चीनी वैक्सीन पर भरोसा करना इन देशों को पड़ रहा है भारी? जाने क्यों

दुनियाभर में कोरोना की नई लहर की आशंका के बीच तेजी से वैक्सिनेशन हो रहा है. इस बीच इंडोनेशिया से एक नई ही बात सामने आई. वहां वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके लगभग एक दर्जन डॉक्टरों की मौत हो गई. इसके साथ ही पहले से संदिग्ध रही चीनी वैक्सीन सिनोवैक बायोटेक और सिनोफार्म ( Chinese Covid-19 vaccines Sinopharm and Sinovac Biotech) पर सवाल उठ खड़े हुए हैं. बता दें कि फिलहाल इस देश में डेल्टा प्लस स्ट्रेन तेजी से फैल रहा है और साथ ही कोरोना संक्रमण के मामले भी बढ़ रहे हैं.

क्यों हो रहा इंडोनेशिया में बवाल 
न्यूयॉर्क टाइम्स की शुक्रवार को आई एक रिपोर्ट ने चीनी वैक्सीन को लेकर सवालों को और उकसा दिया. रिपोर्ट में इंडोनेशियाई मेडिकल एसोसिएशन के हवाले से बताया गया है कि देश में 20 डॉक्टरों की कोरोना संक्रमण से मौत की पुष्टि हो चुकी है. ये वे डॉक्टर थे, जिन्हें चीनी वैक्सीन सिनोवैक की दोनों डोज मिल चुकी थी. इसके अलावा भी 31 और डॉक्टर हैं, बीते 5 महीनों में जिनकी मौत हो गई. उनकी मौत पर भी जांच चल रही है.

टीका लगाए गए चिकित्साकर्मियों में गंभीर मामलों के बढ़ने ने चीन के बनाए सिनोवैक पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ये उस वक्त हुआ है, जबकि चीनी वैक्सीन ले चुके कई दूसरे देश भी वायरस के नए रूप से परेशान हैं. जैसे मंगोलिया, बहरीन और सेशेल्स में चीनी वैक्सीन खूब जमकर दी जा रही थी . लेकिन अब वहां भी संक्रमण बढ़ रहा है.
संक्रमण तेजी से बढ़ रहा 

रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते एक सप्ताह में चीनी वैक्सीन ले चुके ये देश कोरोना से प्रभावित देशों की टॉप 10 सूची में आ गए. विज्ञान पत्रिका Our World in Data में बताया गया है कि ये सारे ही देश वो हैं, जिनकी 50 से 68 प्रतिशत आबादी को चीनी टीके की खुराक मिल चुकी है. इन देशों में चिली भी शामिल है.

देश नॉर्मल होने की उम्मीद कर रहे थे 
मंगोलिया ने जब चीनी वैक्सीन के लिए करार किया था तो वहां की सरकार ने अपने लोगों से कोविड-फ्री समर का वादा किया था. बहरीन में भी कहा गया कि टीका लगते ही लोग सामान्य जिंदगी की ओर लौट सकेंगे. वहीं सेशेल्स एक बार फिर सैर-सपाटे के लिए खुलने जा रहा था.
क्या कारगर नहीं चाइनीज वैक्सीन 

अब इन तमाम देशों में टीकाकरण के बावजूद बढ़ते मामलों को देख एक बार फिर ये बात गरमा गई है कि चीनी वैक्सीन वायरस पर कारगर साबित नहीं हो रही. बता दें कि चीन की वैक्सीन का कोई भी डाटा पब्लिक डोमेन में नहीं है कि पता लग सके कि कितने लोगों पर ट्रायल हुआ और कितना सफल हुआ.

चीन को ट्रायल में भी आई थी मुश्किल
यहां तक कि दूसरे देशों में वैक्सीन ट्रायल के दौरान भी चीन को समस्या हुई थी क्योंकि ज्यादातर देश उसके ट्रायल का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हुए. यहां तक कि पाकिस्तान के लाहौल में भी चीनी वैक्सीन के ट्रायल का खासा विरोध हुआ था. हालांकि वहां वजह ये थी कि वैक्सीन लेने से कई तरह की बीमारियां और खासकर पुरुषों में नपुंसकता आ सकती है. यहां तक कि खुद अपने देश में चीनी वैक्सीन के ट्रायल में समस्या आई थी. तब बहुत से सरकारी कर्मचारियों पर जबर्दस्ती ट्रायल की खबरें भी इंटरनेशनल मीडिया में आई थीं.
देश दोबारा टीकाकरण की बात कर रहे हैं 

ये और बात है कि जल्दी उपलब्ध होने के कारण लगभग 90 देशों ने चीनी वैक्सीन के लिए करार कर लिया. खुद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी वैक्सीन का प्रचार किया था और इसे जल्द से जल्द दूसरे देशों तक पहुंचाने का वादा किया था. हालांकि चीनी टीके पर संदेह के कारण दुनिया के अधिकतर देश कई पाबंदियां लगा रहे हैं. जिन लोगों ने चीनी वैक्सीन ली है, उन्हें कई देशों में वीजा नहीं मिल रहा. अब तक केवल फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके लोगों के लिए ही सीमाएं खुल रही हैं.

साथ ही बढ़ते मामलों को देखते हुए चीन के साथ टीके के लिए करार कर चुके देश अब काफी संख्या में फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन भी ले रहे हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, बहरीन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के बावजूद जब कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो रिस्क ग्रुप में शामिल लोगों को फाइजर और एस्ट्राजेनेका का डोज दिया जाने लगा है.

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