तालिबान के आगे नर्म पड़ी अफगान सरकार:
राष्ट्रपति अशरफ गनी बोले- तालिबान से सीधे बातचीत करने को तैयार, लड़ाई से नहीं निकलेगा इस परेशानी का हल
फोटो अफगानिस्तान के कंधार की है। तालिबान के आतंकियों से घंटो तक लड़ने के बाद हैंडपंप पर पानी पीते अफगान स्पेशल फोर्स के जवान। -फाइल फोटो
अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से जाने के बाद तालिबान बेहद मजबूत हो गया है। अब अफगानिस्तान की सरकार भी देश के 85% इलाके पर कब्जा कर चुके आतंकी संगठन से बातचीत के लिए तैयार हो गई है। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान के हालातों को सेना के जरिए ठीक नहीं किया जा सकता, इसलिए हमारी सरकार तालिबान से सीधे बातचीत करने के लिए तैयार है।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को राष्ट्रपति भवन में जॉइंट कोऑर्डिनेशन और मॉनिटरिंग बोर्ड की बैठक हुई। इसमें अशरफ गनी ने कहा, “मैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को विश्वास दिलाता हूं, अफगानिस्तान के लोग सरकार विरोधी तालिबान को पसंद नहीं करते। आज का अफगानिस्तान काफी बदल चुका है, लेकिन हम अपने देश के भविष्य की बेहतरी चाहते हैं।”
शांति के लिए 5 हजार तालिबानियों को छोड़ा
गनी ने कहा कि हम शांति चाहते हैं। तालिबान के 5 हजार लड़ाकों को छोड़ने का हमारा फैसला भी शांति स्थापित करने के लिए ही था। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले मैंने शांति के लिए एक रास्ता तैयार किया था। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कहने पर हमने अपने कानूनों के खिलाफ जाकर 5 हजार कट्टर आतंकियों और ड्रग डीलरों को रिहा किया था।
UN की रिपोर्ट: 6 महीने में 1659 लोगों की मौत
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान को लेकर डराने वाली जानकारी सामने आई थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि अफगानिस्तान में जारी हिंसा में 2021 के शुरुआती 6 महीनों में रिकॉर्ड संख्या में कैजुअल्टी हुई हैं। इस दौरान 1,659 लोगों की मौत हुई और 3,254 लोग घायल हुए। पिछले साल इसी दौरान हुई जनहानि से यह 47% अधिक है। यह कैजुअल्टी सरकार विरोधी तत्वों (AGE) ने 64%, तालिबान ने 39%, इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISIL-KP) ने 9% और 16% अज्ञात संगठनों ने पहुंचाई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के पहले 6 महीने में इन सभी हताहतों में करीब आधे बच्चे और महिलाएं थीं। मारे गए लोगों में 32 फीसदी बच्चे हैं, जिनकी संख्या 468 है और 1,214 बच्चे घायल हुए हैं। मृतकों में 14 फीसदी महिलाएं हैं, जिनकी संख्या 219 है, जबकि घायलों की संख्या 508 है। अमेरिका-नाटो सैनिकों की वापसी का 95 फीसदी काम पूरा हो गया है और 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से उनकी पूरी वापसी हो जाएगी।
क्या और कैसा है तालिबान?
1979 से 1989 तक अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का शासन रहा। अमेरिका, पाकिस्तान और अरब देश अफगान लड़ाकों (मुजाहिदीन) को पैसा और हथियार देते रहे। जब सोवियत सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ा तो मुजाहिदीन गुट एक बैनर तले आ गए। इसको नाम दिया गया तालिबान। हालांकि तालिबान कई गुटों में बंट चुका है।तालिबान में 90% पश्तून कबायली लोग हैं। इनमें से ज्यादातर का ताल्लुक पाकिस्तान के मदरसों से है। पश्तो भाषा में तालिबान का अर्थ होता हैं छात्र या स्टूडेंट।पश्चिमी और उत्तरी पाकिस्तान में भी काफी पश्तून हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश इन्हें अफगान तालिबान और तालिबान पाकिस्तान के तौर पर बांटकर देखते हैं।1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत रही। इस दौरान दुनिया के सिर्फ 3 देशों ने इसकी सरकार को मान्यता देने का जोखिम उठाया था। ये तीनों ही देश सुन्नी बहुल इस्लामिक गणराज्य थे। इनके नाम थे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और पाकिस्तान।