत: सीरिया के ऐसे जिहादी होंगे जिन्हें तुर्की उत्तरी सीरिया में कुर्दो से लड़ने के लिए इस्तेमाल करता रहा है। तुर्की इन भाड़े के टट्टुओं के लिए अमेरिका से प्रति व्यक्ति तीन हजार डालर मासिक चाहता है। नाटो के यूरोपीय सदस्य देश चाहते हैं कि चाहे जैसे भी हो, इस बला से छुटकारा मिले।

नाटो के कुल 30 सदस्य देशों में अमेरिका के बाद तुर्की की सेना ही दूसरी सबसे बड़ी सेना है। नाटो का सदस्य होने के नाते तुर्की ने पहले से ही अपने 500 सैनिक अफगानिस्तान में तैनात कर रखे हैं। लेकिन साथ ही वह पूरे समय तालिबानी लड़ाकों के साथ किसी टकराव से बचता भी रहा है। तुर्की काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा के ठेके को इस्लामी जगत में अपनी पैठ बढ़ाने के एक सुअवसर और साथ ही अफगानिस्तान के नाम से ऊब चुके नाटो के सदस्य देशों को भी खुश रखने की एक चाल के तौर पर देखता है। यह बात कोई रहस्य नहीं है कि तुर्की के राष्ट्रपति एदरेगन सुन्नी इस्लामी जगत की अगुआई सऊदी अरब से छीनने और एक नया खलीफा बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। काबुल में तुर्की की लंबी उपस्थिति के लिए उसे भू-राजनीतिक दृष्टी से भी कई लाभ दिखते हैं। अफगानिस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान में भी तुर्की का दबदबा बढ़ेगा और भारत केवल मूकदर्शक रह जाएगा।

हालांकि काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा के प्रश्न पर तुर्की और अमेरिका के बीच बातचीत अब भी चल रही है, कोई निर्णय नहीं हो पाया है। अमेरिका चाहता तो है कि काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा का कार्यभार तुर्की संभाले, पर तुर्की उससे जो पैसा तथा कूटनीतिक व लाजिस्टिक सहायता मांग रहा है, अमेरिका उसके लिए राजी नहीं दिखता।

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