त्रिवेंद्र रावत बनेंगे उत्तराखंड के दुबारा मुख्यमंत्री ?
उत्तराखंड के डबल इंजन की सरकार में तीसरे मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। चुनाव आयोग के इस कथन के बाद कि यूपी और उत्तराखंड में चुनाव संभव नही है। ऐसे में उत्तराखंड की सियासत में एक बार फिर भूचाल आने की संभावनाएं जोर पकड़ने लगी है। जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को सितंबर तक विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना है। ऐसे में चुनाव ना होने की स्थिति बनने पर तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ सकता है। कुल मिलाकर नेतृत्व परिवर्तन के निर्णय के बाद से उत्तराखंड की भाजपा बैकफुट पर चली गई है। जबकि कांग्रेस फ्रंटफुट पर आकर सत्तासीन पार्टी को घेरने में जुटी है। अगर तीरथ सिंह रावत की विदाई हुई तो अगला मुख्यमंत्री निशंक, अनिल बलूनी या फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत में से ही किसी एक को बनाना होगा। विधायकों के बीच से धन सिंह रावत को चुना गया तो भाजपा में आपसी फूट बढ़ने की संभावनाएं प्रबल होगी।
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के बाद से ही भाजपा सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। चार साल से मुख्यमंत्री पद पर आसीन त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी और पारदर्शी सरकार को दरकिनार कर भाजपा हाईकमान ने भाजपा विधायकों की नाराजगी को शांत करने के लिए नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय किया। विधायकों ने भाजपा हाईकमान को ठीक उस वक्त घेरा जब बंगाल में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। अपनी ही पार्टी की टूट फूट को रोकने के लिए हाईकमान ने भी बिना माथा पच्ची किए नेतृत्व परिवर्तन कर पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाकर विधायकों का आक्रोष शांत कर दिया। भाजपा हाईकमान को लगा कि सबकुछ ठीक हो जायेगा। तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायकों को एकजुट होकर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब होंगे। बेहद ही सरल व्यक्तित्व के तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगे कांटों का बिलकुल भी अंदाजा नही था।
केबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल सरीखे राजनीति के खिलाड़ियों के बीच में तीरथ सिंह रावत फंस गए।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हरक सिंह रावत और तमाम भाजपा विधायकों को पूरी तरह से काबू किया हुआ था। तीन मंत्रीपद खाली होने के बाबजूद वह संतुलित सरकार और साल 2022 के विधानसभा चुनाव की रणनीति को ध्यान में रखकर कार्य कर रहे थे। त्रिवेंद्र की कार्यशैली से उत्तराखंड की जनता संतुष्ट थी। लेकिन भाजपा विधायकों में असंतुष्टता पनप रही थी। जिसके चलते एक बेहद ही संयमित सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र की विदाई करनी पड़ी। हालात बेहतर होने के वजाय बिगड़ गए। नए मुखिया तीरथ सिंह रावत उप चुनाव लड़ने का वक्त खो गए। उनकी सादगी और सरल स्वभाव भी मीडिया को रास नही आया। बस यही से उत्तराखंड में भाजपा की मुश्किले बढ़ गई है।
अब बात नेतृत्व परिवर्तन पर आकर ठहर गई है। अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को उत्तराखंड की सियासत का गहरा अनुभव है। केंद्र में पीएम मोदी के साथ कार्य करने का अनुभव और उनके खाते में है। संगठन और सत्ता के बीच तालमेल बनाने में उनका कोई सानी नही है। अनिल बूलनी को सत्ता सौंपने का मतलब एक बार फिर अभिनव प्रयोग करने जैसा है। कितने सफल होंगे या नही, इसका कोई अंदाजा नही लगाया जा सकता है। अब बात करते है त्रिवेंद्र सिंह रावत की तो उनके कार्यकाल में सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नही है। त्रिवेंद्र से जनता की कोई नाराजगी नही है। उनका ईमानदार व्यक्तित्व ही भाजपा को सत्ता दिलाने में कामयाब हो सकता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास जनता को बताने के लिए उपलब्धियों का अंबार है। लेकिन त्रिवेंद्र ने अपनी ईमानदारी के चलते विधायकों और संघ परिवार से नाराजगी मोल ले रखी है। अगर भाजपा को 2022 की सत्ता में वापिसी करनी है तो त्रिवेंद्र पर एक बार दांव खेलना ही बेहतर होगा। फिलहाल तो भाजपा हाईकमान को निर्णय करना है। गेंद भाजपा हाईकमान के पाले में है। लेकिन उत्तराखंड के लिहाज से तो यह सबकुछ ठीक नही है।