जानिए आखिर कैसे मायावती और सुखबीर सिंह बादल बढ़ा सकते हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुश्किलें?
चंडीगढ़. पंजाब की राजनीति में इन दिनों जबरदस्त हलचल मची है. ऐसा लग रहा है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चौतरफा घिर गए है. एक तरफ पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है तो दूसरी तरफ शिरोमणि अकाली दल (SAD) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल उन्हे चकमा देने के फिराक में है. दरअसल SAD और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के बीच इन दिनों पंजाब में एक साथ चुनाव लड़ने को लेकर बातचीत चल रही है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है.
सूत्रों के मुताबिक SAD और BSP के गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है. फिलहाल मामला सीटों के बंटवारे को लेकर अटका है. शनिवार को बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा और सुखबीर सिंह बादल की बीच मुलाकात हो सकती है. इसके बाद गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया जा सकता है. माना जा रहा है कि बीएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. बता दें कि पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं.
इस साल अप्रैल में शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने ऐलान किया था कि अगर उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में जीतकर सरकार बनाती है तो डिप्टी सीएम दलित समुदाय से होगा. इसी दौरान उन्होंने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं के भी संकेत दिए थे और कहा था कि उनके संपर्क में कई पार्टियां हैं. बता दें कि किसान आंदोलन के चलते अकाली दल ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ लिया था.
आंकड़ों के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा दलित पंजाब में ही रहते हैं. यहां 32 फीसदी आबादी दलितों की है. दलित वोट आमतौर पर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के बीच बंटता रहा है. पंजाब में बीएसपी ने इसमें सेंध लगाने की कई बार कोशिश की है. लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली है. साल 2017 के चुनाव में दलित के कुछ वोट आम आदमी पार्टी के हिस्से में आए थे. ऐसे में अब सभी पार्टियाों की नजर दलित वोटरों पर है.
इतना ही नहीं हाल के दिनों में कांग्रेस के कई नेताओं ने ये आरोप भी लगाया है कि कैप्टन अमरिंद सिंह की सरकार राज्य में दलितों की अनदेखी कर रही है. कांग्रेस के हाईकमान को भी इसकी शिकायत की गई है. कहा ये भी जा रहा है कि दलित वोट बैंक को लेकर अकाली दल 117 विधानसभा क्षेत्रों का एक सर्वे करवा रहा है. इस सर्वे के जरिए ये जानने की कोशिश की जा रही है कि किस दलित नेता के साथ कितने समर्थक हैं.
27 साल बाद अकाली दल और बसपा के बीच गठबंधन हो सकता है. इससे पहले दोनों दल 1996 में एक साथ चुनाव लड़े थे. मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने तब सभी तीन सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि अकाली दल ने 10 में से आठ सीटों पर जीत हासिल की थी.