मांओं को अलर्ट करने वाली रिसर्च
प्रेग्नेंसी के 10वे हफ्ते में ही बताया जा सकेगा बच्चे का जन्म समय से पहले होगा या नहीं, एक बैक्टीरियल टेस्ट से मिलेगी जानकारी
प्री-मैच्योर बर्थ से नवजात में मौत का खतरा 50 फीसदी तक बना रहता है। प्री-मैच्योर बर्थ का मतलब है प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले बच्चे का जन्म होना। समय से पहले जन्म होने पर बच्चे में कई तरह के खतरे बढ़ते हैं। इसलिए ऐसी डिलीवरी को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने एक टेस्ट की सलाह दी है।
वैज्ञानिकों का कहना है, प्रेग्नेंसी के 10वें हफ्ते में ही खास तरह के बैक्टीरिया और केमिकल की जांच करके यह भविष्यवाणी की जा सकेगी कि नवजात की प्री-मैच्योर बर्थ होगी या नहीं।
रिसर्च करने वाले किंग्स कॉलेज लंदन के महिला रोग विशेषज्ञ प्रो. एंड्रयु शेनन का कहना है, प्री-मैच्योर बर्थ की भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। मेरी टीम ने मिलकर इसकी भविष्वाणी करने का एक तरीका खोजा है। जो समय रहते महिला को अलर्ट कर सकेगा और खतरा घटा सकेगा।
कैसे प्री-मैच्योर बर्थ की भविष्यवाणी की जा सकती है, नवजात की प्री-मैच्योर बर्थ क्यों खतरनाक है और इन्हें रोकना क्यों जरूरी है, जानिए इन सवालों के जवाब…
ऐसे हो सकेगी प्री-मैच्योर बर्थ की भविष्यवाणी
रिसर्च करने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने गर्भाशय के मुंह पर कुछ ऐसे बैक्टीरिया और केमिकल का पता लगाया है जो संक्रमण और सूजन को बढ़ाते है। यही संक्रमण और सूजन बच्चे की प्री-मैच्योर बर्थ के लिए जिम्मेदार होते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक नए टेस्ट की मदद से बैक्टीरिया और केमिकल का पता लगाकर नवजात की मौत का खतरा भी घटाया जा सकता है।
अब जानिए रिसर्च हुई कैसे
ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने रिसर्च के लिए यूके के हॉस्पिटल से 364 मांओं का डाटा लिया। इनमें से 60 मांओं की प्री-मैच्योर डिलीवरी हुई थी। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने 10 से 15 हफ्ते की गर्भवती महिलाओं के सर्विक्स से सैम्पल लेकर बैक्टीरिया का पता लगाया। 16 से 23वें हफ्ते पर दोबारा जांच की। इसके के बाद गर्भाशय के मुंह के आकार की लम्बाई जांची गई।
वैज्ञानिकों का कहना है, महिलाओं में 34वें हफ्ते से पहले इनसे लिए गए सैम्पल में ग्लूकोज, एस्पार्टेट, कैल्शियम और बैक्टीरिया की पुष्टि हुई। इन्हें प्री-मैच्योर बर्थ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
प्री-मैच्योर डिलीवरी का खतरा कब और कैसे बढ़ता है
वैज्ञानिकों का कहना है, गर्भाशय के मुंह को सर्विक्स कहते हैं। लेबरपेन के दौरान नवजात के डिलीवरी के समय सर्विक्स का आकार बढ़ता है ताकि बच्चा बिना किसी परेशानी के बच्चा बाहर आ सके। लेकिन बैक्टीरिया और कुछ खास रसायनों के कारण इस हिस्से में संक्रमण फैलता है। ऐसा होने पर प्रेग्नेंसी के दौरान इस हिस्से में सूजन आ जाती है। सूजन की वजह से गर्भाशय का मुंह कमजोर हो जाता है और यह पूरी तरह से खुल नहीं पाता। इसलिए बच्चे को इससे निकलने में आने वाली दिक्कतों को रोकने के लिए सर्जरी के डिलीवरी कराई जाती है।
समय से पहले डिलीवरी के कारण बच्चे में मौत के साथ कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है। एक अन्य रिसर्च के मुताबिक, भविष्य में ऐसे बच्चों का आईक्यू लेवल कम हो सकता है।
वर्तमान में ब्रिटेश की स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस दो स्थितियों में प्री-मैच्योर डिलीवरी की भविष्यवाणी करती है। या तो सर्जरी के दौरान सर्विक्स डैमेज हो गई है या फिर सर्विक्स का आकार छोटा है। ऐसा प्रेग्नेंसी के काफी समय बाद पता लगाया जाता है, लेकिन नई रिसर्च और ज्यादा मददगार साबित होगी। अब प्रेग्नेंसी के 10 हफ्ते में ही सर्विक्स की स्थिति के आधार पर यह बताया जा सकेगा कि प्री-मैच्योर बर्थ होगी या नहीं।
वर्तमान में प्री-मैच्योर बर्थ को रोकने के लिए दो तरह से इलाज किया जाता है। पहला, हार्मोन मेडिसिन से और दूसरा सर्विक्स की स्टिचिंग करके।