CM तीरथ का उपचुनाव:विकल्प क्या हैं?सल्ट से लड़ जाते तो झंझट ही न होता

CM तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव को ले के सांविधानिक संकट का मसला बना हुआ है। BJP मुतमईन दिखती है कि कोई दिक्कत नहीं लेकिन ऐसे मामलों के विद्वानों का मानना है कि आगे की राह फिलहाल तो बंद दिखती है। उम्मीद सिर्फ `मोदी है तो मुमकिन है पर टिकी है’। मुमकिन अगर होगा तो भी विकल्प क्या होंगे, इस पर भी चर्चा होने लगी है। अगर लोक प्रतिनिधित्व Act-151-A को माने तो अब तीरथ के पास उपचुनाव लड़ने के लिए सांविधानिक हालात ही नहीं रह गए हैं। सल्ट सीट पर शायद तत्काल लड़ने का फैसला कर लेते तो मुख्यमंत्री के सामने ये दुश्वारियाँ न आतीं।

Act के मुताबिक किसी भी सीट पर उपचुनाव तभी हो सकते हैं जबकि आम चुनाव के लिए कम से कम एक साल बचा हो। ये शर्त अब पूरी नहीं हो पा रही। गंगोत्री-हल्द्वानी की सीट खाली तो है लेकिन विधानसभा आम चुनाव के लिए एक साल से कम समय रह गया है। कोई सीट खाली करा के लड़ना तो दूर की बात है। तीरथ के पास सल्ट की खाली सीट पर उपचुनाव लड़ के विधानसभा जाने का उपयुक्त-बेहतरीन अवसर था। न जाने क्या सोच के इस पर लड़ने का फैसला नहीं किया। फिर महेशचन्द्र जीना इस सीट पर BJP से लड़े और विधायक बन गए। वह दिवंगत MLA सुरेन्द्र सिंह जीना के ही भाई हैं। काँग्रेस नेता नवप्रभात ने तीरथ के उपचुनाव न लड़ पाने का सांविधानिक मुद्दा उठाया हुआ है। काँग्रेस ने इसको लपक लिया है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने विधानसभा भंग करने की मांग की है। फिलहाल BJP के पास कुछ विकल्प हैं। 1-केंद्र सरकार Act-151-A को अध्यादेश ला के ही बदल डाले। 2-नए CM की ताजपोशी की जाए। 3-विधानसभा समय से पहले भंग कर दी जाए। नए चुनाव राष्ट्रपति शासन में कराए जाएँ। PM नरेंद्र मोदी को बड़े और चौंकाने वाले फैसले लेने और लागू करने के लिए जाना जाता है। ऐसे में मुमकिन है कि वह Act-151-A को ही अध्यादेश ला के बदल दें।

खुद नवप्रभात भी मानते हैं कि एक यही रास्ता तीरथ को बनाए रखने के लिए उपलब्ध है। तीरथ को हटा के नए CM को लाने का कदम BJP के लिए सियासी तौर पर घातक साबित हो सकता है। इससे पार्टी की बदनामी हो सकती है कि उसको शासन चलाना नहीं आता। न ही स्थिर सरकार दे सकती है। ऐसे में अधिक संभावना मौजूदा CM की अगुवाई में ही विधानसभा के आम चुनाव कराने की है। इसके लिए मोदी-शाह-BJP को कोई भी रास्ता निकालना पड़े निकालेंगे। चुनाव 7-8 महीने में हो जाने की संभावना है।

नवप्रभात ने `Newsspace’ से कहा, `ये भी मुमकिन नहीं है कि तीरथ को छह महीने के बाद हटा के एक-दो दिन बाद फिर नए सिरे से शपथ दिलाई जाए। Supreme Court की Ruling है कि बिना चुनाव जीते CM बनने का लाभ-सुविधा 5 साल के विधानसभा कार्यकाल में सिर्फ एक बार दी जा सकती है’। बीजेपी के आत्मविश्वास को देख के ऐसा लग रहा कि मोदी-शाह-BJP तीरथ के लिए शायद कोई खिड़की खोल देंगे। उपचुनाव से जुड़े Act संबंधी संकट का हल निकाल लिया जाएगा। फिर भी ये तो हकीकत है कि पार्टी से बड़ी चूक और लापरवाही हो ही गई है।

काँग्रेस इस सुनहरे बिना मांगे मिले मौके को भुनाने में कितना सफल रहती है, ये उसकी खुद की आपसी लड़ाई पर नियंत्रण पाने में सफलता पर भी निर्भर करेगी। डॉ. इन्दिरा हृदयेश के जाने के बाद अब सिर्फ हरीश रावत-प्रीतम सिंह खेमा रह गया है। प्रीतम खेमा हल्का पड़ा है। हो सकता है अब दोनों मिल के चुनावी समर की रणनीति बनाएँ। दोनों खेमे इस पर राजी हो सकते हैं कि चुनाव को मिल के पूरी ताकत के साथ ईमानदारी से लड़ा जाए। सत्ता आ गई तो फिर आगे की देख ली जाएगी। दूसरी ओर BJP के भीतर इन दिनों कुरुक्षेत्र का महासमर छिड़ा हुआ है। कोई दिन ऐसा नहीं जब सोशल मीडिया और अखबारों में उसके अंदरूनी झगड़ों-विवादों की खबरें न हों।

(चेतन गुरुंग,वरिष्ठ पत्रकार,उत्तराखंड)

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