अखिलेश यादव ने बसपा को साधने का बनाया प्लान, मायावती की हालत खराब
अखिलेश यादव ने दलित वोटबैंक पर डाले डोरे
लखनऊ. यूपी में होने वाने विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पाट्रियों में वार-प्रतिवार का सिलसिला शुरु हो चुका हैं। इसी क्रम में सपा ने बसपा पर अपना वार कर दिया है। पिछड़ों के साथ-साथ अब अखिलेश यादव ने दलित वोटबैंक पर भी डोरे डालने शुरु कर दिये हैं। अखिलेश यादव ये लक्ष्य दो तीरों से साध रहे हैं। पहला तो ये कि वे अपनी हर रैली में दलित समाज से जुड़े मुद्दे उठाकर अपने आप को इनका रहनूमा दिखा रहे हैं और दूसरा ये कि उन्होंने बसपा से ठुकराये गये नेताओं को अपने पाट्री में शामिल कर लिया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इन्हे त्यागा
वोटबैंक के लिए पाट्रियां कुछ भी करने को तैयार है। वहीं अखिलेश यादव जानते हैं कि पिछड़ों के साथ यदि दलितों के वोट जुड़ जायें तो जीत मिलनी तय हो जायेगी। इसीलिए उन्होंने बहुजनों को साधना शुरु किया था। वे अपनी हर चुनावी रैली में ये दिखाना चाहते हैं कि जिस अभियान को बसपा सुप्रीमो मायावती ने त्याग दिया है। उसे उन्होंने अपना लिया है। वे हर रैली में निजीकरण के चलते सरकारी नौकरियों के सिकुड़ने, जातिगत जनगणना कराने जैसे मुद्दे पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। संविधान बचाने की जो बातें बसपा के नेता करते थे ।अब वे अखिलेश यादव करने लगे हैं। दलितों के साथ होने वाले अपराध पर वे आक्रामक तरीके से बीजेपी सरकार पर हमला बोलते दिख रहे हैं।
बसपा को निकाले गये नेताओ का सपा ने थामा हाथ
बहुजनों को अपना बनाने के लिए उन्होंने इस समाज के नेताओं को भी अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बसपा से निकाले गये टॉप ब्रास नेताओं का सबसे बड़ा ठिकाना सपा ही है। इन्द्रजीत सरोज तो पहले से ही हैं। हाल ही में 6 विधायकों के साथ लालजी वर्मा और रामअचल राजभर ने भी सपा का ही दामन थामा है। कभी बीजेपी से सांसद रहीं दलित लीडर सावित्री बाइ फुले से उन्होंने गठबंधन किया है। आजाद समाज पार्टी (भीम आर्मी ) के चन्द्रशेखर रावण से उनकी बातचीत चल रही है।
सपा-बसपा का गठबंधन
अब सवाल उठता है कि दलित समुदाय अखिलेश यादव को कितना अपना पायेगा। यूपी के गांव-गांव में पिछड़ों और दलितों की कई जातियों के बीच एका नहीं रहा है। यही वजह रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर पाया। सपा के वोट तो बसपा को गये, लेकिन बसपा के वोट सपा को ट्रांसफर नहीं हो पाये. कुछ दलित नेता अब इस संबंध को नये सिरे से परिभाषित कर रहे हैं।