संसदीय समिति की सलाह- इस मुद्दे पर दें जोर, जानें क्या

नई दिल्ली. संसद (Parliament) की एक समिति ने श्रम मंत्रालय (labor Ministry) से कहा है कि उसे कोविड-19 महामारी (covid-19 pandemic) के कारण प्रवासी मजदूरों के पलायन जैसी अभूतपूर्व स्थिति पर संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे मुद्दे पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप करने का इंतजार नहीं करना चाहिए. ‘बढ़ती बेरोजगारी तथा संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में नौकरियों एवं आजीविका के नुकसान पर कोविड-19 के प्रभाव’ विषय पर संसद की श्रम संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है. यह रिपोर्ट मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में पेश की गई. समिति ने अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मियों को आर्थिक मदद करने की सलाह देते हुए कहा, ‘दो लॉकडाउन के कारण नौकरियों/ रोजगार के नुकसान की भरपाई के लिए गरीबों को आर्थिक सहायता का एक और दौर की पेशकश करना उनके संकट को कम करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा.’

समिति की रिपोर्ट ने मनरेगा के तहत गारंटीकृत काम के अधिकतम दिनों को 100 दिनों से बढ़ाकर 200 करने और श्रमिकों के लिए अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा की भी सलाह दी गई है. रिपोर्ट में पीएम-स्वनिधि योजना के तहत स्ट्रीट वेंडर्स को दिए गए उधार को सीधे नकद में बदलने की सलाह दी गई है, कहा गया है कि नकद मदद से लोगों की आय की गतिविधि फिर से शुरू हो सकेगी. संसदीय समिति ने संकट में राहत और पुनर्वास के प्रावधान के लिए उनका विस्तृत रिकॉर्ड रखने का भी सुझाव दिया है. इसमें कहा गया है कि समिति ने नोट किया है कि मंत्रालय द्वारा राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान अपने गृह राज्यों में लौटे प्रवासी कामगारों की कुल संख्या 1,14,30,968 थी. महामारी की दूसरी लहर के लॉकडाउन के दौरान 5,15,363 प्रवासी कामगार अपने गृह राज्यों में लौटे.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति को यह जानकर आश्चर्य हुआ है कि ‘जब सारा राष्ट्र असहाय होकर अपने मूल स्थान की ओर पैदल लौट रहे प्रवासी कामगारों के हृदय विदारक दृश्य को देख रहा था, तब मंत्रालय ने प्रवासी कामगारों के अत्यधिक आवश्यक विस्तृत आंकड़े एकत्र करने के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखने में दो महीने का यानी जून 2020 तक का इंतजार किया और उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्देशित किये जाने के बाद ही पत्र लिखा.

इसमें कहा गया है, ‘समिति मंत्रालय से आग्रह करती है कि वह न्यायपालिका के हस्तक्षेप का इंतजार किये बिना इस तरह के अभूतपूर्व संकट का स्वतः संज्ञान ले. ‘ बीजद सांसद भर्तृहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोगों में से अधिकतर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के तहत आते हैं और काम करते हैं. कोविड-19 महामारी ने भारतीय श्रम बाजार को तबाह कर दिया है, रोजगार के परिदृश्य को नुकसान पहुंचाया है.’

इसमें कहा गया है कि महामारी के कारण लाखों कामगारों और उनके परिवार के अस्तित्व के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया है. आईएलओ (अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन) के प्रतिवेदन के अनुसार भारत में 40 करोड़ से अधिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत कामगार महामारी के कारण गरीबी के गर्त में जा सकते हैं और आतिथ्य तथा आवास, खुदरा और थोक व्यापार सेवाओं, निर्माण एवं उद्योग जैसे क्षेत्रों में उत्पादन में कमी और रोजगार के आंकड़ों में कमी के गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं.रिपोर्ट के अनुसार, संगठित क्षेत्र के कामगारों को भी कोविड-19 महामारी के कारण नौकरी और आजीविका के नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ा है. इसमें कहा गया है कि यद्यपि दूसरी लहर के बारे में कोई सर्वेक्षण डेटा अभी तक उपलब्ध नहीं है, जो निर्विवाद रूप से पहले से अधिक गंभीर थी. वास्तविक प्रमाण के रूप में पहली लहर के दौरान अनुभव की गई स्थिति से स्पष्ट है कि अनौपचारिक क्षेत्र में आय का नुकसान हुआ जिसके कारण कमजोर वर्ग के लोग संकट की स्थिति में चले गए.

Related Articles

Back to top button