स्पेस की दुनिया के 5 हादसे:लैंडिंग सटीक हुई, धरती पर सब तालियां बजाने लगे, स्पेसक्राफ्ट के अंदर देखा तो यात्रियों के मुंह-नाक-कान से खून निकल रहा था, वे मर चुके थे
ह्यूस्टन, हम खतरे में हैं। हमारी मदद करो। चांद पर जाने वाले पहले शख्स नील आर्म्सट्रांग के मिशन पर बनी फिल्म ‘अपोलो 13’ का ये डायलॉग आज भी आंखों में आंसू ले आता है। स्पेस से जुड़े मिशन की असल तस्वीरें हो या कोई फिल्म ही क्यों न हो, जो उसे देख रहा होता है, उसे भी हर घड़ी एक अजीब डर सता रहा होता है। ये डर यूं ही नहीं होता, स्पेस में हुई घटनाएं इसकी गवाह हैं। बीते 11 जुलाई को जब पहली बार 6 आम इंसान स्पेस की यात्रा कर रहे थे, तब ट्विटर, यूट्यूब जहां से भी इसे लाइव दिखाया जा रहा था, उस दौरान सबसे ज्यादा यही सवाल पूछा गया कि क्या सब कुछ ठीक-ठाक है?
दरअसल, इसके पीछे बड़ी वजह है ये है कि आम आदमी तो दूर, सालों-साल अंतरिक्ष की दुनिया को खंगालने वाले कई वैज्ञानिक ही स्पेस में जाने के बाद अपनी जान गंवा चुके हैं। हम यहां अंतरिक्ष की ऐसी ही 5 सबसे भयावह घटनाओं के बारे में बता रहे हैं…
सोयूज 1 : रूस ने जल्दबाजी में अंतरिक्ष में भेज दिया था यान
साल 1967, पश्चिमी देशों और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष में पहले पहुंचने की होड़ लगी थी। तभी सोवियत क्रांति के 50 साल पूरे होने का इवेंट आ गया। रूस ने आव देखा न ताव सोयूज 1 यान को व्लादिमिर कोमेरेव के साथ लॉन्च कर दिया। एक अंतरिक्ष यात्री ने एक किताब में इस घटना के बारे में लिखा है कि रूस ने मिशन को जल्दबाजी में लॉन्च किया। जब ये हवा में उड़ा तो इसमें कई तकनीकी खामियां रह गई थीं। नतीजा ये हुआ कि अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट दुर्घटनाग्रस्त होकर ध्वस्त हो गया। वापस लौटते वक्त कोमेरोव का पैराशूट भी नहीं खुला और उनकी मौत हो गई। इस घटना ने दुनियाभर के अंतरिक्ष यात्रियों को हिला दिया था। इसे अंतरिक्ष यात्रा की पहली बड़ी दुर्घटना भी कहते हैं।
अंतरिक्ष यान के दुर्घटनाग्रस्त होने पर व्लादिमिर कोमेरेव उसमें से बचकर निकल गए थे। बल्कि धरती तक आ गए थे, लेकिन यहां उतरते वक्त उनके सुरक्षा कवच का पैराशूट नहीं खुला। नीचे गिरने पर इसके परखच्चे उड़ गए और कोमेरेव की दर्दनाक मौत हो गई।
सोयूज 11 : मुंह, कान और नाक से खून निकला, तीनों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत
सोयूज 1 के हादसे के 4 साल बाद 1971 में रूस ने सोयूज 11 को 3 यात्रियों विक्टर पेत्सयेव, व्लादिस्लेव वोलकोव और ज्यॉर्जी के साथ स्पेस में भेजा। इन्हें रूस के पहले स्पेस स्टेशन सेल्यूट 1 पर पहुंचना था। पिछली बार हुई गलतियों को नहीं दोहराया गया था। पूरी तैयारी थी। इसीलिए यान स्पेस स्टेशन पर एकदम सही तरह से लैंड कर गया। नीचे रूस के वैज्ञानिकों के चेहरे पर खुशी नाच गई। वे एक-दूसरे से हाथ मिला रहे थे, लेकिन कुछ समय बीतने के बाद भी जब स्पेसक्राफ्ट में कोई हलचल नहीं हुई तो यान के अंदर लगे कैमरों को देखा गया। इसके बाद धरती पर मौजूद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के चेहरे का रंग बदल गया। तीनों यात्रियों के मुंह-नाक और कान से बेतहाशा खून निकल रहा था। वो मर चुके थे।
इन तीन अंतरिक्ष यात्रियों की याद में रूस तो क्या स्पेस की दुनिया में रुचि रखने वाला हर इंसान रो पड़ा था।
लॉन्च होने के 73 सेकेंड बाद ही टुकड़ों में बिखर गया NASA का शटल चैलेंजर
दो दर्दनाक हादसों के बाद रूस के स्पेस वाले प्रोजेक्ट ढीले पड़ गए। मगर इसके करीब 17 साल बाद 28 जनवरी 1986 को अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अंतरिक्ष यान स्पेस शटल चैलेंजर का जो हाल हुआ, उससे तो पूरी दुनिया ही दहल गई। ये ऐसी तबाही थी कि 73 सेकेंड पहले धरती से निकलते वक्त जो 7 यात्री खुशी से फूले नहीं समा रहे थे, मुश्किल से एक मिनट बाद ही उनके चीथड़े उड़ चुके थे। लॉन्चिंग के अगले ही पल यान के ओ-रिंग ने काम करना बंद कर दिया और वह सबकी आंखों के सामने फट गया। इसके टुकड़ों का अता-पता तक न चला। इसका कारण ठंड को बताया गया।
यान उड़ने से पहले यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान थी।
वो हादसा, जिसने भारत की बेटी कल्पना चावला की जान ले ली
नासा के शटल चैलेंजर वाली दुर्घटना के ठीक 17 साल बाद 1 फरवरी 2003 को पूरी दुनिया में खुशी छाई हुई थी। खासकर कि भारत में। एक भारतीय मूल की लड़की कल्पना चावला स्पेस की यात्रा पूरी करने वाली थी। कोलंबिया स्पेस शटल धरती पर लौट रहा था, लेकिन शटल के बाएं विंग की गर्मी को रोकने वाली टाइलें उखड़ गईं। शटल जब पृथ्वी के वायुमंडल में घुसा तो गर्म हवाओं का सामना नहीं कर पाया। कल्पना चावला समेत यान में बैठे सभी 7 अंतरिक्ष यात्रियों को मौत से 41 सेकेंड पहले पता चल गया था कि उनका यान नियंत्रण खो चुका है।
तस्वीर में बीच में दिख रहीं भारतीय मूल की कल्पना चावला को देश आज भी याद करता है।
स्पेस में यात्रियों को आग ने चारों ओर से घेर लिया, लेकिन उन्होंने अपनी जान बचा ली
अंतरिक्ष में घटने वाली बड़ी दुर्घटनाओं में चांद पर जाने वाले अपोलो मिशन को भी गिनते हैं। हुआ ये कि जब यान अंतरिक्ष में तैर रहा था, तभी केबिन में आग लग गई। असल में वहां कुछ ज्वलनशील वेलकरो स्ट्रिप रखी थी, वहीं पर शुद्ध ऑक्सीजन भी थी। समय रहते यात्रियों का ध्यान इस पर नहीं गया और देखते ही देखते गुस ग्रिसोम और एडवर्ड व्हाइट के कॉकपिट को चारों तरफ से आग ने घेर लिया, लेकिन इस कठिन घड़ी में भी दोनों ने हार नहीं मानी और खुद को बचाने के लिए जान झोंक दी। यही वजह थी कि 27 जून 1967 को अंतरिक्ष में गए अपोलो 1 में किसी की जान नहीं गई।