अफगानिस्तान में भारत का कितना और कहां है निवेश, जानिए तालिबान के आने के बाद अब क्या है इसका भविष्य
नई दिल्ली. अफगानिस्तान (Afghanistan ) में तेज़ी से हालात बिगड़ रहे हैं. अमेरिकी और NATO की सेना के वापसी की प्रक्रिया लगातार जारी है. इस बीच तालिबान (Taliban) ने पूरे देश में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. तालिबान ने पिछले कुछ सप्ताह में कई रणनीतिक जिलों में नियंत्रण हासिल किया है, जिनमें विशेष रूप से ईरान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमाओं से लगे इलाके हैं. कहा जा रहा है कि इस वक्त तालिबान का नियंत्रण अफगानिस्तान के कुल 421 जिलों और जिला केंद्रों में से एक-तिहाई से भी अधिक पर है. उधर अफगान सरकार के सैनिक मैदान से हटते नजर आ रहे हैं. इस बीच वहां राजनयिक स्तर पर भारत के लिए भी हालात ठीक नहीं है. मौजूदा हालात में भारत को यहां अपनी कोई भूमिका नहीं दिख रही है.
तालिबान के खात्मे के बाद पिछले करीब 20 सालों से अगानिस्तान और भारत के रिश्ते बेहद मजबूत हो गए थे. बता दें कि अफगानिस्तान इस क्षेत्र में भारत के सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है. ये शायद एकमात्र सार्क राष्ट्र भी है, जिसके लोगों को भारत से खासा लगाव है. पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में बड़ा निवेश किया है. भारत ने यहां महत्वपूर्ण सड़कों, बांधों, बिजली लाइनों और सबस्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण किया है. भारत की विकास सहायता अब 3 बिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है. लेकिन भारत के इस निवेश का अब क्या है भविष्य इसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही है. आईए एक नज़र डालते हैं कि भारत ने अफगानिस्तान में कहां और किन प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है.
साल 2011 के भारत-अफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते ने यहां बुनियादी ढांचे और संस्थानों के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए सिफारिश की थी. लिहाज़ा कई क्षेत्रों में अफगानिस्तान में निवेश को बढ़ावा दिया गया. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब एक अरब डॉलर का है. नवंबर 2020 में जिनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन में बोलते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा आज भारत के प्रोजेक्ट से अछूता नहीं है. उन्होंने कहा था कि यहां के 34 प्रांतों में 400 से अधिक प्रोजेक्ट्स हैं. लेकिन अब इन सारे प्रोजेक्ट का भविष्य अधर में लटक गया है.
सलमान डैम
सलमान डैम अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में है. यहां भारत ने 42 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट लगाया गया है. कई मुश्किलों के बाद इस प्रोजेक्ट को पूरा किया गया. साल 2016 में इसका उद्घाटन किया गया. इसे अफगान-भारत मैत्री डैम के रूप में जाना जाता है. फिलहाल इस इलाके में लड़ाई चल रही है. पिछले कुछ हफ्तों में, तालिबान ने आसपास के स्थानों पर हमले किए हैं, जिसमें कई सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं. तालिबान का दावा है कि बांध के आसपास का क्षेत्र अब उनके नियंत्रण में है.
जरांज-देलाराम हाईवे
ये दूसरी हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट है जिसे सीमा सड़क संगठन ने तैयार किया था. 218 किलोमीटर लंबे इस राजमार्ग का ज़रांज इलाका ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा के करीब स्थित है. 150 मिलियन डॉलर का राजमार्ग खश रुड नदी के साथ जरंज के उत्तर-पूर्व में डेलाराम तक जाता है, जहां यह एक रिंग रोड से जुड़ता है जो दक्षिण में कंधार, पूर्व में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है. पाकिस्तान के रास्ते भारत का अफगानिस्तान के साथ व्यापार नहीं होता है इसलिए इस हाईवे की नई दिल्ली के लिए काफी रणनीतिक महत्व का है. ये ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान में एक वैकल्पिक रास्ता देता है. जयशंकर ने नवंबर 2020 के जिनेवा सम्मेलन में कहा था कि भारत ने महामारी के दौरान चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान में 75,000 टन गेहूं पहुंचाया था.इस हाईवे को बनाने में 11 भारतीयों और 129 अफगानियों की मौत हुई थी.
पार्लियामेंट
काबुल में अफगान संसद का निर्माण भारत ने 90 मिलियन डॉलर में किया था. इसे 2015 में खोला गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भवन का उद्घाटन किया. इमारत के एक ब्लॉक का नाम पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है.
स्टोर पैलेस
साल 2016 में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और प्रधान मंत्री मोदी ने काबुल में स्टोर पैलेस का फिर से उद्घाटन किया. ये मूल रूप से 19 वीं शताब्दी के आखिर में बनाया गया था. इस इमारत में 1965 तक अफगान विदेश मंत्री और मंत्रालय के कार्यालय थे. 2009 में, भारत, अफगानिस्तान और आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क ने इसकी बहाली के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए. आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर ने 2013 और 2016 के बीच परियोजना को पूरा किया.
स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रोजेक्ट
भारत ने एक बच्चों के अस्पताल का पुनर्निर्माण किया है जिसे उसने 1972 में काबुल में बनाने में मदद की थी. इसका नाम 1985 में इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान रखा गया था. बाद में ये युद्ध केदौरान जर्जर हो गया था. भारत ने सीमावर्ती प्रांतों बदख्शां, बल्ख, कंधार, खोस्त, कुनार, नंगरहार, निमरूज, नूरिस्तान, पक्तिया और पक्तिका में भी क्लीनिक बनाए हैं.
परिवहन
विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने शहरी परिवहन के लिए 400 बसें और 200 मिनी बसें, नगर पालिकाओं के लिए 105 उपयोगिता वाहन, अफगान राष्ट्रीय सेना के लिए 285 सैन्य वाहन और पांच शहरों में सार्वजनिक अस्पतालों के लिए 10 एम्बुलेंस उपहार में दीं.
इन प्रोजेक्टस पर चल रहा है काम
नवंबर में जिनेवा सम्मेलन में जयशंकर ने घोषणा की थी कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौता किया है. इससे 20 लाख लोगों को सुरक्षित पेयजल दी जाएगी. उन्होंने 80 मिलियन डॉलर की लगभग 100 सामुदायिक विकास परियोजनाओं की शुरुआत की भी घोषणा की थी.