सेंट्रल विस्टा का जारी रहेगा काम, सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात

नई दिल्ली. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (Central Vista) पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से भी राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi Highcourt) के एक लाख रुपये के जुर्माना लगाने के आदेश को बदलने से साफ इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप ने कोरोना (Coronavirus In India) का हवाला देकर सभी निर्माण प्रोजेक्ट पर रोक की मांग नहीं की. आपकी मंशा पर दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला एकदम सही है.

यह अपील अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव ने दायर की थी. दिलचस्प बात यह है कि यादव, दिल्ली हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई में पक्षकार नहीं थे. याचिका में यह भी कहा गया है कि हाईकोर्ट का यह कहना भी उचित नहीं था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के श्रमिक परियोजना स्थल पर रह रहे हैं जबकि सरकार और एसपीसीपीएल (प्रोजेक्ट का निर्माण करने वाली कंपनी) ने अपने-अपने हलफनामे में स्पष्ट रूप से कहा था कि श्रमिक सराय काले खां के कैंप में रह रहे थे, जो परियोजना स्थल नहीं है.

अस्थायी रोक लगाने की मांग 
सराय काले खां से मजदूरों व पर्यवेक्षकों को लाने और ले जाने के लिए आवाजाही पास जारी किया गया था. पिछले साल 20 मार्च को केंद्र ने 20 हजार करोड़ की परियोजना के लिए लैंड यूज में बदलाव को लेकर अधिसूचना जारी की थी, जो मध्य दिल्ली में 86 एकड़ भूमि से संबंधित है जिसमें राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय जैसी इमारतें शामिल हैं.

आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने गत पांच जनवरी को लैंड यूज और पर्यावरण मानदंडों के कथित उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इस प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं. इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कोरोना के चलते निर्माण गतिविधियों पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की गई थी.

सेंट्रल विस्टा जरूरी परियोजना है, काम जारी रहेगा – हाईकोर्ट
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य को जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय महत्व की एक अहम और आवश्यक परियोजना है. इसके साथ ही अदालत ने इस परियोजना के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह किसी मकसद से प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण थी.कोर्ट ने कोरोना महामारी के दौरान परियोजना रोके जाने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. अदालत ने कहा कि वह इस दावे से असहमत है कि यह परियोजना आवश्यक गतिविधि नहीं है और इसलिए मौजूदा महामारी के दौरान इसे रोक दिया जाना चाहिए.

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