पंजाब: सिद्धू को लेकर अजीब दुविधा में कांग्रेस, खत्म नहीं होगी कलह
नई दिल्ली. कांग्रेस (Congress) हाईकमान के साथ नवजोत सिंह सिद्धू ( Navjot Singh Sidhu) और कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) की बैठकों के बाद भी पंजाब में कलह मिटती नहीं दिख रही है. फिलहाल, पार्टी भी राज्य में सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर दुविधा का शिकार है. पहला, तो यह कि सिद्धू को यह पद मिलने का मतलब है कि राज्य में पार्टी के अंदर ताकत के दो केंद्र बन जाएंगे. दूसरा, पद नहीं देने पर पार्टी के लिए सिद्धू को खोने का खतरा भी बना है. हालांकि, राज्य के नेताओं का मानना है कि सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी दे देने के बाद भी विवाद सुलझेगा नहीं, बल्कि टिकट आवंटन के समय और खुलकर सामने आएगा. साथ ही एक तथ्य यह भी है कि एक-दूसरे के विरोध में खड़े नेताओं को राज्य में शीर्ष पद देने की रणनीति कांग्रेस के लिए इससे पहले खासी फायदेमंद नहीं रही.
राजस्थान में सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया था और वे चुनाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ उनका विवाद बना रहा. इसके चलते बीते साल राजस्थान सरकार में काफी उथल-पुथल मची थी, लेकिन आखिरकार सीएम गहलोत ने इसमें जीत दर्ज की और पायलट ने अपने दोनों पद गंवा दिए.
हरियाणा में 2019 के चुनाव से पहले भुपिंदर सिंह हुड्डा को राज्य के चुनाव का प्रभारी बनाया गया. जबकि, कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया गया. इस व्यवस्था की कीमत पार्टी को राज्य में हार से चुकानी पड़ी. हुड्डा खेमे का कहना है कि उन्हें काफी देर से प्रभार मिला और वे हुड्डा ही थे, जिन्होंने कड़ी टक्कर में भी चुनाव जीता. कुमारी शैलजा के उत्तरी हरियाणा के कथित गढ़ में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ ने राज्य में सत्ता के दो केंद्रों की बात का विरोध किया और इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी के प्रदेश प्रमुख का पद नहीं मिला. यह पद सीएम रहते हुए नाथ ने ही संभाला. अंत में सिंधिया ने पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाने का फैसला किया और इसके चलते नाथ की सरकार गिर गई. सिद्धू के मामले में भी एमपी में मिली असफलता कांग्रेस के दिमाग में बनी हुई है.
राज्य में सीएम बातचीत में बताया कि सिद्धू को पार्टी का प्रमुख बनाने से पंजाब में दल के भीतर मुद्दा सुलझने के बजाए और परेशानियां ही होंगी. एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ‘चुनाव के समय, अगला झगड़ा टिकट वितरण को लेकर होगा, जिसमें दोनों खेमे यानि कैप्टन और सिद्धू अपने वफादारों के लिए टिकट की मांग करेंगे, क्योंकि सिद्धू की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा है और उन्हें चुनाव के बाद विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. फिलहाल, सीएम के विरोधी भी सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष देने का समर्थन नहीं करते.’
वहीं, दूसरे मंत्री ने कहा कि इससे टिकट वितरण के दौरान गुटबाजी और खुलकर सामने आएगी, जिससे संभावना है कि प्रक्रिया में देरी होगी और उम्मीदवारों के पास प्रचार के लिए कम समय बचेगा. इस एक ज्वलंत उदाहरण साल 2017 में उत्तर प्रदेश में देखा था, जब अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच विवाद था. समाजवादी पार्टी की टिकट वितरण प्रक्रिया में समय लगा और प्रचार में देरी हुई. आखिरकार, पार्टी के अंदर एक बटे हुए घर के चलते हार का सामना करना पड़ा. मंत्री ने कहा, ‘सिद्धू की तरफ से सीएम को लेकर सार्वजनिक रूप से जिस तरह के शब्द कहे गए हैं, उन्हें देखकर क्या आप सोच सकते हैं कि दोनों एक ही प्रचार मंच साझा करेंगे? तनाव लंबे समय से चल रहा है.’
हालांकि, सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी नहीं देने का जोखिम कांग्रेस हाईकमान नहीं उठाना चाहता, क्योंकि खासतौर से बादलों के खिलाफ आक्रामक रुख के कारण वे पंजाब में लोकप्रिय चेहरा हैं. आम आदमी पार्टी की जाट सिख को सीएम बनाने की घोषणा और पिछले चुनाव में सिद्धू के साथ आप की बातचीत ने पार्टी हाईकमान के सामने सिद्धू को जरूरत को मजबूत किया है.
दिल्ली में गांधी-भाई बहन के साथ सिद्धू के साथ एक बड़ी जनता है. कहा जाता है कि राज्य में आगामी शीर्ष तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया था, लेकिन सीएम ने कल पार्टी के हिंदू नेताओं को भोजन पर बुलाकर और सिद्धू की बढ़त के खिलाफ अपने समर्थन में रैली कराकर दिल्ली संदेश पहले ही भेज दिया है. सीएम का कहना है कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष हिंदू होना चाहिए, ताकि क्षेत्रीय और धार्मिक संतुलन बन सके, क्योंकि वे और सिद्धू दोनों ही पटियाला के जाट सिख हैं.सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी देने के साथ-साथ हिंदू नेता को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की व्यवस्था, सुलह का एक जरिया हो सकती है. लेकिन इससे शायद कम समय के लिए ही संघर्ष विराम हो. इस बात का सबक राजस्थान और हरियाणा में है, जहां अपना हक मांग रहे सचिन पायलट और हरियाणा में शैलजा के खिलाफ भुपिंदर सिंह हुड्डा का खेमा खड़ा हो गया है. इससे दोनों राज्यों में तनाव फिर बढ़ रहा है. पंजाब में हार या जीत के बाद राज्य में कांग्रेस के लिए दोबारा नुकसान हो सकता है.