370 हटने के 2 साल बाद कश्मीर
आतंकी वारदातों में 60% की कमी; पत्थरबाजी भी 87% तक घटी, टूरिज्म कारोबार 20 से 25% तक लौटा
श्रीनगर में घूमते हुए जगह-जगह चेकपोस्ट, बंकर दिखते रहते हैं। सायरन की आवाज सुनाई देती रहती है, लेकिन बाजार में अच्छी खासी चहल-पहल है और डल झील भी टूरिस्टों से गुलजार है।
अब दो साल पहले फ्लैश बैक में चलते हैं। कयासों का बाजार गर्म था कि कुछ बड़ा होने वाला है। अमरनाथ यात्रा बीच में ही रोक दी गई थी। कश्मीर में 35 हजार सुरक्षाकर्मी और तैनात कर दिए गए थे। भाजपा ने अपने सभी सांसदों को सदन में हाजिर रहने के लिए व्हिप जारी कर दिया था। 5 अगस्त, 2019। सोमवार का दिन। गृह मंत्री अमित शाह एक मोटी फाइल के साथ सदन में पहुंचते हैं और दो प्रस्ताव रखते हैं।
आज से ठीक दो साल 5 अगस्त 2019 को संसद में दो प्रस्ताव रखकर गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 और 35A को रद्द करने की घोषणा की थी।
कुछ ही देर में साफ हो जाता है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 और 35A को रद्द कर दिया गया है। साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। इसके बाद कश्मीर में सख्त लॉकडाउन लागू हो जाता है। फैसला दिल्ली में लिया गया था, लेकिन इसकी गूंज पूरे देश में होती है।
अब वापस आते हैं। आर्टिकल 370 हटने के दो साल बीत चुके हैं। इन दो सालों में कश्मीर में क्या बदला? यह जानने के लिए हमने 1 अगस्त से 5 अगस्त तक का वक्त श्रीनगर और नॉर्थ कश्मीर में गुजारा। लद्दाख, करगिल, जम्मू और ऊपरी पहाड़ी इलाकों मे रहने वालों लोगों से लंबी बातें की। इस घुमक्कड़ी और बातचीत में आप भी शिरकत करिए..
डल झील पहुंचकर हम एक शिकारे पर सवार होते हैं। कोविड के बावजूद डल झील पर काफी टूरिस्ट हैं। शिकारा चलाने वाले और टूरिस्टों के मुस्कराते चेहरे देख एहसास होता है कि कश्मीर में माहौल कुछ तो बदला है। 70 साल के बुजुर्ग नूर मोहम्मद झील में हमारा शिकारा तैरा रहे थे। वे पिछले 40 सालों से शिकारा चला रहे हैं और लोग उन्हें प्यार से काका बुलाते हैं।
डल झील में शिकारे पर सवार सैलानी। पहले आर्टिकल 370 के हटने और फिर कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के चलते कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री ठप रही, लेकिन अब टूरिस्ट लौट रहे हैं।
आर्टिकल 370 को हटे दो साल हो गए, कश्मीर में क्या बदला? इस सवाल पर काका कहते हैं कि ‘5 अगस्त 2019 को जिस दिन आर्टिकल 370 हटा, उस दिन यहां अचानक से पुलिस आई और हाउसबोट, शिकारा से टूरिस्ट को निकालने लगी। इसके बाद महीनों तक हम बिना काम के घर बैठे रहे। कुछ महीनों बाद हालात थोड़े बदलते से लगे तो कोरोना आ गया। दूसरी लहर ने तो कश्मीर में भी काफी कहर बरपाया। 4-5 साल पहले जैसे टूरिस्ट आते थे, अभी उतने तो नहीं आ रहे हैं, लेकिन हालात पहले से बेहतर हुए हैं।’
कश्मीर की सियासी पार्टियों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ‘हम बहुत सालों से वोट डाल रहे हैं। पहले मैं नेशनल कॉन्फ्रेंस को पसंद करता था, लेकिन चुनाव के बाद सब गायब हो जाते हैं। अब फिर सुन रहे हैं कि कश्मीर में जल्द चुनाव हो सकते हैं।’
देहरादून में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे अचिंत्य बिना किसी प्लानिंग के देहरादून से अपने दोस्तों के साथ जम्मू होते हुए कई बसें बदलकर श्रीनगर पहुंचे हैं। कश्मीर आने के पहले यहां की हिंसा, पत्थरबाजी आतंकवाद की खबरें जेहन में नहीं आईं? इसके जवाब में अचिंत्य कहते हैं कि ‘मैं पहले तो यहां कभी नहीं आया, लेकिन इस समय मुझे यहां का माहौल अच्छा लगा। मैं देश और विदेश की दूसरी जगहों पर गया हूं, लेकिन यहां के लोग बहुत ही मेहमाननवाज हैं।’
श्रीनगर के बाजारों में सुरक्षा अभी भी कड़ी है, लेकिन इसका असर सड़कों और दुकानों की चहल-पहल पर नहीं दिखता है। रोजमर्रा की जिंदगी सामान्य तरीके से चलती दिखती है।
20 से 25% तक टूरिस्ट लौटे
कश्मीर की इकोनॉमी में टूरिज्म से करीब 20% आबादी को रोजगार मिलता है। हाउसबोट ऑनर एसोसिएशन के सेक्रेट्री जनरल तुर्शीद कोलू बताते हैं कि ‘पहले आर्टिकल 370 हटने और फिर कोविड के चलते हमारा कारोबार जीरो पर आ गया था। दूसरी लहर जाने के बाद अब नॉर्मल दिनों की तुलना में 20-25% पर्यटक आने लगे हैं। 2009 में हमारे 1500 के करीब रजिस्टर्ड हाउसबोट हुआ करते थे, अब ये घटकर 900 ही रह गए हैं। केंद्र सरकार ने गर्वनर रूल लागू किया, लेकिन इसमें भी ऐसा कुछ नहीं हुआ कि हमें कारोबार में कोई फायदा मिले।’
सुरक्षा व्यवस्था कड़ी, लेकिन बाजारों में चहल-पहल
शाम का वक्त है और हम श्रीनगर के प्रसिद्ध लाल चौक पहुंचते हैं। यहां CRPF जवान और कश्मीर पुलिस बड़ी मात्रा में तैनात है, लेकिन चौक के आसपास की सड़कों पर बनी दुकानों, शोरूम, कॉम्प्लेक्स में खूब चहल-पहल है।
हमने CRPF की तैनात बटालियन के CO और जेके पुलिस के एसएचओ से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। लाल चौक के ठीक सामने ड्रायफ्रूट की दुकान चलाने वाले बशीर अहमद लाल चौक मार्केट के प्रेसिडेंट भी हैं। बशीर मानते हैं कि कारोबार 25 से 30% तक लौटा है।
यह श्रीनगर के लाल चौक का बाजार है। यहां के कारोबारी बताते हैं कि लगभग दो साल लंबा लॉकडाउन झेलने के बाद अब बाजारों में भीड़ आनी शुरू हुई है।
बशीर से बातचीत राजनीति तक पहुंचती है। वे कहते हैं कि ‘मैंने बहुत से प्रधानमंत्री देखे हैं, लेकिन हम कश्मीरी जब आपस में बात करते हैं तो सबके मुंह से अटल बिहारी बाजपेयी की तारीफ सुनने को मिलती है। उन्होंने कश्मीरियों के दिल में खास जगह बनाई। उन्होंने ऐसे फैसले किए जिनसे कारोबार चमका।’
‘लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने का फायदा ही हुआ है’
लाल चौक मार्केट में हम सुस्ताने के लिए कुछ देर बैठे तो गुलाम मोहम्मद मिले। वे बौद्धों जैसा पहनावा पहने हुए थे। गुलाम कश्मीर से बंटे केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के करगिल इलाके में रहते हैं। वे बताते हैं कि ‘अगस्त 2019 के बाद पर्यटन प्रभावित हुआ था, लेकिन अब हालात सामान्य होते दिख रहे हैं। कश्मीर हो या लद्दाख पर्यटक फिर से आने लगे हैं। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से भी कई फायदे हुए हैं।’
इंटरनेट स्लो होने की शिकायत सभी करते हैं
तारिक पटलू की बेटी जैनेल 9 साल की है। थर्ड क्लास में पढ़ने वाली जैनेल साइंटिस्ट बनना चाहती है। जैनेल बताती हैं कि ‘पिछले 2 साल में मैं सिर्फ 2-4 दिन ही स्कूल जा पाई हूं।’ जैनेल की क्लास अभी ऑनलाइन चल रही है, लेकिन वो बताती हैं कि ‘कश्मीर में इंटरनेट बहुत स्लो है। जिससे क्लासेस में दिक्कत होती है।’
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में हुई लंबी सुनवाई के बाद 5 फरवरी, 2021 को सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट को बहाल कर दिया है, लेकिन कश्मीर में बहुत सारे लोग धीमे इंटरनेट और प्रीपेड नंबर न चलने की शिकायत करते हैं।
कैमरे पर बात करने से बचते हैं नौजवान
हमने कश्मीरी युवाओं से बात की, लेकिन जैसे ही कैमरे पर रिकॉर्ड करने की बारी आती है तो हर कोई मुकर जाता है। ऑन रिकॉर्ड बात करने में क्या दिक्कत है? इस पर जवाब मिला- ‘हम ऐसी कई घटनाओं के बारे में सुन चुके हैं कि किसी का कोई वीडियो वायरल हो गया और उसे पुलिस उठाकर ले गई। हम नहीं चाहते कि पुलिस रिकॉर्ड में हमारा नाम आए।’
ये डाउनटाउन के इलाके में स्थित एक सूफी श्राइन है। डाउनटाउन का इलाका पत्थरबाजी के लिए बदनाम था, लेकिन फिलहाल काफी दिनों से यहां इस तरह की घटनाएं नहीं हुई हैं।
1 अगस्त 2021 को ही जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आदेश जारी किया है कि जो भी पत्थरबाजी या ऐसी किसी हरकत में शामिल मिलेगा उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी और पासपोर्ट में सिक्योरिटी क्लीयरेंस भी नहीं मिलेगा। कुछ लोग युवाओं के कैमरे पर बात न करने की वजह इस आदेश को बताते हैं।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह के मुताबिक, 2019 के मुकाबले 2020 में पत्थरबाजी की घटनाओं में 87.31% की कमी आई है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 370 हटने के बाद आतंकी वारदातों में 60% तक की कमी आई है। रिपोर्टिंग के दौरान हम श्रीनगर के डाउनटाउन में भी पहुंचे जो कुछ साल पहले तक पत्थरबाजी की घटनाओं के कारण बदनाम रहा है, लेकिन इस समय यहां हालात सामान्य नजर आए। लोग सड़कों और दुकानों पर चहल-कदमी कर रहे थे।
‘गवर्नर रूल से पहाड़ी समुदाय को तो फायदा ही हुआ है’
बॉर्डर के जिले कुपवाड़ा के रहने वाले बशीर अहमद कहते हैं कि ‘हम कश्मीर के पहाड़ी समुदाय से आते हैं। पहाड़ी लोगों के साथ यहां हमेशा नाइंसाफी हुई है। पीडीपी से लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस तक किसी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया, लेकिन गवर्नर रूल लगने के बाद हमारे साथ थोड़ा इंसाफ हुआ है और हमारे समुदाय को कश्मीर में 4% आरक्षण दिया गया है। इससे कुछ तो फायदा होगा।’
कश्मीर के राजौरी, पुंछ, बारामूला, कुपवाड़ा जिलों में काफी तादाद में पहाड़ी समुदाय के लोग रहते हैं। 30 जनवरी 2020 को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने आरक्षण नीति में बदलाव को मंजूरी दी थी और इसके बाद से पहाड़ी समुदाय के लोगों के लिए कुल 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
‘लंबे लॉकडाउन के चलते मैं मेंटल स्ट्रेस में चला गया था’
लाल चौक पर किताब की एक दुकान पर कुपवाड़ा के रहने वाले शाकिब मुश्ताक मिले। शाकिब NEET की तैयारी कर रहे हैं। तैयारी कैसी चल रही है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ‘पहले आर्टिकल 370 हटने की वजह से लॉकडाउन लगा और फिर कोविड आ गया। यहां हर किसी को मेंटल स्ट्रेस की दिक्कत हुई है। मैं खुद डिप्रेशन में चला गया और मुझे मौत का डर लगने लगा था। मैं स्कूल में पढ़ने में बहुत ही अच्छा था, लेकिन लंबे लॉकडाउन के कारण मैं अपनी पढ़ाई पर बिल्कुल भी फोकस नहीं कर पाया। मुझे नहीं पता कि मैं इस साल भी NEET में अपीयर हो पाऊंगा या नहीं।’
65000 की क्षमता, अभी सिर्फ 1500 से 2000 टूरिस्ट
कश्मीर में टूरिस्ट लौट रहे हैं, लेकिन टूरिज्म इंडस्ट्री की क्षमता की तुलना में यह काफी कम है। 65000 लोगों के रुकने की क्षमता है। अभी रोजाना 1500 से 2000 लोग ही आ रहे हैं।
हमारी मुलाकात जम्मू-कश्मीर टूरिज्म अलायंस के चेयरमैन मंजूर अहमद पखतून से होती है। पखतून साहब टूरिज्म से जुड़े अलग-अलग कारोबार होटल, ट्रांसपोर्ट, एडवेंचर एक्टिविटी वगैरह के लिए बने यूनाइटेड फोरम के भी प्रमुख हैं। वो बताते हैं कि ‘कश्मीर में अभी करीब 1500 से 2000 पर्यटक रोज आ रहे हैं, लेकिन गुलमर्ग, पहलगाम, श्रीनगर, सोनमर्ग में 65000 लोगों के लिए बेड कैपेसिटी है।’
अपनी घुमक्कड़ी के एक दिन हम गुलमर्ग पहुंचते हैं। गुलमर्ग में हमें जम्मू से आईं कोशी रैना मिलती हैं। वे परिवार के साथ कश्मीर आई थीं। कश्मीर की बात करने पर वे भावुक हो जाती हैं। वो बताती हैं कि ‘उनके पिता और दादा को 90 के दशक में यहां से माइग्रेट होकर जाना पड़ा। अब हमारा यहां अपना कोई घर नहीं है। हम भी यहां सैलानी की तरह नजर आते हैं।’
गुलमर्ग से लौटने के रास्ते में हम एक शॉल की दुकान पर रुके। दुकान मालिक जहूर अहमद भट ने रंग-बिरंगी शॉल दिखाने के साथ हमें केसर डला कहवा भी पिलाया। वे कहते हैं कि ‘कश्मीर को लेकर टीवी न्यूज मीडिया ने अलग ही छवि बनाकर रखी है। हमारी लोगों से अपील है कि लोग खुद कश्मीर आएं। हमें मेहमाननवाजी का मौका दें और फिर यहां के बारे में अपनी राय बनाएं।’