कुलपति के इंटरव्यू में आ गया मृतक, सच सामने आया तो हुए होश फाख्ता!
मथुरा के वेटनरी विश्वविद्यालय की कुलपति चयन प्रक्रिया को धता बताते हुए उप्र राजभवन और पशुधन विभाग की जुगलबंदी ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि जो भी सुनता है दाँतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है। एक मृतक ने कुलपति के लिए apply किया और उसका इंटरव्यू भी करा दिया गया। आइये आपको क्रमवार बताते हैं कि क्या-क्या और कैसे-कैसे हुआ है।
मथुरा स्थित दीनदयाल उपाध्याय पशु विश्वविद्यालय में कुलपति का पद खाली हो रहा था | जिसके बाद फरवरी 2019 में चयन प्रक्रिया शुरू की गई।
1. सर्वप्रथम राजभवन द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आवेदन आमंत्रित करने हेतु विज्ञप्ति प्रकाशित कराई जाती है। जिसमे आवेदन करने की अंतिम तिथि, न्यूनतम अर्हता आदि का ब्यौरेवार विवरण होता है।
2. राज्यपाल द्वारा पत्र जारी कर तीन व्यक्तियों की सर्च कमेटी बनाई जाती है। इस कमेटी में एक व्यक्ति शासन द्वारा, दूसरा राज्यपाल द्वारा और तीसरा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वेटरिनरी विश्वविद्यालय अधिनियम 11 के तहत नामित किया जाता है। इस सर्च कमेटी का कार्य देश भर से प्राप्त आवेदनों की छानबीन कर सर्वथा योग्य पात्र आवेदक चुनकर उनके नाम बंद लिफाफे में राज्यपाल को सौंपने भर का होता है।
3. उपरोक्त बंद लिफाफे को राज्यपाल जो कि प्रदेश के समस्त विश्विद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं वो उस लिस्ट में उल्लिखित आवेदकों को साक्षात्कार के लिए पत्र जारी करते हैं अथवा विशेषाधिकार के तहत किसी एक को अपने हस्ताक्षरित पत्र से कुलपति पद पर नियुक्ति का आदेश जारी कर सकते हैं।
चंद भ्रष्टों ने शुरुआत से ही इस प्रक्रिया को ध्वस्त कर कैसा खेल खेला आइये डालते हैं एक नजर
*सबसे पहले तो कोई विज्ञप्ति प्रकाशित ही नहीं कराई गई |
*सर्च कमेटी बनाने को राज्यपाल द्वारा कोई पत्र जारी नहीं किया गया।
*बिना राजभवन के आदेशों के बनी सर्च कमेटी में एक भी व्यक्ति वेटेरिनरियन नहीं था। जबकि शासन द्वारा नामित व्यक्ति के अलावा दोनो सदस्य वेटेरिनरियन ही होने चाहिए। सर्च कमेटी द्वारा राज्यपाल को 5 नामों की सूची भेज दी गयी, जिसमे आश्चर्यजनक रूप से पहले नंबर पर एक नॉन वेटरिनरियन और दूसरे नंबर पर एक ऐसे आवेदक डॉ दीपक शर्मा का नाम जिनकी जुलाई 2015 में ही हत्या कर दी गयी थी किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। तीसरे नंबर वाले चहेते को कुलपति बना दिया गया जबकि चौथा आवेदक नॉन वेटेरिनरियन था अब बचा पांचवां जो कि उस सूची का सबसे योग्य व्यक्ति था उसे फोन के माध्यम से सिर्फ चर्चा हेतु राजभवन बुलाया गया था। कोई इंटरव्यू नहीं, कोई प्रक्रिया नहीं बस जिस व्यक्ति से सेटिंग हो गयी उसे पूरी चयन प्रक्रिया और वेटरिनरी विश्विद्यालय अधिनियम 11 का सरासर उल्लंघन करते हुए कुलपति का पत्र थमा दिया गया।
यहीं से इस पद के योग्य दावेदारों में खलबली मच गई | वो स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगे और उनमें से एक डॉ आर के बघेरवाल जो इस वक्त मऊ मध्य प्रदेश के वेटरिनरी कॉलेज में मेडिसिन डिपार्टमेंट के हैड हैं | उन्होंने इस अनियमितता को उजागर करने को मोर्चा खोल दिया। जब उन्होंने सूचना अधिकार के तहत इस विषय मे जानकारियां मांगी तो कई चौंकाने वाली बातों का खुलासा हुआ। आरटीआई से प्राप्त जानकारी से स्पष्ट तौर पर कुलपति नियुक्ति घोटाले में फर्जी सर्च कमेटी के सदस्य और राजभवन की संलिप्तता सामने आई। डॉ बघेरवाल ने बताया कि उनके द्वारा मांगी गई कई सूचनाओं को राजभवन द्वारा पशुधन विभाग और पशुधन विभाग द्वारा राजभवन भेज कर टालने का प्रयास किया जा रहा है | इससे आजिज आकर डॉ बघेरवाल ने पीएमओ में भी शिकायत की है जिसकी जांच के लिए पीएमओ ने प्रमुख सचिव उप्र एसी पांडे को पत्र भेजा है। डॉ बघेरवाल ने बताया कि जब विज्ञप्ति प्रकाशित ही नहीं हुई तो आवेदन कैसे आये और यदि आ भी गए तो लगभग चार वर्ष पूर्व मृत व्यक्ति ने कैसे आवेदन किया, सर्च कमेटी ने मृतक का इंटरव्यू कैसे किया ये सारे सवाल इशारा करते हैं कि इस खेल में कोई मास्टरमाइंड भी शामिल है। जल्द ही इस घोटाले से पर्दा उठने वाला है और मास्टरमाइंड के साथ सभी दोषियों के नाम भी उजागर होने वाले हैं।