आखिर अखिलेश यादव कैसे समीकरण बैठा पाएंगे स्वामी प्रसाद मौर्य और मनोज पांडे के बीच
उत्तर प्रदेश ––इन दिनों उत्तर प्रदेश की सियासत करवट बदल रही है जैसे-जैसे 2024 का चुनाव करीब हो रहा है वैसे वैसे राजनैतिक कयास बाजी के बीच राजनीतिक परिवर्तन की देखने को मिल रहा है और ऐसे में जहां अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के स्कूल में काशीराम की मूर्ति के आवरण के माध्यम से दलितों को जोड़ने की तरफ एक कदम बढ़ाया तो क्षेत्रीय विधायक मनोज कुमार पांडे ने उस कार्यक्रम से किनारा करते हुए अपने तेवर साफ कर दिए । अखिलेश यादव के जाने के बाद
नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और मनोज कुमार पांडे के बीच की टकराहट किसी से छुपी नहीं है स्वामी प्रसाद मौर्या के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद अब एक ही पार्टी में रहते हुए भी उन दोनों के रास्ते अलग ही रहते हैं। पहले दोनों रामचरितमानस के मामले पर एक दूसरे के सामने खड़े दिखाई दिए तो आज एक बार फिर अखिलेश यादव के कार्यक्रम में जहां स्वामी प्रसाद मौर्या की होल्डिंगो में मनोज पांडे को जगह नहीं दी गई तो वही मनोज कुमार पांडे ने भी स्वामी प्रसाद मौर्या के कार्यक्रम से किनारा कर लिया ।
जब मनोज कुमार पांडे से होर्डिंगों मैं जगह ना मिलने की बात पूछी गई तो उन्होंने इस पर भी बड़ी बेबाकी से जवाब दिया कि जब जनता किसी को चुनकर भेजती है तो वही नेता होता है और जिसे हर आती है वह दिल से फेंका उतारा हुआ होता है ।
अखिलेश यादव के उनके स्वागत कार्यक्रम के बाद वह अखिलेश यादव के पीछे तो निकले लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम में नहीं गए जिससे साफ पता चलता है कि उनके क्षेत्रीय हस्ताक्षेप और राजनीतिक दखल को कतई स्वीकार करने को तैयार नहीं है हालांकि उन्होंने एक बात साफ कर दी कि जिस जनता ने उन्हें चुन के भेजा है उसके और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी नेताजी के लिए अंतिम सांस तक काम करते रहेंगे ।
रायबरेली की राजनीति अब एक नए मोड़ पर आ चुकी है, कहते हैं राजनीति में कुछ भी कभी एक सा नहीं रहता कुछ ऐसा ही इस वक्त देखने को मिल रहा है रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा में ।जहां स्वामी प्रसाद मौर्य और मनोज कुमार पांडे एक ही पार्टी में रहने के बावजूद आखिर एक दूसरे के साथ नजर क्यों नहीं आते ।इन दोनों के बीच का टकराव आखिर क्यों है इसको समझने के लिए इन बातों का जानना जरूरी है । फिर क्यों यह दोनों एक ही पार्टी में रहने के बावजूद एक दूसरे के सामने खड़े नजर आते हैं ।दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्या के राजनीतिक सफर की शुरुआत भी रायबरेली की इसी विधानसभा से हुई थी । हालांकि तब इस विधानसभा को ऊंचाहार नहीं बल्कि डलमऊ के नाम से जाना जाता था इस क्षेत्र से हो ना सिर्फ विधायक बने बल्कि इसी क्षेत्र से राजनीति करते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया बहुजन समाज पार्टी के विधायक से लेकर पार्टी के कैबिनेट मंत्री तक और फिर एक छोटे से कार्यकर्ता से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर उन्होंने यहीं से शुरू किया ।
वही मनोज पांडे का राजनैतिक शुरुआत तो रायबरेली की शहर से नगर पालिका अध्यक्ष के तौर पर हुई लेकिन जब विधायक के क्षेत्र का चुनाव का नंबर आया तो उन्होंने भी इसी विधानसभा को चुना लेकिन तब तक इस विधानसभा का नाम बदलकर ऊंचाहार हो गया था ।
और यहीं से शुरू होता है उनके और स्वामी प्रसाद मौर्य के बीच टकराव की वजह 2012 में जहां मनोज पांडे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर ऊंचाहार विधानसभा से ताल ठोक रहे थे स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बेटे अशोक मौर्या को यहां से बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार बनाया था मैं मनोज कुमार पांडे ने अशोक मौर्या को हराया था जिसके बाद 2017 के चुनावों में जहां समाजवादी पार्टी ने मनोज पांडे को फिर एक बार अपना प्रत्याशी बनाया था वहीं इस बार स्वामी प्रसाद मौर्य ने बहुजन समाज पार्टी की जगह अशोक मौर्या को बीजेपी से अपना उम्मीदवार बनवाया लेकिन इस बार भी स्वामी प्रसाद मौर्या के बेटे यानी अशोक मौर्या को निराशा हाथ लगी और एक बार फिर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मनोज पांडे चुनाव जीत गए ।