क्यों इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आये सामने?
सामूहिक दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रद किया इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला, जानें पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में एफआइआर में नाम होने और पीडि़ता द्वारा कोर्ट में दिए गए बयान में नाम लिए जाने के बावजूद तीन लोगों को अभियुक्त बनाकर समन करने से इन्कार करने का निचली अदालत और इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला रद कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में एफआइआर में नाम होने और पीडि़ता द्वारा कोर्ट में दिए गए बयान में नाम लिए जाने के बावजूद तीन लोगों को अभियुक्त बनाकर समन करने से इन्कार करने का निचली अदालत और इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला रद कर दिया है। शीर्ष अदालत ने तीन अन्य को भी अभियुक्त बनाकर मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और संजीव खन्ना की पीठ ने पीडि़ता की याचिका पर सुनाया है। इस तरह इस मामले में अब कुल छह लोगों के खिलाफ मुकदमा चलेगा।
यह मामला अलीगढ़ का है, जिसमें पीड़िता दिव्यांग है। शिकायत में छह लोगों पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था और छह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुई थी। लेकिन पुलिस ने दो हिस्सों में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सिर्फ तीन लोगों को ही अभियुक्त बनाया। ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में अर्जी देकर तीन अन्य लोगों विनीत, मदना और तरन को भी अभियुक्त बनाकर समन करने की मांग की। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी। इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई लेकिन हाई कोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी।
इसके बाद पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इन तीनों को भी अभियुक्त बनाकर मुकदमा चलाए जाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 2016 से लंबित था। सुप्रीम कोर्ट ने गत 29 जुलाई को फैसला सुनाया है। पीड़िता की ओर से पेश वकील डीके गर्ग ने बहस के दौरान कहा कि पीड़िता न्याय पाने के लिए अदालत दर अदालत भटक रही है। सामूहिक दुष्कर्म की यह घटना नवंबर 2014 की है। पीडि़ता की नाबालिग बहन घटना की चश्मदीद गवाह है। एफआइआर में छह लोगों के नाम थे।
पीड़िता व अन्य ने अदालत में दिए बयान में भी सबका नाम लिया था। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने बाकी तीन को अभियुक्त बनाकर मुकदमा चलाने की मांग खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में आइपीसी की धारा 376डी (सामूहिक दुष्कर्म), 147, 323, 336 के तहत अलीगढ़ के पिसवा थाने में मामला दर्ज हुआ था। एफआइआर में सभी का नाम था। अभियोजन पक्ष के गवाहों ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज कराए बयान में भी इन तीनों का नाम लिया था।
लेकिन ट्रायल कोर्ट ने इन तीनों को अभियुक्त बनाने की अभियोजन पक्ष की अर्जी खारिज कर दी और हाई कोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल के दौरान किसी पक्ष का हित प्रभावित न हो, इसलिए वह केस का ज्यादा विवरण देने से परहेज कर रहा है। लेकिन इतना कहना पर्याप्त होगा कि एफआइआर में इन तीनों के नाम थे और जांच के दौरान और कोर्ट में अभियोजन पक्ष के गवाहों ने इनके नाम लिए हैं। इसे देखते हुए ट्रायल कोर्ट ने विनीत, मदना और तरन को अभियुक्त बनाकर कर समन किए जाने की अर्जी खारिज करके गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह याचिका स्वीकार करता है और स्पष्ट कर रहा है कि इन तीनों के खिलाफ भी कानून के मुताबिक मुकदमा चलाया जाए।