अमेरिका ने भारत को दिया धोखा ! आखिर क्यों की तालिबान से डील
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2 दिन की भारत के दौरे पर आए थे। तारीख थी 24 और 25 फरवरी। भारत में ट्रंप की खूब खातिरदारी हुई और इतनी खातिरदारी हुई की अमेरिका वापस लौटने के बाद भी भारतीय मेहमान नवाजी के गीत गाते दिखे। प्रधानमंत्री मोदी ने जबरदस्त मेहमान नवाजी कर के ट्रंप को तो खुश कर दिया लेकिन इससे भारत को क्या मिला ? हम बताते हैं। भारत को मिला अमेरिका और तालीबान के बीच शांति समझौता। जो भारत के लिए किसी घातक हमले से कम नहीं है। जी हां, भारत से लौटने के बाद अमेरिका और कतर की राजधानी दोहा में तालीबान और अमेरिका के बीच शांति समझौता हुआ।
इस समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान 30 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे, लेकिन अफगानिस्तान की तरफ से कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं था और इसी के साथ ट्रंप ने अपने सबसे खास दोस्त मोदी को एक करारा झटका दे दिया। अमेरिका की इस डील का असर भारत पर पड़ेगा। ये जानते हुए भी ट्रंप ने ये डील की। एक तरफ तो ट्रंप मोदी को बेस्ट फ्रैंड बताते हैं और दूसरी तरफ डील कर बेस्ट फ्रैंड को ही नुकसान पहुंचाते हैं। तो आखिर ट्रंप की ये कैसी दोस्ती है ? चलिए इसके पीछे की वजह आपको बताते हैं।
दरअसल इस डील का सीधा कनेक्शन राष्ट्रपति चुनाव से है। ट्रंप इस समय फुल चुनावी मूड में हैं। चाहे भारत का दौरा हो या फिर तालीबान से डील। तरुम हर एक चीज़ सोच समझकर कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि इस समय ट्रंप का एक-एक काम चुनावी रणनीती है क्योंकि अमेरिका में इसी साल नवंबर में राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। अब इस डील का चुनाव से क्या संबंध है वो भी आपको बताते हैं साथ ही ये भी आपको बताएंगे कि आखिर इस डील से भारत को कैसे खतरा है।
सबसे पहले तो डील के पीछे की वजह जानिए। दरअसल अमेरिका में जिस समय ट्रंप सरकार बनी थी तभी ट्रंप ने अमेरिका के लोगों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार दोबारा बनती है। तो वो अफगानिस्तान में करीब 18 सालों से तैनात अमेरिकी सैनिकों की घर वापसी कराएंगे। इसीलिए तालीबान से ट्रंप की ये डील वो चुनावी वादा है, जो ट्रंप ने अमेरिका के लोगों से किया था।
चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर इस डील से भारत पर क्या असर पड़ेगा। तालीबान से अमेरिका की डील कोई मामूली डील नहीं हैं। वो इसीलिए क्योंकि 1996-2001 तक अफगानिस्तान पर तालीबान का राज था, लेकिन 9/11 में अमेरिका पर हमले के बाद अमेरिका ने तालीबान पर हमला बोल दिया था। तभी से ही अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में तालीबान से मुकाबला करने के लिए तैनात हैं। अमेरिका की वजह से ही अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र का गठन हो पाया। अब अमेरिकी सैनिकों के वापस चले जाने के बाद अफगानिस्तान में सैनिकों की संख्या घटकर 8600 रह जाएगी। जिससे एक बार फिर अफगानिस्तान में तालीबान का खतरा बढ़ जाएगा। 1999 में तालीबान ने मसूद अजहर समेत 3 आतंकवादियों को छुड़ाने के लिए भारतीय एयरलाइन को हाईजेक कर लिया था। आतंकवाद की वजह से भारत तालीबान से दूरी बनाकर रखता है। तालीबान पाकिस्तान की छत्र छाया में पला बढ़ा है।
भारत सरकार अफगानिस्तान की सरकार के समर्थन में रही है। इसीलिए भारत को अंदेशा है कि इस डील के बाद अफगानिस्तान में एक बार फिर तालीबान ताकतवर हो जाएगा। इतना ताकतवर की तालीबान अफगानिस्तान में सरकार तक बना सकता है और अगर ऐसा होता है, तो तालीबान भारत में अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने की सोचेगा। जो भारत के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा। पाकिस्तान तो यही चाहता है कि अफगानिस्तान में तालीबान की सरकार बन जाए। जिससे पाकिस्तान तालीबान को कश्मीर और आतंकवाद के लिए इस्तेमाल कर सके।