सौ साल बाद टाइटैनिक इस वजह से फिर हो रहा है तैयार
1997 में आई जेम्स कैमरून की फिल्म टाइटैनिक जिस किसी ने भी देखा है उसके लिए अच्छी खबर है। चीन के एक मनोरंजन पार्क में हुबहू टाइटैनिक जहाज बनाया जा रहा है। छह सालों बन रहे इस जहाज में 15 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा की लागत आई है। टाइटैनिक के समंदर में डूबने के सौ सालों बाद इसे सू शाओजूं तैयार कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उनकी तमन्ना थी की 260 मीटर लंबे इस जहाज को बनवा कर असली टाइटैनिक की यादें जिंदा रखी जाएं। टाइटैनिक अपने समय का सबसे बड़ा जहाज था और उसके मालिकों ने उसे “कभी ना डूबने वाला” बताया था। लेकिन 1912 में एक बर्फीले चट्टान से टकराने के बाद टाइटैनिक एटलांटिक समुद्र की गहराइयों में समा गया था। उस हादसे में 1500 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।
लेकिन सू उसकी यादें जिंदा रखने पर आमादा हैं। वो कहते हैं, “मैं उम्मीद करता हूं कि यह जहाज यहां 100-200 सालों तक रहेगा। हम टाइटैनिक के लिए एक संग्रहालय बना रहे हैं। ” इस जहाज को बनाने में छह साल लग गए, जो टाइटैनिक को बनाने में लगे समय से भी ज्यादा है। इसमें 23,000 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ है और इसे बनाने में 100 से भी ज्यादा कामगारों की मेहनत लगी है।
खाना खाने के कमरे से लेकर लक्जरी केबिन तक और यहां तक की दरवाजों के हत्थे भी, हर चीज टाइटैनिक की नकल की है। सिचुआन प्रांत के जिस मनोरंजन पार्क में इसे रखा गया है वो समुद्र से 1,000 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है। पार्क के अंदर सॉउथैंप्टन बंदरगाह की नकल का एक बंदरगाह भी बनाया गया है, ठीक वैसा जैसा फिल्म में था। इस नकली टाइटैनिक पर एक रात बिताने का खर्च करीब 150 डॉलर है। सू कहते हैं कि इस खर्च में अतिथियों को “पांच सितारा क्रूज सेवा” के अलावा एक चालू भाप इंजन की बदौलत बिलकुल समंदर में होने का एहसास होगा।
असली टाइटैनिक के मलबे का पता पहली बार 1985 में चला था। उत्तरी अटलांटिक में 3,800 मीटर की गहराई पर टाइटैनिक के टुकड़े 1912 से पड़े हैं। पानी के भारी दबाव के चलते इतनी गहराई पर खास पनडुब्बियां ही जा सकती हैं। आखिरी बार कनाडा की डलहौजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टाइटैनिक के मलबे तक पहुंचे थे। वहां वैज्ञानिकों को एक नए किस्म का बैक्टीरिया मिला। उसे हैलोमोनस टाइटैनिके नाम दिया गया। जिन परिस्थितियों में ज्यादातर जीव जिंदा नहीं रह सकते हैं, उन परिस्थितियों में यह बैक्टीरिया आराम से फलता फूलता है।
हैलोमोनस टाइटैनिके नाम के बैक्टीरिया को लोहा खाना बहुत पसंद है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बैक्टीरिया अगले 20 साल में टाइटैनिक के मलबे को पूरी तरह से चट कर देगा।