अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के लिए घमासान:जूना अखाड़ा का तर्क- हमें अब तक अध्यक्ष पद नहीं मिला
वैष्णव अखाड़ा के महंत बोले- हमारा अध्यक्ष नहीं बना तो अलग हो जाएंगे
नरेंद्र गिरि की मौत के बाद खाली हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को लेकर अब अखाड़ों में घमासान शुरू हो गया है। जूना अखाड़ा का तर्क है कि उन्हें अब तक कभी अध्यक्ष पद नहीं मिला है, इसलिए उनकी दावेदारी पुख्ता है। उधर, वैष्णव अखाड़ा के महंत का कहना है कि अध्यक्ष पद उन्हें नहीं दिया गया, तो वे अखाड़ा परिषद से अलग हो जाएंगे।
नरेंद्र गिरि के षोडसी कार्यक्रम से भी वैष्णव संप्रदाय के श्रीदिगंबर अनी, श्रीनिर्मोही अनी और श्रीनिर्वाणी अनी अखाड़ों के संत-महात्माओं ने दूरी बनाए रखी। अब नरेंद्र गिरि के षोडसी कार्यक्रम के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष को लेकर अखाड़ों के बीच तकरार और तेज हो गई है।
वैष्णव और जूना अखाड़े ने पेश की दावेदारी
वैष्णव अखाड़ों ने अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी पहले ही ठोक रखी है। अब संन्यासियों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़े जूना अखाड़ा ने भी अध्यक्ष पद पर दावा पेश कर दिया है। हरिद्वार कुंभ में वैष्णव अखाड़ों को लेकर पहले ही रार मची हुई है। अब अखाड़ा परिषद अध्यक्ष को लेकर यह लड़ाई सतह पर आने की संभावना है।
फर्जी बाबाओं की सूची जारी करती अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद। (फाइल फोटो)
जूना अखाड़ा का है अपना तर्क
जूना अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरि का अपना तर्क है। उनका कहना है कि जब से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन हुआ है हमारे अखाड़े के महात्माओं को कभी अध्यक्ष पद नहीं दिया गया। हमारे महात्माओं को हमेशा महामंत्री व दूसरा पद दिया गया। संख्या बल के लिहाज से सबसे बड़ा अखाड़ा होने के कारण अब जूना अखाड़े के महात्मा को अध्यक्ष बनाना चाहिए। जूना अखाड़ा के संरक्षक महंत हरि गिरि का कहना है कि अखाड़ों से इस बारे में बात की जाएगी। सर्वसम्मति से अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना जाएगा।
वैष्णव अखाड़ों की धमकी, अध्यक्ष पद न मिला तो अलग हो जाएंगे
अध्यक्ष पद न मिलने पर वैष्णव अखाड़ों ने अपने आप को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से अलग करने की धमकी दे डाली है। श्रीनिर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास जी ने कहा कि हमारे 3 अखाड़ों में से किसी एक को अध्यक्ष बनाया जाए। वैष्णव अखाड़ों में श्रीनिर्मोही अनी, श्रीनिर्वाणी अनी और श्रीदिगंबर अनी अखाड़ा शामिल हैं।
हरिद्वार कुंभ में बैठक करते अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष नरेंद्र गिरि। (फाइल फोटो)
हरिद्वार कुंभ मेला से नाराज चल रहे वैष्णव अखाड़े
दरअसल, वैष्णव अखाड़े हरिद्वार कुंभ मेला से नाराज चल रहे थे। श्रीनिर्वाणी अखाड़ा के अध्यक्ष राजेंद्र दास ने हरिद्वार कुंभ में वैष्णव अखाड़ों की उपेक्षा किए जाने पर खासी नाराजगी जाहिर की थी। यह नाराजगी अभी तक कायम है। यह नाराजगी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि से भी थी। यही कारण है कि नरेंद्र गिरि की षोडसी कार्यक्रम में ये तीनों अखाड़े नहीं आए। उनका कोई भी संत-महात्मा निमंत्रण देने के बाद भी नहीं आया।
वैष्णव अखाड़े के संत को दिया जाए पद
श्रीदिगंबर अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत रामकिशोर दास ने कहा कि संन्यासी अखाड़े के महात्मा पिछले कई वर्षों से अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे हैं। अब वैष्णव अखाड़ों के संत को यह पद दिया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वैष्णव अखाड़े हमेशा के लिए परिषद से अलग हो जाएंगे।
नरेंद्र गिरि के निधन के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का पद खाली हो गया है। (फाइल फोटो)
बैरागी संप्रदाय के संतों ने भी प्रतिनिधित्व की मांग की
साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद परिषद के अध्यक्ष के चुनावों को लेकर सभी 13 अखाड़ों के साधु-संतों के बीच हलचल शुरू हो गई है। कुछ बैरागी संप्रदाय के संत अपने संप्रदाय को प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग कर रहे हैं। जूना अखाड़ा और वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े पहले ही अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। ऐसे में कैसे अध्यक्ष पद पर आम सहमति होगी यह बड़ा प्रश्न है। अध्यक्ष पद पर कौन बैठेगा और कैसे बैठेगा यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
एक पद संन्यासियों को, दूसरा बैरागियों को मिलता है
13 प्रमुख अखाड़ों को मिलाकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद बनती है। ये 13 अखाड़े चार संप्रदायों में बंटे हैं। इन 13 अखाड़ों में 7 संन्यासी और 3 बैरागी संप्रदाय के हैं। हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान 2019 में नरेंद्र गिरि को परिषद का दोबारा अध्यक्ष और महंत हरी गिरि को दोबारा महामंत्री बनाया गया था। दोबारा अध्यक्ष पद पर संन्यासी नरेंद्र गिरि को बैठाए जाने पर बैरागी संप्रदाय के संतों में नाराजगी थी।
वैरागी संप्रदाय के संतों ने तो अखाड़ा परिषद को भंग करने तक की मांग कर डाली थी। बैरागी संप्रदाय के संत बाबा हठयोगी का कहना है कि नियमानुसार परिषद के अध्यक्ष और महामंत्री में एक पद संन्यासी अखाड़ा और दूसरा पद बैरागी अखाड़ों को मिलना चाहिए। दोनों पदों पर दो बार से संन्यासियों को बैठाया जा रहा है यह गलत है।
श्री बाघंबरी गद्दी में कई बार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक आयोजित की गई है।
1954 में अखाड़ा परिषद का हुआ था गठन
आदि शंकराचार्य के बनाए सभी अखाड़ों को एकजुट करने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया था। साधु-संतों की इस सर्वोच्च परिषद में हर अखाड़े के महात्माओं का प्रतिनिधित्व होता है। परिषद में अध्यक्ष व महामंत्री का पद प्रभावशाली होता है। इस समय 13 अखाड़े ही हैं जिनकी मान्यता है। इनमें जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, अटल, आह्वान व आनंद संन्यासी अखाड़े माने जाते हैं। वैष्णव अर्थात वैरागियों के अखाड़े दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी व निर्मोही अनी हैं, जबकि उदासीन के अखाड़ों में बड़ा उदासीन, नया उदासीन व निर्मल शामिल हैं।
सरकार और साधु-संतों के बीच समन्वय बनाती है परिषद
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था है। पिछले एक दशक में इसके अध्यक्ष पद की गरिमा बढ़ी है। अध्यक्ष सीधे सरकार के टच में रहता है। सरकार भी उसकी बात सुनती है। अखाड़ा परिषद का मुख्य उद्देश्य कुंभ मेलों के दौरान सरकार और साधु-संतों के बीच समन्वय स्थापित करना है। इस समन्वय से ही कुंभ मेले में जमीन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। सुविधाओं का लाभ दूसरे संत-महात्माओं तक पहुंचाना और संतों की समस्याओं को दूर कराना ही परिषद अध्यक्ष का काम होता है। अखाड़ा परिषद के उपाध्यक्ष देवेंद्र शास्त्री का कहना है कि जल्द ही अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाई जाएगी और अध्यक्ष पद पर चर्चा होगी।