बुलंदशहर की ठगी के मामले में लंदन में हुई हाईप्रोफाइल गिरफ्तारी
कोई व्यक्ति गुनाह करके भले ही कितनी सरहदें लांघ जाए, लेकिन कानून के हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं। आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू) ने बुलंदशहर में हुए 1.76 करोड़ की ठगी के मामले में इसे चरितार्थ कर दिखाया है। इलाज के बहाने सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेकर लंदन भाग निकले दिल्ली निवासी दंपती पर सीबीआइ और इंटरपोल की मदद से आखिरकार शिकंजा कसा जा सका। ईओडब्ल्यू की प्रभावी पैरवी का नतीजा है कि आरोपित दंपती को इंग्लैंड पुलिस ने लंदन में गिरफ्तार कर लिया है। आरोपित दंपती को यहां लाने के बाद गौतमबुद्धनगर जेल में रखे जाने का निर्णय किया गया है।
दिल्ली निवासी वीर करन अवस्थी (51) व उनकी पत्नी रीतिका (49) के ठगी कर विदेश भाग निकलने की कहानी बेहद दिलचस्प है। आरोपित वीर करन ने वर्ष 2013 से 2015 के बीच बुलंदशहर में धान खरीदकर उसके एक्सपोर्ट का काम किया था। डीजी ईओडब्ल्यू डॉ.आरपी सिंह ने बताया कि वीर करन साकेत, दिल्ली स्थित बुश फूड ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के एमडी व उनकी पत्नी रीतिका डायरेक्टर हैं।
बुश फूड ने बुलंदशहर स्थित सौरभ एंड कंपनी से धान खरीदकर उसके एक्सपोर्ट का कारोबार शुरू किया था। शुरुआत में कुछ रकम देने के बाद धान खरीद के 1.76 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया। सौरभ एंड कंपनी के मालिक लोकेंद्र सिंह ने रकम वापस न मिलने पर 11 सितंबर 2015 को बुलंदशहर में दंपती के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। शासन ने 22 मार्च 2016 को इस मामले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी थी।
रामसुरेश यादव ईओडब्लू एएसपी ने ये बताया
वहीँ रामसुरेश यादव ईओडब्लू एएसपी ने बताया कि लंदन सरकार दंपति को भारत भेजने के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन इससे पहले वह उन्हें रखने के लिए जेल की व्यवस्था से संतुष्ट होना चाहता हैं | इसलिए नोएडा जेल का नाम फाइनल कर गृह मंत्रालय के विधिक सलाहकार को भेज दिया गया हैं |
वहीँ इस मामले पर डीजी ने बताया कि ईओडब्ल्यू को जांच ट्रांसफर होने से पहले आरोपित दंपती ने 20 अक्टूबर 2015 को अपनी गिरफ्तारी के विरुद्ध स्टे हासिल कर लिया था। हाई कोर्ट ने शर्त लगाई थी कि दंपती बिना अनुमति के देश नहीं छोड़ेगा। रीतिका ने 11 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थनापत्र देकर पति व अपने इलाज के लिए लंदन जाने की अनुमति मांगी थी, जिस पर कोर्ट ने 86 लाख रुपये की निजी जमानत पर दंपती को 31 जनवरी 2016 से दो माह तक के लिए लंदन जाने की अनुमति दे दी। मार्च में समय पूरा होने पर दंपती ने सुप्रीम कोर्ट से दो माह का और समय मांगा, लेकिन उसके बाद कभी लौटकर नहीं आए।