कोरोना मरीजों के लिए अमेरिका-ब्रिटेन में आई दो नई दवाएं, दोनों कैसे काम करती हैं और कितनी इफेक्टिव? जानें सब कुछ
दो नई एंटीवायरल दवाइयां कोरोना के गंभीर मरीजों पर ट्रायल के दौरान काफी इफेक्टिव रही हैं। इनमें से एक को अमेरिकी कंपनी फाइजर और दूसरी को मर्क एंड कंपनी ने बनाया है। दोनों दवाओं पर स्टडी की जा रही है कि क्या ये कोरोना का संक्रमण फैलने से भी रोकती हैं?
दोनों दवाओं में क्या अंतर है? दोनों में से कौन ज्यादा इफेक्टिव है? ये दवाएं क्यों कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अहम हैं? दोनों काम कैसे करती हैं? दोनों की सप्लाई और रेट में क्या अंतर है? आइये जानते हैं …
दोनों दवाओं में से कौन ज्यादा बेहतर काम करती है?
दोनों दावाओं ने ट्रायल के नतीजे जारी किए हैं। इसके मुताबिक फाइजर की दवा ज्यादा इफेक्टिव है। हालांकि, दोनों कंपनियों की ओर से अभी पूरा डेटा जारी किया जाना बाकी है।
फाइजर ने कहा है कि इस दवा के इस्तेमाल के बाद कोरोना मरीज के हॉस्पिटलाइजेशन या मौत की आशंका बहुत कम होती है। तीन दिन के अंदर अगर दवा का इस्तेमाल होता है तो मौत या हॉस्पिटलाइजेशन की आशंका 89% तक कम हो जाती है। वहीं, अगर लक्षण आने के 5 दिन के अंदर मरीज को दवा दी जाए तो मौत या हॉस्पिटलाइजेशन की आशंका 85% तक कम हो जाती है।
मर्क एंड कंपनी ने अक्टूबर की शुरुआत में अपने ट्रायल के नतीजे जारी किए थे। कंपनी के मुताबिक अगर लक्षण आने के 5 दिन के भीतर उनकी दवा दी जाए तो हॉस्पिटलाइजेशन और मौत की आशंका 50% तक कम हो जाती है। वहीं, तीन दिन के भीतर दवा देने पर कितनी इफेक्टिव है, इसका डेटा कंपनी ने नहीं दिया था।
इन दवाओं को कोई नाम भी दिया गया है क्या?
फाइजर की दवा का ब्रांड नेम पैक्सलोविड दिया गया है। वहीं, मर्क की एंटीवायरल दवा को ब्रिटेन में अप्रूवल मिल चुका है। वहां इस दवा को लेवगेवरियो ब्रांड नेम मिला है।
ये दोनों दवाएं इतनी अहम क्यों हैं?
दुनिया के कई देशों में कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है। जो कोरोना से बचाव करती हैं। वहीं, जिन लोगों को कोरोना हो जाता है, उनके इलाज के लिए बहुत कम दवाएं हैं। इस वक्त जिन कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है, उन्हें एंटीबॉडी ड्रग दिए जा रहे हैं। ऐसे में इन दवाओं की बड़ी उम्मीद पैदा करती है।
दोनों दवाएं कैसे काम करती हैं?
दोनों दवाओं के लिए 5 दिन का कोर्स है। फाइजर की पैक्सलोविड पांच दिन तक तीन टैबलेट सुबह और तीन टैबलेट रात को खानी होती है। वहीं, मर्क की लेवगेवरियो पांच दिन तक 4 टैबलेट सुबह और 4 टैबलेट रात को खानी होती हैं।
फाइजर की दवा प्रोटीन इंहैबिटर डिजाइन पर काम करती है। ये इंहैबिटर उन एंजाइम्स को ब्लॉक कर देते हैं जिनकी मदद से कोरोना का वायरस मल्टिप्लाई होता है। फाइजर की ये दवा रेटोनवीर के साथ दी जाती है। जो पुराना एंटीवायरल है और प्रोटीन इंहैबिटर के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। हालांकि, इससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल साइड इफेक्ट भी हो सकता है।
मर्क की दवा को रिजबैक बायोथेरेप्यूटिक्स के साथ डेवलप की गई है। ये दवा वायरस में रैंडम म्यूटेशन करती है। इसकी वजह से कोरोना के वायरस के लिए खुद को विकसित करना मुश्किल हो जाता है।
कितनी सेफ हैं ये दोनों दवाएं?
अब तक दोनों कंपनियों ने ट्रायल का पूरा डेटा रिलीज नहीं किया है। ऐसे में कोई निश्चित नतीजा नहीं बताया जा सकता है। हालांकि, दोनों ही कंपनियों ने अपनी दवा को सेफ बताया है।
फाइजर ने कहा है कि ट्रायल में शामिल केवल 20% लोगों पर दवा का एडवर्स इफेक्ट हुआ। इनमें से अधिकांश को माइल्ड साइड इफेक्ट हुए। दवा लेने वाले केवल 1.7% लोगों को ही इसके गंभीर साइड इफेक्ट हुए।
वहीं, मर्क ने कहा है कि उसकी दवा लेने वाले 12% मरीजों में इसके एडवर्स इफेक्ट दिखाई दिए। मर्क की इस क्लास की दवा की जानवरों पर हुई स्टडी में जन्म से जुड़ी परेशानियां देखी गई थीं। हालांकि, कंपनी ने कहा है कि इंसानों पर हुई स्टडी में इस तरह की कोई परेशानी नहीं दिखाई दी है। ना ही कैंसर जैसी बीमारी का साइड इफेक्ट हुआ है।
दोनों की सप्लाई की क्या स्थिति है?
फाइजर और मर्क दोनों ने कहा है कि वो सभी देशों को दवा उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। फाइजर इस साल के अंत तक अपनी थेरेपी के 1 लाख 80 हजार कोर्स का प्रोडक्शन करने की कोशिश में हैं। वहीं, अगले साल कुल 5 करोड़ से ज्यादा कोर्स का प्रोडक्शन करने का टारगेट है।
मर्क ने कहा कि उसे उम्मीद है कि वो साल के अंत तक एक करोड़ कोर्स का प्रोडक्शन कर लेगी। वहीं, अगले साल 2 करोड़ से ज्यादा कोर्स का प्रोडक्शन करने का टारगेट है।
दोनों दवाओं का दाम कितना है?
अमेरिकी सरकार कोरोना की वैक्सीन के साथ ही कोरोना पीड़ितों का इलाज भी मुफ्त कर रही है। ऐसे में अमेरिका में फाइजर की दवा मुफ्त दी जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी कहा है कि उनकी सरकार फाइजर की इस दवा के दसियों लाख डोज अपने पास सिक्योर किए हैं। वहीं, दूसरे देशों के साथ दाम को लेकर फाइजर और मर्क दोनों का नेगोशिएशन चल रहा है।
मर्क को कोरोना की दवा सप्लाई करने के लिए अमेरिका ने 1.2 बिलियन डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट दिया है। इस रकम से अमेरिका को दवा के 17 लाख कोर्स की दवा मिलेगी। यानी, एक कोर्स का दाम करीब 700 डॉलर (करीब 52 हजार रुपए) आएगा।
वहीं, ब्रिटेन ने भी फाइजर की दवा के 2.5 लाख डोज खरीदे हैं। हालांकि, ब्रिटेन ने इसके दाम पब्लिक नहीं किए हैं।
भारत में भी तो DRDO ने कोरोना की दवा बनाई थी उसका क्या हुआ?
छह महीने पहले DRDO ने एंटी कोरोना ड्रग 2-DG लॉन्च की थी। ये दवा फार्मा कंपनी डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ तैयार की गई। DRDO के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) की लैबोरेटरी में तैयार यह दवा ग्लूकोज का ही एक सब्स्टिट्यूट है। यह संरचनात्मक रूप से ग्लूकोज की तरह है, लेकिन असल में उससे अलग है। यह पाउडर के रूप में है और पानी में मिलाकर मरीजों को दी जाती है।
कोरोना वायरस अपनी एनर्जी के लिए मरीज के शरीर से ग्लूकोज लेते हैं। यह दवा केवल संक्रमित कोशिकाओं में जमा होती है। कोरोना वायरस ग्लूकोज के धोखे में इस दवा का इस्तेमाल करने लगते हैं। इस तरह वायरस को एनर्जी मिलना बंद हो जाती है और उनका वायरल सिंथेसिस रुक जाता है। यानी नए वायरस बनना बंद जाते हैं और बाकी वायरस भी मर जाते हैं।
तो क्या 2-DG सभी मरीजों को दी जा रही है?
इस दवा को केवल इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूवल मिला है। फिलहाल इसका इस्तेमाल अस्पताल में भर्ती मरीजों पर ही हो रहा है। 2-DG को बनाने वाली कंपनी डॉक्टर रेड्डीज को दवा का एक्पांडेड ट्रायल करने का अप्रूवल मिल गया है। ट्रायल के नतीजों के बाद ही तय होगा कि क्या ये दवा ऐसे मरीजों को भी दी जा सकती है जो अस्पतालों में भर्ती नहीं हैं।
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