पूर्वांचल के सियासी रण का शंखनाद, BJP को रोकने के लिए सपा दे रही इस बात पर जोर
मऊ. उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण पर राजनीतिक दल फोकस कर रहे हैं. साथ ही राजनीतिक गुणा गणित बैठाई जा रही है कि कौन सी जातियां सत्ता पक्ष से नाराज हैं और कौन किस पाले में जा सकती है. इसकी शुरुआत किसी एक पार्टी ने नहीं बल्कि कांग्रेस, बसपा के साथ सपा ने भी शुरू कर दी है. पहली नजर प्रदेश में ब्राह्मण समीकरण को ही प्राथमिकता दी जा रही है. सपा ने पूर्वांचल के मऊ, बलिया, गाजीपुर में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के बहाने ब्राम्हणों की योगी से नाराजगी को हवा देकर उन्हें अपने पाले में करने का शंखनाद भी कर दिया है. छोटे दलों के नेतृत्व को भी कोई दल नजर अंदाज नहीं करना चाहता है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण एक प्रमुख आधार है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है. पिछले दो दशक से अधिक समय से सपा, बसपा ही नहीं भाजपा भी सामाजिक न्याय को आधार मानकर प्रमुख जातियों को रिझाकर अपनी सरकार बनाते आ रहे हैं. यह अलग बात है कि सरकार बनने के बाद यह मुद्दा खत्म हो जाता है. समाजवादी पार्टी जातीय समीकरण के साथ अपने रचनात्मक जनहित से जुड़े कार्यों को भी महत्व देती रही है, लेकिन 2017 के चुनाव में मात खाने के बाद वह भी कोई चूक नहीं मोल लेना चाहती है. समाजवादी पार्टी ने ब्राम्हणों को एक जुट कर प्रदेश में प्रबुद्ध सम्मेलन के बहाने उनकी नब्ज को टटोलना शुरू कर दिया है.
उसका मानना है कि प्रदेश में अगर ब्राम्हणों की योगी सरकार से नाराजगी को भुना लिया गया तो अन्य जातियों का भी आकर्षण पार्टी के तरफ बढ़ेगा. इसी को दृष्टि रखते हुए मऊ जनपद में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया गया जो आगामी विधान सभा चुनाव की रणनीति का आगाज है. इसमें विधिवत ब्राम्हण समाज की भीड़ भी सत्ता पक्ष को सोचने पर विवश कर रही है और वह उनकी नाराजगी का कारण भी ढूंढ़ने में लगे हैं. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डे ने तो मंच से योगी सरकार पर ब्राम्हणों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया. कहाकि पिछले 4 सालों में 40 से अधिक ऐसे प्रकरण हैं, जिनमें ब्राम्हणों को बदनाम करने, उन्हें कुचलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसका हिसाब किताब 2022 में ब्राम्हण समाज करेगा और समाजवादी पार्टी की सरकार बनाकर बीजेपी के अहंकार को तोड़ेगा.